रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी को लेकर बुधवार की रात अलीबाग कोर्ट में गहमागहमी रही और बाद में अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। आज अर्णब की तरफ़ से उनके वकील मुंबई हाई कोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर करेंगे। महाराष्ट्र पुलिस ने अदालत में ‘अर्णब से कई राज उगलवाने हैं’ की दलील देते हुए 14 दिन की पुलिस हिरासत माँगी थी जो मंजूर नहीं हुई।
पुलिस ने तर्क दिया था कि आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति है जो जाँच को प्रभावित कर सकता है। पुलिस ने कहा कि आरोपी अर्णब गोस्वामी से उनके स्टूडियो के काम के संबंध में कागजात, बैंक खातों से संबंधित अनेक जानकारी हासिल करनी है। इस मामले में कुछ अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने की बात भी पुलिस ने कही तथा इस दरम्यान अर्णब की पुलिस हिरासत मांगी। लेकिन अदालत ने कहा कि इस मामले में 'समरी रिपोर्ट' के बाद पुलिस ने फिर से जाँच शुरू करने के लिए अदालत से इजाजत हासिल नहीं की है, इस आत्महत्या से आरोपियों के क्या संबंध हैं, इस बारे में पुलिस ने कोई ठोस संबंध पेश नहीं किये हैं लिहाजा आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजा जा रहा है।
इससे पहले अदालत ने अर्णब गोस्वामी और उनकी पत्नी को न्यायालय में चल रही कार्यवाही का अपने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से वीडियो बनाने के लिए फटकार लगाई। अर्णब गोस्वामी ने अदालत में चोट के निशान दिखाते हुए कहा, 'पुलिसकर्मियों ने मुझे चारों ओर से घेरा, मुझे धक्का दिया। मैं यहाँ बिना जूते के हूँ… मेरे साथ मारपीट की गई है।’ इस दौरान, उनके आसपास मुंबई पुलिसकर्मी मौजूद थे, जो उन्हें थाने लेकर जा रहे थे। इस तर्क पर अदालत ने उनका एक बार फिर से मेडिकल कराया तथा जाँच रिपोर्ट में कुछ नहीं आने पर उनकी दलील को खारिज कर दिया। अर्णब गोस्वामी के वकील गौरव पारकर ने बताया कि पुलिस हिरासत में न देकर न्यायिक हिरासत में भेजना यह उनकी बड़ी जीत है। उन्होंने कहा, ‘यह हमारे लिए बड़ी जीत है। पहले ही दिन न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस हिरासत से इनकार किया गया और मजिस्ट्रेट कस्टडी दी गई है। हमने ज़मानत के लिए अर्जी लगाई है।
अर्णब पर एक और एफ़आईआर
उधर मुंबई पुलिस ने बुधवार को अर्णब गोस्वामी के ख़िलाफ़ एक और मामला दर्ज किया है। यह मामला उनकी गिरफ्तारी के समय अर्णब और उनकी पत्नी संयमब्रता रे, पुत्र व दो अन्य लोगों द्वारा महिला पुलिसकर्मी से धक्कामुक्की करने तथा सरकारी कामकाज में बाधा पैदा करने का है।
53 वर्षीय आर्किटेक्ट व इंटीरियर डिज़ाइनर अन्वय नाइक और उनकी माँ कुमुद नाइक द्वारा मई 2018 में अलीबाग तालुका के कावीर गाँव में अपने फ़ॉर्महाउस पर आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने अर्णब के अलावा आयकास्ट स्काय मीडिया के फिरोज शेख और ‘स्मार्टवर्क्स’ के नितेश सरडा को भी गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया।
सुसाइड नोट में क्या लिखा है?
मृतक ने आत्महत्या के कारण बताते हुए एक चिट्ठी छोड़ी थी। इस चिट्ठी में लिखा था कि अर्णब गोस्वामी ने अपने चैनल के बॉम्बे डाईंग स्थित स्टूडियो के डिजाइनिंग कार्य के 83 लाख, फिरोज शेख ने लक्ष्मी मिल स्थित आईडिया स्क्वायर स्थित में तीसरी व चौथी मंजिल के प्रोजेक्ट के 4 करोड़ तथा सरडा ने पुणे के पास स्थित मगरपट्टा व बानेर में अपने प्रोजेक्ट के काम के 55 लाख रुपये नहीं दे रहे हैं। और इस कारण वह आत्महत्या कर रहा है। इस चिट्ठी के आधार पर अन्वय की पत्नी अक्षता ने उस समय अलीबाग पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था, लेकिन कुछ दिनों बाद पुलिस ने इस संबंध में अदालत में रिपोर्ट पेश की तथा बताया कि कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं लिहाजा जाँच बंद की जा रही है। अदालत ने भी पुलिस की उस रिपोर्ट पर अपनी मंजूरी दे दी थी।
लेकिन राज्य में सरकार बदली और मई 2020 में अक्षता ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड कर अपने पति की मौत पर इन्साफ की गुहार की। इसके बाद अन्वय की पुत्री ने राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख को ज्ञापन देकर मामले की पुनः जाँच की माँग की जो स्वीकार कर ली गयी। इस मामले में अन्वय की बेटी ने महाराष्ट्र पुलिस के डीआईजी से भी भेंट की तथा उनके समक्ष कई साक्ष्य रखे।
अन्वय के परिवार के आरोप
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अन्वय की बेटी ने डीआईजी को बताया था कि अर्णब गोस्वामी की तरफ़ से उनके परिवार पर दबाव बनाया जा रहा है कि पैसे लेकर मामले को रफा-दफा कर दें। उन साक्ष्यों के आधार पर डीआईजी ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट देने वाले जाँच अधिकारी पुलिस निरीक्षक सुरेश वर्हाडे के ख़िलाफ़ जाँच के आदेश दिए। बाद में यह मामला पुलिस की अपराध शाखा को सौंपा गया। अपराध शाखा ने अक्टूबर माह में इस मामले की जाँच को आगे बढ़ाया। मामले के जाँच अधिकारी पुलिस निरीक्षक जमील शेख के मुताबिक़ ‘जब हमने जाँच की तो हमें इस मामले में कुछ और साक्ष्य भी मिले।’
पुलिस का कहना है कि अन्वय नाइक की आत्महत्या के बाद अर्णब गोस्वामी की तरफ़ से उसके खाते में पैसे ट्रांसफर करने की कोशिश भी की गयी थी, लेकिन खाताधारक मर चुका था लिहाजा बैंक ने उक्त व्यवहार नकार दिया।
पुलिस ने बताया कि नाइक के लैपटॉप में मिली फाइल्स और आरोपियों के बैंक खातों के व्यवहार की जाँच की जा रही है और इस संबंध में कुछ और लोगों के बयान दर्ज किये जाने महत्वपूर्ण हैं ताकि मामले की तह तक जाया जा सके।
लेकिन अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर प्रदेश में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। देश के गृह मंत्री अमित शाह, दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस गिरफ्तारी को प्रेस की आज़ादी पर हमला बताया तथा कहा कि महाराष्ट्र में आपातकाल जैसे हालात हो गए हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने नागपुर में इस गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन किया तथा कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि जब तक अर्णब मुक्त नहीं हो जाते प्रदर्शन करते रहें।
‘हे राम राज्य! एक नौटंकी के लिए छाती पीटना बंद करो’
इस मामले में शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में ‘हे राम राज्य! एक नौटंकी के लिए छाती पीटना बंद करो’ शीर्षक से संपादकीय लिखी है। इसमें कहा गया कि सीता जी पर आरोप लगने पर उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। सीता की अग्नि परीक्षा, क्या आज के दौर के तथाकथित राम भक्तों को आपातकाल या फासीवाद लग रही है? कल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की एक चुनावी सभा में जय श्री राम के जयकारे लगवाए थे। एक व्यक्ति अपनी वृद्ध मां के साथ आत्महत्या कर लेता है। मृतक की पत्नी न्याय पाने के लिए आक्रोशित है, पुलिस क़ानून के तहत मामले की जाँच कर रही है, इसमें लोकशाही का चौथा स्तम्भ गिराए जाने का विलाप क्यों! अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी एक निजी आपराधिक मामले में हुई है। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक या आगरकर की तरह सरकार के ख़िलाफ़ कुछ लिखा या बोला नहीं है।
अख़बार ने लिखा है कि अर्णब गोस्वामी और उनका चैनल किस तरह की पत्रकारिता करते हैं? उनके पीछे किसका समर्थन है यह जगजाहिर है। सरल शब्दों में 'जिसे सुपारी पत्रकारिता कहते हैं वही अर्णब और उनका चैनल कर रहा है। आज अमित शाह इसे लोकतंत्र पर हमला कह रहे हैं, यह बिलकुल वैसा नहीं है। गुजरात में सरकार के विरोध में लिखने वाले पत्रकारों को गिरफ्तार किया जाता है, उत्तर प्रदेश में तो उनकी हत्या ही कर दी जा रही है, उस समय किसी को आपातकाल की याद नहीं आती। आज महाराष्ट्र में एक मराठी व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है और उसकी पुलिस जाँच हो रही है तो प्रेस की आज़ादी और लोकशाही पर हमले की बात उठायी जा रही है।
अख़बार में टिप्पणी की गई है कि जिसने आपातकाल देखा है उसमें से एक नेता लालकृष्ण आडवाणी आज भी जीवित हैं, बीजेपी वाले उनसे जाकर आपातकाल का अर्थ पूछें। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित करते समय लिखा था, मुझे इसके शिवाय कोई और निर्णय का निष्कर्ष नहीं नज़र आया। नरसिंह राव सहित दर्जनों अन्य मंत्रियों के मामले में भी हमारे देश की अदालतों ने निर्णय किये हैं। लेकिन आज जो लोग लोकशाही के चौथे स्तम्भ पर हमले की बात कह रहे हैं वे लोकशाही के पहले स्तम्भ पर प्रहार या उसे ही क्षतिग्रस्त करने का काम कर रहे हैं।
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