महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। इसको लेकर महराष्ट्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा है कि मराठा समुदाय को आरक्षण देते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अन्य पिछड़ा वर्ग प्रभावित न हो। उन्होंने कहा है कि इस मुद्दे का समाधान केवल चर्चा और बैठक से ही निकाला जा सकता है।
मराठा आरक्षण के मुद्दें ने महाराष्ट्र की राजनीति के माहौल को एक बार फिर गर्म कर दिया है। पिछले दिनों राज्य के जालना में एक सितंबर को इस मुद्दे पर हिंसा भड़क उठी थी। यह हिंसा तब भड़क उठी थी जब मराठाओं के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग करने वाले हजारों प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था।
इसके बाद भड़की हिंसा ने राज्य में मराठा राजनीति को केंद्र में ला दिया। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए मराठा आरक्षण की जटिल राजनीति से कोई भी दल अछूते नहीं दिख रहे हैं। इन सबके बीच मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलकारी मनोज जरांगे इस आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा बन कर उभरे हैं। वह करीब दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। इस भूख हड़ताल से महाराष्ट्र की राजनीति पर कितना प्रभाव पड़ा है इसे बात से समझ सकते हैं कि आज महाराष्ट्र के सभी बड़े नेता व्यक्तिगत रूप से मनोज जारांगे पाटिल का स्वागत करने के लिए कतार में हैं।
राज्य की आबादी का लगभग 33 प्रतिशत हैं मराठा
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय हमेशा से एक बड़ी राजनैतिक शक्ति रहा है। महाराष्ट्र की राजनीति में इन्हें कोई भी दल नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मराठा समुदाय जातियों का एक समूह है, जिसमें किसानों और जमींदारों के अलावा अन्य शामिल हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 33 प्रतिशत हैं।ज्यादातर मराठा मराठी भाषी है लेकिन सभी मराठी भाषी लोग मराठा समुदाय से नहीं हैं। राज्य में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली इस समुदाय में राज्य की आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा शामिल है।
बात इतिहास की करे तो मराठाओं की पहचान किसान और 'योद्धा' जाति के तौर पर रही है। 1960 में महाराष्ट्र राज्य के गठन के बाद से महाराष्ट्र के कुल 20 मुख्यमंत्रियों में से 12 (एकनाथ शिंदे सहित) मराठा समुदाय से रहे हैं। मौजूदा समय में भूमि के विभाजन और कृषि समस्याओं के कारण मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के मराठाओं की आर्थिक स्थिति में गिरावट आई है इसके बावजूद मराठा समुदाय अभी भी महाराष्ट्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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जाने कितनी पुरानी है मराठा आरक्षण की मांग
मराठा समुदाय लंबे समय से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं।यह मांग करीब छह दशक पुरानी है लेकिन कोई भी राजनैतिक दल इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने में सफल नहीं हो सका है। इस मांग को लेकर इनका पहला बड़ा विरोध प्रदर्शन 32 साल पहले मुंबई में मथाडी लेबर यूनियन के नेता अन्नासाहेब पाटिल ने किया था।2014 के विधानसभा चुनावों से पहले, महाराष्ट्र की तत्कालीन पृथ्वीराज चव्हाण सरकार सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण लेकर आई थी। यह तत्कालीन नारायण राणे समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
इसके बाद सत्ता में आई देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने नवंबर 2018 में, एमजी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले पिछड़ा वर्ग आयोग के निष्कर्षों के आधार पर मराठा समुदाय आरक्षण देने का फैसला किया। सरकार ने एक विशेष प्रावधान - सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम के तहत मराठों को आरक्षण देने की मंजूरी दे दी। इस आरक्षण ने भाजपा को उसकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस-एनसीपी पर राजनीतिक बढ़त दिला दी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम 2018 के तहत मराठा कोटा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा दिया गया 16 प्रतिशत कोटा 'उचित' नहीं था। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के मुताबिक इसे शिक्षा में 12 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया।
मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता। कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की अधिकतम सीमा को अधिकतम 50 फीसदी तक सीमित कर दिया था।
अब मराठा समुदाय की क्या है मांग
मराठा समुदाय के लोगों की मांग है कि उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए, वैसे ही जैसे पिछड़ी जातियों को मिला हुआ है। मराठा समुदाय के लोगों का कहना है कि समाज का एक छोटा तबका है जो संपन्न है लेकिन इस समुदाय के बाकी लोग गरीबी में जी रहे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति पिछड़ी हुई है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस बात से इनकार कर चुका है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है। अब मराठा समुदाय चाहता है कि फिर से सरकार कानून इस तरह से बनाए कि उन्हें आरक्षण का लाभ मिले। इसके लिए वे आंदोलनरत हैं।
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