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अब पेशाब से ईंट बनाइए और हवा को ज़हर होने से बचाइए!

पेशाब से ईंटें भी बन सकती हैं! यह खोज अभी हाल में दक्षिण अफ़्रीका के केपटाउन विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग छात्रों ने की है। इनका दावा है कि ये ईंटें सामान्य ईंटों के मुक़ाबले ज़्यादा मज़बूत भी होंगी, ज़रूरत पड़ने पर इनकी मज़बूती और बढ़ाई भी जा सकती है। इन्हें बनाने के लिए किसी ईंट भट्टे की ज़रूरत भी नहीं। बस हवा में सूखने के लिए रख दीजिए, ईंटें तैयार हो जाएँगी। पर्यावरण भी बचेगा, पेशाब भी खप जायेगा, और ईंटें बेच कर पैसा भी मिलेगा। अब और क्या चाहिए!केपटाउन विश्वविद्यालय के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. डिलन रैंडल के निर्देशन में यह खोज उनके छात्रों सूज़ान लाम्बे और वुखेटा मुखारी ने की। ईंटे बनाने के लिए मनुष्य के पेशाब को रेत और बैक्टीरिया के साथ मिला कर रखा जाता है। जिस शक्ल में ईंट बनानी हो, वैसे साँचे में इस मिश्रण को डाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को माइक्रोबियल कॉर्बोनेट प्रिसिपिटेशन कहते हैं और इससे यूरीज़ नाम का एन्ज़ाइम पैदा होता है, जो एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया के दौरान पेशाब के यूरिया को तोड़ता है और कैल्शियम कॉर्बोनेट का निर्माण करता है। बस हो गई ईंट तैयार।
सामान्य ईंट बनाने के लिए ईंट भट्टे में 1400 डिग्री सेल्सियस का तापमान रखना पड़ता है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाई-ऑक्साइड गैस पैदा हो कर हवा में घुलती है जबकि पेशाब से ईंट बनाने की इस प्रक्रिया में आग की कोई ज़रूरत ही नहीं।
ख़ास बात यह कि ईंट को सूखने रख दीजिए। वह धीरे-धीरे कड़ी होती जाएगी। बस इस प्रक्रिया में एक ही ख़ामी है और वह यह कि पेशाब के कारण ईंट बनाने के मिश्रण से अमोनिया की बदबू आती है। लेकिन डॉ. रैंडल का कहना है कि यह बदबू 48 घंटों तक तो रहती है, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे पूरी तरह ग़ायब हो जाती है।आमतौर पर चार से छह दिन में ईंट सूख कर तैयार हो जाती है। लेकिन अगर आपको ज़्यादा मज़बूत ईंट चाहिए, तो उसे कुछ दिन और छोड़ दीजिए। जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, बैक्टीरिया और यूरीज़ की सक्रियता से ईंट की मज़बूती और बढ़ती जाएगी। आप चाहें तो इस प्रक्रिया से सीधे ही बड़े-बड़े खम्भे भी तैयार कर सकते हैं। डॉ. रैंडल का कहना है कि यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है, जैसे कि समुद्र में सीप का निर्माण।
Make bricks from your urine and save the environment - Satya Hindi
सूज़ान और वुखेटा ने ईंटें बनाने के लिए उस पेशाब का इस्तेमाल किया, जो पेशाब से ठोस खाद बनाने की प्रक्रिया के बाद बचा था। यानी पेशाब से पहले खाद बनाई गई और इस प्रक्रिया में बच कर बाहर निकले पेशाब को रेत में मिला कर फिर ईंट बनाई गई। इस तरह, बिलकुल बेकार समझे जानेवाले मानव मूत्र का दोहरा इस्तेमाल कर लिया गया। सिंथेटिक यूरिया से ईंट बनाने का प्रयोग कुछ साल पहले अमेरिका में किया गया था। लेकिन इसमें काफ़ी ऊर्जा ख़र्च होती है, इसलिए फिर बात आगे नहीं बढ़ी।लेकिन एक ईंट बनाने के लिए कितने पेशाब की ज़रूरत पड़ेगी? क़रीब 25 से 30 लीटर पेशाब की। एक सामान्य मनुष्य एक बार में आमतौर पर दो से तीन सौ मिलीलीटर तक पेशाब करता है। यानी एक आदमी जब सौ बार पेशाब करे, तो एक ईंट बनाने लायक़ सामग्री मिलेगी। अपने आप में यह एक बड़ा सवाल है कि ईंट बनाने के लिए पेशाब इकट्ठा कैसे किया जायगा, उसे ढुलाई कर लाया कैसे जायगा और उसका भंडारण कहाँ और कैसे किया जायगा। फ़िलहाल अभी इन सवालों के जवाब नहीं हैं।
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क़मर वहीद नक़वी
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