केरल में एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता की पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद बुधवार को कोझिकोड में निपाह के मामलों की संख्या बढ़कर पांच हो गई है। इसके साथ ही इस वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले क़रीब 800 लोगों को निगरानी में रखा गया है।
इससे पहले राज्य में निपाह के चार पॉजिटिव केस आए थे। उनमें से दो की पिछले दो सप्ताह में मृत्यु हो गई है। ताजा संक्रमित मरीज 24 वर्षीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जो कोझिकोड के एक निजी अस्पताल से जुड़े हैं। वहाँ 30 अगस्त को संक्रमण से एक पीड़ित की मृत्यु हो गई थी। स्वास्थ्य कार्यकर्ता और दो अन्य लोगों का इलाज चल रहा है। पुष्टि किए गए मामलों की संपर्क सूची में 153 स्वास्थ्य कार्यकर्ता शामिल हैं।
इस बीच, राज्य सरकार ने बुधवार को नियंत्रण उपाय बढ़ा दिए हैं। एक राज्य-स्तरीय नियंत्रण कक्ष खोला गया है। कोझिकोड जिले की नौ पंचायतों को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित किया गया और संक्रमित व्यक्तियों की संपर्क सूची में नाम आने के बाद क़रीब 800 लोगों को निगरानी में रखा गया है।
स्थिति की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई और सरकार ने कोझिकोड जिले में अगले 10 दिनों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को लागू कर दिया। जिले में सभी सार्वजनिक समारोह निलंबित कर दिए जाएंगे और सामाजिक समारोहों को केवल सीमित भागीदारी और पुलिस की पूर्व अनुमति के साथ ही अनुमति दी जाएगी।
केरल में इस बार पाया गया निपाह का यह प्रकार बांग्लादेशी वेरिएंट है, जो कम संक्रामक है लेकिन उच्च मृत्यु दर वाला है।
केरल में पहले भी निपाह वायरस के मामले आ चुके हैं। 2018 , 2019 और 2021 में इस संक्रमण के मामले आए थे। एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 18 में से 17 मरीजों की मौत हो गई थी।
निपाह एक जूनोटिक वायरस है जो संक्रमित जानवरों या दूषित भोजन से मनुष्यों में फैल सकता है। एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी यह फैल सकता है। इसके लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी शामिल हैं। गंभीर मामलों में मस्तिष्क में सूजन हो जाती है और मौत की वजह बनती है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि संक्रमण के स्रोत की पहचान करने के प्रयास जारी हैं। चूंकि फलों के चमगादड़ों को वायरस का प्रमुख स्रोत माना जाता है और जानवरों से मनुष्यों में संक्रमण का संदेह है, इसलिए चमगादड़ों द्वारा आंशिक रूप से खाए गए फलों के नमूने मृत पीड़ितों के गांवों से जुटाए गए। स्थानीय पंचायत अधिकारियों ने गांवों में घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया।
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