झारखंड विधानसभा का चुनाव निर्णायक मोड़ पर है, जहां सेकेंड फेज में 20 नवंबर को संथालपरगना और छोटानागपुर रिजन की 38 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। संथालपरगना में अपना किला बचाने के लिए इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पूरी ताकत झोंक दी है। झारखंड की सियासत में यह माना जाता है कि संथालपरगना से सत्ता का रास्ता गुजरता है।
संथालपरगना में आदिवासियों के लिए रिजर्व बरहेट सीट से हेमंत सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं। 1990 से इस सीट पर लगातार जेएमएम का कब्जा रहा है। अलबत्ता बीजेपी यहां से कभी चुनाव नहीं जीती है। बीजेपी ने हेमंत सोरेन के खिलाफ गमेलियल हेंब्रम को मैदान में उतारा है। 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर रहे सीमोन मालतो हाल ही में जेएमएम में शामिल हो गए हैं।
दूसरे चरण में ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी के उम्मीदवार अमर कुमार बाउरी, जेएमएम की विधायक और स्टार कैपेंनर कल्पना सोरेन, आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो के अलावा हेमंत सरकार के चार मंत्रियों के भी भाग्य का फैसला होना है।
2019 के चुनाव में संथालपरगना की 18 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ चार सीटों पर जीत मिली थी। जेएमएम- कांग्रेस गठबंधन ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार लोकसभा चुनावों में भी संथालपरगना में आदिवासियों के लिए रिजर्व दो- दुमका और राजमहल में जेएमएम ने जीत का परचम लहराया है। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनावों के नतीजे बीजेपी को खटकता रहा है।
संथालपरगना में जेएमएम ने 11 तथा गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने 5 और आरजेडी ने दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी 17 और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। संथालपरगना में इस बार लड़ाई की नई तस्वीर उभरी है। समीकरण भी लगातार बनते- बिगड़ते रहे हैं। हफ्ते भर के दौरान हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने संथालपरगना में जेएमएम और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों के समर्थन में कम से कम 50 चुनावी सभा की है। दो चरणों में हुए चुनाव में हेमंत सोरन ने 88 और कल्पना सोरेन ने 85 चुनावी रैलियां की है। इसके साथ ही वे सबसे बड़े लड़इया बनकर उभरे हैं।
इनके अलावा कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने भी इस रिजन में बड़ी सभा कर चुनावी फिजां को इंडिया ब्लॉक के पक्ष में करने की कोशिशें की है। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में पार्टी के सबसे बड़े ब्रांड और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, झारखंड में बीजेपी के सह चुनाव प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत एक दर्जन केंद्रीय नेताओं की सभा ने चुनाव को टसल वाला बना दिया है।
गूंजे नारे, जेल का जवाब जीत सेः संथालपरगना के आदिवासी इलाके में संताली में जेएमएम के दो नारे चुनावी फिजां में लगातार गूंजते रहे। पहला- जेल रेयाक जोबाब जीत ते। यानी जेल का जवाब जीत अथवा वोट से और दूसरा—आक् सार दो ओकोया.. आबुआ आबुआ.. इसका मतलब तीर धनुष किसका? हमलोगों का, हमलोगों का..। पहला नारा हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से जुड़ा है और दूसरा जेएमएम के सिंबल तीर धनुष से। संथालपरगना में आदिवासियों के बीच तीर धनुष और जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन के प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखा जाता है। हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने भी चुनाव प्रचार में इन दोनों नारे के साथ आदिवासियों की गोलबंदी की पुरजोर कोशिशे करते रहे। अधिकतर चुनावी सभा को इन दोनों नेताओं ने संताली भाषा में ही संबोधित किए। हेमंत सोरेन चुनावी सभा में इस बात पर भी जोर देते रहे हैं कि उन्हें बेगुनाही में पांच महीने जेल में रहना पड़ा।
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए पहले चरण में 13 नवंबर को 43 सीटों पर मतदान हुआ था। पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों से 3, 02,372 मतदान किए हैं। इसके अलावा अलावा आदिवासी इलाकों में कम से कम 15 रिजर्व सीटों पर 2019 की तुलना में करीब चार फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं। इस आंकड़े से जेएमएम खेमा उत्साहित है।
संथालपरगना में प्रमुख चेहरे और अग्नि परीक्षाः संथालपरगना में ही हेमंत सोरेन सरकार के तीन मंत्री, जामाताड़ा से कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ इरफान अंसारी, महगामा में दीपिका सिंह पांडेय तथा जेएमएम के हफीजुल हसन का मधुपुर सीट पर बीजेपी के उम्मीदवारों से सीधा मुकाबला है। ये तीनो सीटें अनारक्षित (सामान्य) हैं। जामताड़ा की सीट से ही चुनाव लड़ रही बीजेपी की उम्मीदवार सीता सोरेन का राजनीतिक भविष्य और कद दोनों दांव पर है। दरअसल लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सीता सोरेन जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई थीं। तब पार्टी ने उन्हें दुमका संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन जेएमएम के नलिन सोरेन से हार गईं।
नाला की सीट पर जेएमएम के उम्मीदवार और झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो बीजेपी के साथ प्रतिष्ठा की लड़ाई में शामल हैं। इनके अलावा आदिवासियों के लिए रिजर्व जामा, दुमका, शिकारीपाड़ा, महेशपुर, बोरियो और लिट्टीपाड़ा में जेएमएम का मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवारों से है। 2019 के चुनाव में ये सभी सीटें जेएमएम ने जीती थी। इस बार भी जेएमएम ने अपने सभी कद्दावार नेताओं को उतारा है। इससे बीजेपी के सामने चुनौती कड़ी है।
दुमका में हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन का सीधा मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार और पूर्व सांसद सुनील सोरेन से होता दिख रहा है। बोरियों में जेएमएम से बगावत कर बीजेपी का झंडा थामे और चुनाव लड़ रहे लोबिन हेंब्रम की भी अग्नि परीक्षा है। दरअसल संथालपरगना के आदिवासी इलाकों की राजनीति में यह भी माना जाता है कि जेएमएम छोड़कर किसी नेता के लिए बीजेपी में जाकर जमीन बचाना कठिन होता है। इसके कई उदाहरण भी हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी छोड़कर जेएमएम में शामिल हुईं पूर्व मंत्री डॉ लुइस मरांडी इस बार जामा से चुनाव में हैं और बीजेपी के लिए चुनौती बनी हैं। उधर गोड्डा, देवघर में आरजेडी के सामने बीजेपी से सीट छीनने और राजमहल में बीजेपी के सामने सीट बचाने की चुनौती है।
घुसपैठिये और डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा
बीजेपी पूरे चुनाव में घुसपैठिये और संथालपरगना में डेमोग्राफी चेंज का मुद्दे को आदिवासियों की अस्मिता से जोड़कर उन्हें उद्वेलित करने की मुहिम में जुटी रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा सभी केंद्रीय नेताओं ने इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ दलों पर जमकर निशाने साधते रहे हैं। राज्य में कथित तौर पर कुशासन और रोजगार को भी बीजेपी ने चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हुए एजेंडा में शामिल किया।
दूसरी तरफ इंडिया ब्लॉक ने जनगणना में आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू करने, पेसा कानून, जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा, अबुआ सरकार (अपनी सरकार), ओबीसी, एसटी, एससी के आरक्षण बढ़ाने को धार देने की कोशिशें की। सत्तारूढ़ दलों ने कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार का एक लाख 36 हजार करोड़ रुपए के बकाये के मामले को भी प्रमुखता से उछाला। इसके साथ ही घुसपैठिये के मुद्दे को लेकर जेएमएम के नेता लगातार बीजेपी पर सत्ता हासिल करने के लिए समाज को बांटने और नफरत फैलाने के आरोप लगाते रहे हैं।
बाबूलाल मरांडी, कल्पना सोरेन और छोनागपुर का ताना बाना
दूसरे चरण में ही उत्तरी छोटानागपुर की 18 सीटों पर चुनाव है। इनमें कोयलांचल की कई सीटें भी शामिल हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी को 8 तथा जेएमएम को चार सीटों पर जीत मिली थी। कायोलांचल में इस बार आधे दर्जन सीटों पर एनडीए और इंडिया ब्लॉक में कांटे की लड़ाई है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी धनवार की सीट से लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला जेएमएम और सीपीआई- एमएल के उम्मीदवारों से है। कल्पना सोरेन गांडेय की सीट से चुनाव में हैं। उनके खिलाफ खिलाफ मैदान में बीजेपी की मुनिया देवी हैं। पिछले जून महीने में कल्पना सोरेन ने गांडेय विधानसभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी। तब उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को 27000 वोटों से हराया था।
इसी रीजन में डुमरी की सीट पर जेएमएम की उम्मीदवार और सरकार में मंत्री बेबी देवी त्रिकोणीय मुकाबले का सामना कर रही हैं। हालांकि डुमरी में जेएमएम की पैठ रही है। बेबी देवी के पति जगरनाथ महतो पहले चार बार लगातार यहां से चुनाव जीते हैं। उनके निधन के बाद बेबी देवी ने यहां उपचुनाव जीता था।
झारखंड की राजनीति में न्यू आउटफिट और झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा के प्रमुख जयराम महतो दो सीट डुमरी के साथ बेरमो से भी चुनाव लड़ रहे हैं। इस चुनाव में जयराम महतो के साथ उनके दल का दमखम भी तौला जाना है। लोकसभा चुनावों में जयराम महतो ने आठ सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। उन्हें किसी सीट पर जीत नहीं मिली, लेकिन गिरिडीह संसदीय सीट से 3,47000 वोट हासिल कर जयराम महतो ने सभी को चौंकाया था। वे तीसरे नंबर पर थे, लेकिन इस संसदीय क्षेत्र की दो विधानसभा क्षेत्रों- डुमरी और गोमिया में जयराम महतो ने बढ़त हासिल की थी। जयराम महतो की पार्टी पूरे राज्य में 71 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। छोटानगपुर तथा कोयालंचल इलाके की कई सीटों पर उनके उम्मीदवार चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।
अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व और राज्य की हॉट सीट चंदनकियारी में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी के उम्मीदवार अमर कुमार बाउरी के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री उमाकांत रजक की सीधी भिड़ंत है। कांग्रेस के सामने धनबाद, बोकारो तथा बाघमारा की सीट बीजेपी से छीनने और झरिया की सीट बचाने की चुनौती है।
इस बार इंडिया ब्लॉक में शामिल सीपीआई-एमएल के लिए भी चुनाव चुनावी समीकरणों तथा उसकी राजनीतिक हैसियत के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। धनबाद के पूर्व सांसद और कोयला मजदूरों के प्रखर नेता कॉमरेड एके राय की 52 साल पुरानी पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का विलय पिछले सितंबर महीने में सीपीई-एमएल (भाकपा-)माले में हो गया है। सीपीआई एमएल धनवार के अलावा बगोदर, निरसा और सिंदरी की सीट पर चुनाव लड़ रही। इन चारों सीट पर उसकी टक्कर बीजेपी से है। दूसरे चरण में ही दक्षिणी और उत्तरी छोटानागपुर की पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी की सहयोगी आजसू पार्टी के लिए उसकी दमदारी के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
मणिपुर संघर्ष पर चुप्पी का मामला उछला
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 18 नवंबर को रांची में पत्रकारों से बातचीत में कांग्रेस नेता और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने झारखंड के जरूरी मुद्दों पर पार्टी का नजरिया सामने रखा। इसके साथ ही जातीय जनगणना पर भी जोर दिए। इसके अलावा मणिपुर हिंसा को लेकर उन्होंने कहा कि “मणिपुर में हिंसा शुरू हुए डेढ़ साल से ज्यादा हो गए, लेकिन हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री आज तक मणिपुर नहीं गए। मैं मणिपुर गया हूं, मैंने अपनी आंखों से देखा है कि वहां क्या हो रहा है। मणिपुर में हिंसा रोकने के लिए हमारा सरकार को पूरा समर्थन है, लेकिन सरकार हिंसा नहीं रोक रही है। हमने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में बताया था कि अगर आप नफरत फैलाएंगे तो आग लगेगी, यही आज मणिपुर में हो रहा है।“ चुनावों के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने भी प्रचार के दौरान मणिपुर संघर्ष को लेकर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल खड़े करते दिखे।
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