पिछले हादसे के बाद कार्यवाही क्या दिखावा था?
गोखले ब्रिज दुर्घटना के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल के दिशा-निर्देशों के अनुरूप रेलवे और मुंबई महानगरपालिका के उच्च स्तरीय अधिकारियों की बैठक हुई।
बैठक में बृहन्मुंबई महानगरपालिका, रेलवे तथा आईआईटी मुंबई के विशेषज्ञों की 12 संयुक्त टीमें गठित करने का निर्णय लिया गया। एक टीम में कम से कम 3 सदस्य होंगे। ये टीमें 13 जुलाई, 2018 के बाद से हर शुक्रवार को रेलवे ट्रैक से गुजरने वाले रोड ओवर ब्रिज, फ़ुटओवर ब्रिज, पाइप लाइन इत्यादि स्ट्रक्चरों का विस्तार से ऑडिट शुरू करेंगी। पहले दौर में 40 साल पुराने ब्रिजों का ऑडिट किया जाएगा। सभी 445 स्ट्रक्चरों के ऑडिट के लिए तीन से चार महीनों की समय सीमा निर्धारित की गयी।
- उस बैठक में बिना किसी प्रक्रिया संबंधी देरी के, प्राथमिकता के आधार पर यातायात के अत्यधिक दबाव वाले पुलों को ज़रूरत के आधार पर मरम्मत या पुनर्निर्मित किए जाने संबंधित निर्णय भी किया गया।
इन निर्णयों का क्या हुआ?
बैठक में यह भी निर्णय लिया गया था कि बीएमसी, पश्चिम रेलवे और मध्य रेल के बीच मासिक समन्वय बैठक आयोजित की जाएगी। यह भी तय हुआ कि इनमें रेलवे से मुख्य ब्रिज इंजीनियर और अपर मंडल रेल महाप्रबंधक (इंफ्रास्ट्रक्चर) और बीएमसी के इंजीनियर विभाग के अधिकारी भाग लेंगे। बैठकों में क्या निर्णय लिए जाएँगे, मसलन डिजाइन, ड्रॉइंग, अनुमति, ज़मीन से संबंधित मामले यह भी तय किया गया। मरम्मत कार्य में देरी न हो, यह तय करने के लिए एक निश्चित धन राशि का कॉरपस फंड बनाने की संभावना को तलाशने का भी निर्णय लिया गया। रेल मंत्री ने इस बैठक के निर्णय पर शीघ्र काम करने के आदेश भी दिए।
बैठक के आठ माह बाद फिर हादसा
उस बैठक के आठ माह बाद फिर एक हादसा हुआ। गुरुवार को हुए इस हादसे में 6 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 33 लोग घायल हैं। घायलों को सेंट जॉर्ज और जी.टी. अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। यह पुल भीड़-भाड़ वाले छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन को आजाद मैदान पुलिस थाना से जोड़ता था। गुरुवार को हुए पुल हादसे के बाद सबकी निगाहें कार्रवाई पर टिकी हुई हैं। घटना के घटित होने के लगभग 12 घंटे के बाद मुंबई पुलिस ने इस मामले पर एक्शन लिया है और बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और भारतीय रेलवे के अधिकारियों के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है।
मुंबई में गुरुवार को जो पुल ढहा है, उसका कुछ दिनों पहले ही ऑडिट हुआ था। ऑडिट में पुल की स्थिति को बिल्कुल सही बताया गया है। तो फिर हादसा कैसे हो गया?
पूरी ऑडिट प्रक्रिया संदेह के घेरे में
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या रेल निर्देशों के बाद गठित की गयी उच्च स्तरीय समिति ने इस पुल की जाँच की थी या स्ट्रक्चर रिपोर्ट महानगरपालिका ने अपने पैनल के किसी स्ट्रक्चरल ऑडिटर से करायी है। सवाल इसलिए भी खड़ा होता है कि अंधेरी में जो गोखले ब्रिज गिरा था उसके बारे में भी यही कहा गया था कि उसका ऑडिट भी 6 माह पहले हुआ था। यदि ये दोनों दावे सही हैं तो पूरी ऑडिट प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में आ जाती है।
हादसा होने के बाद उच्च स्तरीय बैठकें होती हैं, बड़े-बड़े बयान आते हैं और फिर मामला जस का तस।
कई ब्रिज 100 साल पुराने
उल्लेखनीय है कि मुंबई का उपनगरीय रेल प्रोजेक्ट अंग्रेज़ों के जमाने का है। इसमें आज भी बहुत से ऐसे ब्रिज हैं जिनकी अवधि 100 साल को पार कर चुकी है। साल-दर-साल उपनगरीय रेल नेटवर्क पर यात्रियों का दबाव बढ़ रहा है, लेकिन उस अनुपात में विस्तार का काम नहीं हो रहा। जब तक इन ब्रिज के विकल्प या उनके समानान्तर नए ब्रिज नहीं बनेंगे, हादसों पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल है। चुनाव के मुहाने पर यह हादसा हुआ है, इसलिए बयानबाज़ी जोरों पर है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि इस पुल का स्ट्रक्चरल ऑडिट किया गया था जिसमें इसे फिट पाया गया था। इसके बाद भी अगर यह हादसा हुआ है तो यह ऑडिट पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। जाँच की जाएगी और सख्त एक्शन लिया जाएगा। मुख्यमंत्री को इन पर कार्रवाई के साथ-साथ उन हादसों की रिपोर्ट्स को भी देखना चाहिए जो पहले हुए हैं।
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