महाराष्ट्र के अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा की गिरफ्तारी के मामले में महाराष्ट्र सरकार को मुंबई की सेशंस कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सेशंस कोर्ट ने नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को जमानत देते हुए अपने आदेश में लिखा है कि राणा दंपति पर मुंबई पुलिस के द्वारा राजद्रोह की धारा लगाना पूरी तरह से गलत है।
नवनीत और रवि राणा ने कोई ऐसा काम नहीं किया था और ना ही कोई हथियार लाने के लिए किसी को उकसाया था जिसके चलते उन पर यह धारा लगाई जाए।
मुंबई पुलिस के द्वारा लगाई गई राजद्रोह की धारा पर अब बीजेपी ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं और मुंबई पुलिस को महाराष्ट्र सरकार का मोहरा बता दिया है।
निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा की गिरफ्तारी हनुमान चालीसा विवाद में हुई थी।
सेशंस कोर्ट ने मुंबई पुलिस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि नवनीत राणा और रवि राणा पर पुलिस ने धारा 124(ए) के तहत कार्रवाई की थी, यह पूरी तरह से गलत है। सेशंस कोर्ट ने आदेश में कहा कि जब तक कोई व्यक्ति हिंसा के बारे में उकसाने के लिए दोषी नहीं पाया जाता है उसके खिलाफ राजद्रोह की धारा में मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। ऐसे में सेशंस कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद महाराष्ट्र सरकार की यह कार्रवाई सवालों के घेरे में आ गई है।
पुलिस ने जब राजद्रोह की धारा में राणा दंपत्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया था, तब बीजेपी ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के घर के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए किसी सांसद पर राजद्रोह की धारा में मुकदमा दर्ज किया जाता है तो यह सिर्फ बदले की कार्रवाई हो सकती है।
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बीजेपी हमेशा आरोप लगाती रही है कि महाविकास अघाड़ी सरकार पुलिस का अपने फायदे के लिए दुरुपयोग कर रही है। बीजेपी नेता मोहित कंबोज का कहना है कि मुंबई के पुलिस कमिश्नर संजय पांडे शिवसेना के नेता की तरह काम कर रहे हैं। कंबोज ने संजय पांडे पर चुटकी लेते हुए कहा कि रिटायरमेंट के बाद संजय पांडे शिवसेना ज्वाइन करने वाले हैं।
उधर, शिवसेना के नेता कृष्णा हेगड़े का कहना है कि मुंबई पुलिस ने नवनीत राणा और रवि राणा के खिलाफ जो मामला दर्ज किया था वह उस समय के मौजूदा हालातों को देखते हुए किया था। ऐसे में किस व्यक्ति पर किस मामले में किन धाराओं में मुकदमा दर्ज करना चाहिए यह सिर्फ मुंबई पुलिस का काम होता है। महाराष्ट्र सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
महाराष्ट्र में गृह मंत्रालय एनसीपी के पास है। एनसीपी के प्रवक्ता महेश तपासे का कहना है कि राजद्रोह का मुकदमा किस वक्त और किन परिस्थितियों में लगाया जाना है, यह पुलिस का काम होता है। वैसे, अगर 12 दिनों तक नवनीत राणा और रवि राणा को जमानत नहीं मिल सकी थी तो इसका मतलब साफ है कि अदालत को भी इस मामले में कुछ ऐसे तथ्य जरूर मिले होंगे जिसकी वजह से उन्हें फौरन ही जमानत नहीं दी। वैसे भी एक ही मामले में सेशंस कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग विचार हो सकते हैं।
अब यह अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि अदालत की इस टिप्पणी के बाद राज्य में एक बार फिर से सत्ता पक्ष बनाम विपक्ष की लड़ाई शुरू हो सकती है। अदालत ने जमानत देते हुए राणा दंपति पर तीन शर्तें लगाई थीं। जिनमें प्रमुख शर्त यह है कि वे मीडिया से बात नहीं कर सकते।
आइये, आपको बताते हैं कि अदालत ने अपने आदेश में क्या कहा?
1) सरकार और प्रशासन की नीतियों पर टिप्पणी करने पर किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 124(ए) के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता।
2) सरकार पर टिप्पणी करना लेकिन किसी हिंसा को प्रोत्साहित न करते हुए कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना यह दंडनीय नहीं माना जा सकता। इसके लिए दूसरी धाराओं का सहारा लिया जा सकता है लेकिन किसी पर राजद्रोह की धारा लगा देना पूरी तरह से गलत है।
3) किसी भी नागरिक को सरकार या प्रशासन के खिलाफ लिखने एवं बोलने का पूरा अधिकार है। हालांकि वह किसी हिंसक गतिविधि में लिप्त नहीं होना चाहिए।
4) अदालत ने कहा कि कानून कहता है कि हिंसक गतिविधि के जरिये अमन चैन बिगाड़ने के प्रयास पर ही धारा 124(ए) का प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन इस केस में ऐसा कुछ हुआ है हमें नहीं लगता है।
अदालत की टिप्पणी के बाद राणा दंपति का अगला कदम क्या होगा इस पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि राणा दंपति इस संदर्भ में ऊपरी अदालत या फिर केंद्र सरकार के पास अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
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