वैसे तो साल 2020 दुनिया भर के लिए कोरोना जैसी त्रासदी लाने वाला साल बना जहाँ लाखों लोगों को दुनिया भर में कोरोना ने शिकार बनाया। देश की अदालतों को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा और उनके काम-काज को 360 डिग्री तक बदल दिया। वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से जहाँ देश की सर्वोच्च अदालत को सुनवाई और फ़ैसले देने पड़े वहीं सभी हाईकोर्ट और निचली अदालतों के वकीलों को याचिका दाखिल करने से लेकर सुनवाई तक सब कुछ ऑनलाइन ही करनी पड़ी। फिर भी शीर्ष अदालत ने जनहित से जुड़े और जनमानस में उत्सुकता भरने वाले विभिन्न ऐतिहासिक और भविष्यगामी फ़ैसले दिए। पढ़िए साल 2020 के कुछ महत्त्वपूर्ण फ़ैसले।
इंटरनेट का अधिकार
मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर, लद्दाख को केन्द्र शासित राज्य बनाने के फ़ैसले के बाद जम्मू और कश्मीर के इलाक़ों में इंटरनेट की व्यवस्था को रद्द कर दिया गया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू और इंटरनेट लॉकडाउन के ख़िलाफ़ दर्जन भर याचिकाएँ दाखिल की गयीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है, इस स्वतंत्रता का दायरा इंटरनेट के माध्यम से व्यवसाय और कारोबार पर भी लागू होता है। अगर किसी व्यक्ति को इंटरनेट के माध्यम से किए जा रहे व्यवसाय या कारोबार से रोका जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत यह उसके सांविधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप होगा।
साथ ही इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट में क्रिमिनल कोड की धारा 144 पर भी अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि प्रशासन अनिश्चितकाल तक और बिना किसी ठोस कारणों से धारा 144 को अनिश्चितकाल के लिए लागू नहीं कर सकता। धारा 144 को लागू करने के साथ उसकी अवधि को लेकर तर्कसंगत कारणों का होना ज़रूरी है।
एससी-एसटी मामलों में फ़ैसला
अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव कर दिया था, एससी-एसटी एक्ट के मामले में दर्ज एफ़आईआर पर तुरंत गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए कहा था कि एफ़आईआर दर्ज करने के बाद 7 दिन जाँच होगी, अगर आरोपी एससी-एसटी एक्ट के तहत प्रारम्भिक तौर से संलिप्त पाया जाता है तभी गिरफ्तारी होगी।
देशभर में इस फ़ैसले से उठे विरोध के बाद केन्द्र सरकार ने क़ानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी कर दिया था। केन्द्र सरकार के संशोधन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गयी। जिसे सुप्रीम कोर्ट की दूसरी पीठ ने सही क़रार दिया।
चुनाव: आपराधिक रिकॉर्ड ज़रूरी
इसी साल राजनीति में बढ़ते अपराध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया। सभी राजनैतिक दलों को, जो अपने प्रत्याशी लोकसभा या विधानसभा चुनावों के लिए खड़े कर रहे हों, वे प्रत्याशी की घोषणा के 48 घंटों के भीतर उस प्रत्याशी के आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक़, प्रत्याशी के चुनाव लड़ने की घोषणा के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने के दो हफ्ते के भीतर, प्रत्याशी के सभी आपराधिक रिकॉर्ड स्थानीय न्यूज़पेपर, पार्टी के वेबपोर्टल और सोशल मीडिया एकाउंट में डालनी होगी।
सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन
17 साल लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक़ मिलने का रास्ता साफ़ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद आर्मी में महिलाओं को पुरुष अफ़सरों से बराबरी का अधिकार मिल गया है। अभी तक आर्मी में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष सैनिकों को ही स्थाई कमीशन का विकल्प मिल रहा था, लेकिन महिलाओं को यह हक नहीं था। वायुसेना और नौसेना में महिला अफ़सरों को स्थाई कमीशन मिल रहा है। फ़ैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया।
निर्भया कांड: फाँसी पर मुहर
साल 2012 के निर्भया कांड के दोषियों को लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद फांसी दी गयी। सुप्रीम कोर्ट के सामने फांसी देने के दिन के पहले आधी रात को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी 4 दोषियों की फांसी की सजा रोकने से इंकार कर दिया। 16 दिसंबर 2012 को पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया के साथ चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। घटना में 6 आरोपी शामिल थे, 1 को अदालत ने जुवैनाईल करार दिया जिसके कारण 3 साल बाद उसे रिहा कर दिया गया, जबकि एक आरोपी रामसिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर ली। बाक़ी बचे 4 दोषियों को फांसी पर लटकाया गया।
गवर्नर के अधिकार
राज्यों की विधानसभाओं में शक्ति परीक्षण को लेकर उठने वाले तमाम विवादों में से एक विवाद यह है कि क्या गवर्नर फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है जबकि विधानसभा का सत्र चल रहा हो। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के मामले पर सीएम शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर विस्तृत सुनवाई के बाद कहा कि गवर्नर की शक्ति है कि वह हाउस के चलने के दौरान भी शक्ति परीक्षण को कह सकता है।
मध्य प्रदेश में पूर्व सीएम कमलनाथ के समय 22 कांग्रेस विधायकों के अलग हो जाने के बाद संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। जिस पर गर्वनर ने सरकार को शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश जारी किया था।
पद्मानाभ मंदिर पर फ़ैसला
सुप्रीम कोर्ट ने पद्मानाभ मंदिर पर अहम फ़ैसला सुनाते हुए शेबियत का हक़ ट्रावनकोर की रॉयल फैमिली को दिया है। केरल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि रॉयल फैमिली के अंतिम शासक का देहांत हो गया था इसलिए पद्मानाभ मंदिर की देख-रेख की ज़िम्मेदारी सरकार को जाती है। इस आदेश के ख़िलाफ़ रॉयल फैमिली ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने शेबियत का अधिकार रॉयल फैमिली को सौंपते हुए मंदिर की व्यवस्था के लिए कमेटी बनाने का निर्देश जारी किया।
सुशांत केस की जांच सीबीआई को
साल 2020 के सबसे विवादास्पद केस की जाँच सीबीआई के हवाले करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई पुलिस पर लगे सभी आरोपों पर विराम लगा दिया। एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने अपने मुम्बई स्थित आवास पर आत्महत्या कर ली थी, जिसके बाद इस केस में जबरदस्त मीडिया ट्रायल हुआ। आत्महत्या की जांच कर रही मुम्बई पुलिस पर आरोप लगाया गया कि वह जानबूझकर सुशांत सिंह राजपूत की मौत में हत्या का ऐंगल नहीं देख रही और उस दिशा में जांच नहीं कर रही। सुप्रीम कोर्ट ने मुम्बई पुलिस की उस समय तक की जांच को सही ठहराते हुए कहा कि न्याय की मांग को देखते हुए इस मामले को सीबीआई जांच की तरफ़ भेजा जाता है।
प्रशान्त भूषण पर 1 रुपये जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील प्रशान्त भूषण को कोर्ट की अवमानना के मामले में दोषी करार देते हुए एक रुपया जुर्माना भरने का आदेश दिया। साल 2020 के सबसे विवादास्पद न्यायिक फ़ैसले के तौर पर देखा गया। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे नाटकीय केसों में शामिल इस केस में जहाँ सुप्रीम कोर्ट वकील प्रशान्त भूषण को सज़ा देने पर अमादा था, वहीं सुप्रीम कोर्ट के जजों और वकीलों को प्रशान्त भूषण ने तब चकित कर दिया जब उन्होंने अपने कहे कथन पर माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया था। वकील प्रशान्त भूषण ने इसको लेकर एक विस्तृत जवाब भी दाखिल किया जिसमें उन्होंने साफ़ कहा कि न्यायिक व्यवस्था में चल रही ख़राबियों को उजागर करना उनका कर्तव्य था। वकील प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर गंभीर सवाल उठाते हुए ट्वीट किए थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए उन पर अवमानना का केस चलाया।
बेटी को पिता की सम्पति में हक़
सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के पक्ष में अहम फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ( Hindu Succession Act in Hindi), 2005 को उन बेटियों पर बराबर रूप से लागू किया जा सकता है जो जब क़ानून लाया गया था तब जीवित थी, भले ही उनके पिता जीवित थे या नहीं। इसका मतलब है, जो बेटियाँ 2005 से पहले पैदा हुई थीं, उन पर संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का कोपरसेनरी अधिकार है। कोपरसेनरी से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो जन्म से पैतृक संपत्ति पर क़ानूनी अधिकार का दावा कर सकता है।
तय जगहों पर ही धरना-प्रदर्शन
दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाक़े में क़रीब 2 महीने तक चले नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) को लेकर दाखिल याचिका पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की तय की हुई जगह पर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति दी जा सकती है। शाहीन बाग़ के इलाक़े में चले प्रदर्शन के कारण नोएडा और साउथ दिल्ली को जोड़ने वाली सड़क 2 महीने तक बंद रहा, जिसे हटाने के लिए याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले ही कोविड के प्रभाव के चलते प्रदर्शनकारी हट गये थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अपना आदेश सुनाया कि धरना प्रदर्शन क्या किसी भी जगह पर बैठकर किया जा सकता है।
हिरासत में प्रताड़ना
पुलिसिया ज़्यादती के शिकार लोगों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अहम क़दम उठाते हुए केन्द्र सरकार को आदेश दिया है कि सीबीआई, ईडी, एनआईए, एनसीबी, डीआरआई, एसएफ़आईओ जैसी जाँच ऐजेंसियों के दफ्तरों में सीसीटीवी लगाये जाएँ जिससे कि अगर जाँच के दौरान किसी भी शख्स के साथ ज़्यादती या मारपीट की जाती है तो पीड़ित सीसीटीवी के माध्यम से उस शख्स की पहचान कर सके और उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इन सब जाँच एजेंसियों के अलावा उन सब जांच एजेंसियों के दफ्तरों में सीसीटीवी लगे जिनको गिरफ्तार करके पूछताछ करने का अधिकार है।
हाईकोर्ट के अधिकार
उच्च न्यायालयों के अधिकारों पर विस्तृत सुनवाई के बाद फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट जमानत पर फ़ैसला ले सकती हैं। हाईकोर्ट को जमानत पर फैसला लेने की पूरी स्वतंत्रता है और यह संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत है’। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट और निचली अदालतों पर नाराज़गी भी जताई कि ये अदालतें जमानत देने से बचती हैं जिनके कारण सुप्रीम कोर्ट पर जमानत याचिकाओं का भार बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्णब गोस्वामी की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया जहाँ अर्णब गोस्वामी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहकर जमानत देने से इंकार कर दिया था कि अनुच्छेद 226 में उसे जमानत देने का अधिकार नहीं है। मुम्बई पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के मामले में अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की थी।
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