मंत्रिमंडल विस्तार कार्यक्रम में संजय राउत के भाई और पार्टी के विधायक सुनील राउत भी उपस्थित नहीं थे। मीडिया में ऐसी ख़बरें आईं कि सुनील राउत का नाम मंत्रियों की सूची में था लेकिन ऐन वक्त पर सूची में बदलाव हुआ और उनका नाम काट दिया गया! इससे मतलब यह निकाला गया कि संजय राउत नाराज़ हैं।
सुनील राउत को मंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर चर्चाओं का दौर गर्म है। संजय राउत कह रहे हैं कि तीन पार्टियों की सरकार में हर पार्टी की मजबूरी है। उन्होंने कहा, ‘शिवसेना को जितने पद मिले हैं उसमें सहयोगियों का भी समावेश करना था। हमें नाराज़गी उस समय होती जब उद्धव ठाकरे मुखयमंत्री नहीं बन पाते।’ राउत ने कहा कि ठाकरे परिवार से उनका रिश्ता बहुत पुराना है और मंत्री पद उसके सामने कोई मायने नहीं रखता।
शंकरराव गडाख और बच्चू कडु को शिवसेना ने अपने कोटे से मंत्री बनाया है। जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अपने किसी सहयोगी दल के नेता को मंत्री पद नहीं दिलाया। इसे लेकर स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी नाराज़ भी हुए और मीडिया के समक्ष आकर बयान दिया कि यदि सहयोगी दलों की उपेक्षा की गई तो इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।
शिवसेना की सांसद भावना गवली ने विदर्भ से संजय राठौड़ को मंत्री बनाये जाने पर नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा है कि राठौड़ की जगह किसी और को यह पद दिया जाना चाहिए था।
एनसीपी में भी नाराज़गी की बातें सुनाई दे रही हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रकाश सोलंके ने तो विधायक पद से इस्तीफ़ा देने की बात कही है। मंत्री पद नहीं मिलने से कई अन्य नेताओं में भी नाराज़गी है।
वैसे, महाराष्ट्र में नाराज़ नेताओं को मनाने के लिए यहां के महामंडल के चैयरमैन के पद दिए जाते हैं। महामंडलों के चैयरमैन को राज्यमंत्री का दर्जा मिलता है और इनकी संख्या भी क़रीब दो दर्जन से अधिक है। तीनों पार्टियों के सामने यह चुनौती है कि वह अपने नाराज़ नेताओं को इन पदों को देकर मना पाती है या नाराज़गी के स्वर महा विकास अघाडी सरकार का सिरदर्द बने रहेंगे, यह तो समय ही बताएगा।
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