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यूजीसी का नया ड्राफ्टः ये नियम कर देंगे उच्च शिक्षा का कबाड़ा

उच्च शिक्षा (हायर एजुकेशन) संस्थानों में कुलपतियों (वी-सी) और फैकल्टी की नियुक्ति के संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सोमवार को नियमों का ड्राफ्ट जारी किया है। उस पर देशभर में गंभीर चिंता जताई जा रही है। दरअसल, इन प्रस्तावित नियमों के जरिये केंद्र सरकार ने वीसी और फैकल्टी की नियुक्ति में राज्य सरकारों का पूरा दखल ही खत्म करने का इंतजाम किया है। गैर बीजेपी शासित राज्यों में पहले से ही वीसी और फैकल्टी की नियुक्ति में वहां की सरकार और राज्यपाल के बीच रस्साकशी चल रही थी, कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचे।
इस मसौदे में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा के स्टैंडर्ड में बदलाव का प्रस्ताव किया गया है। इतना ही नहीं इन्हें चुनने या नियुक्त करने के लिए जो कमेटियां हैं, उनके ढांचे में भी बदलाव का प्रस्ताव किया गया है।
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अभी तक राज्य सरकारों ने यह स्थिति अपनाई हुई थी कि यूजीसी के नियम उनकी उच्च शिक्षण संस्थाओं पर बाध्यकारी नहीं हैं। अगर कोई राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को नियंत्रित करने वाले संबंधित अधिनियमों को औपचारिक रूप से अपना लेती है तो ही वो मानना बाध्यकारी होता है। लेकिन यूजीसी ने अब अपने ड्राफ्ट में प्रस्ताव किया है कि राज्यों के जो उच्च शिक्षण संस्थान नए नियमों का उल्लंघन करेंगे तो उन पर कड़ी कार्रवाई होगी। यहां तक कि यूजीसी उनके डिग्री कार्यक्रम की मान्यता खत्म कर सकता है। उनके ऑनलाइन कार्यक्रम रोके जा सकते हैं। 
यूजीसी के नए मसौदे के अनुसार, वीसी सर्च पैनल में तीन सदस्य होंगे। राज्य के गवर्नर यानी चांसलर का नामित सदस्य, यूजीसी का नामित सदस्य, सीनेट या सिंडिकेट जैसे विश्वविद्यालय के शीर्ष निकाय द्वारा नामित तीसरा सदस्य।
मौजूदा समय में स्टेट यूनिवर्सिटीज के लिए वीसी सर्च पैनल संबंधित विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार बनते हैं। ज्यादातर विश्वविद्यालयों में गवर्नर का नामित शख्स, सीनेट और सिंडिकेट से नामित व्यक्ति और राज्य सरकार का एक नामित कोई शख्स तीन सदस्यीय पैनल में होता है। 
यूजीसी के पहले के दिशानिर्देशों में कहा गया था कि सभी कमेटियों में एक चौथा सदस्य, यूजीसी अध्यक्ष का नामित व्यक्ति शामिल किया जाना चाहिए। हालाँकि, कई राज्य सरकारों ने इसका कड़ा विरोध किया था, क्योंकि इससे चयन प्रक्रिया में संतुलन राज्यपाल और यूजीसी की ओर झुक जाएगा।

यूजीसी के नए नियम राज्य सरकारों की हालत को और खराब कर देंगे। क्योंकि प्रस्तावित तीन सदस्यीय पैनल में कोई राज्य सरकार का मेंबर नहीं होगा और पूरी कमेटी पर राज्यपाल और यूजीसी का कब्जा होगा। राज्यपाल और केंद्र के अधीन काम करने वाला यूजीसी अध्यक्ष जिन्हें चाहेगा वीसी बनायेगा और फैकल्टी में रखेगा।


यह स्पष्ट है कि नया मसौदा उन राज्यों को टारगेट करने के लिए तैयार किया गया है जो राज्य विश्वविद्यालयों में राज्यपाल के हस्तक्षेप का विरोध कर रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार का वीसी चयन प्रक्रिया में कोई दखल नहीं होगा।
अन्ना विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी ई बालागुरुसामी का कहना है कि “यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है कि राज्य सरकार की राज्य विश्वविद्यालय में वीसी के चयन में कोई भागीदारी नहीं होगी।” उन्होंने कहा कि यूजीसी और चांसलर पद के उम्मीदवार दोनों ही केंद्र सरकार का पक्ष लेंगे और इससे राज्यों के विश्वविद्यालयों के संचालन में बाधा आएगी।
कई शिक्षाविद नाम न छापने की शर्त पर इसी तरह की चिंताएं साझा कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले तो ऐसा भी होता था कि राज्यपाल के नामित शख्स को भी वास्तव में राज्य सरकार चुनती थी। लेकिन 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से समीकरण बदल गए क्योंकि राज्यपालों ने अपनी पसंद के उम्मीदवारों को चुनने में अपनी शक्ति का दावा करना शुरू कर दिया। 

राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी)  को लेकर भी विवाद

यूजीसी मसौदे में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) को लेकर भी बदलाव का प्रस्ताव है। नये नियमों में प्रस्ताव किया गया है कि अब सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए इसे पास करना अनिवार्य योग्यता नहीं होगी। दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के सदस्यों इसका दबी जुबान से विरोध किया है। इसके सदस्यों ने एक बयान जारी कर कहा कि नया भर्ती मानदंड अत्याधुनिक रिसर्च से हटकर केवल मौजूदा ज्ञान को दोहराने पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि मुख्य योग्यता समाप्त हो गई है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी एसी सदस्यों ने कहा कि किसी विषय में विशेषज्ञता को खत्म करने से फैकल्टी की गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर कमी आएगी। नये नियम भर्ती मानदंड में सामान्य पाठ्यक्रमों का समर्थन करते हैं। कहीं कई विशेषज्ञता नहीं। यह घटियापन है।
दिल्ली में एक मशहूर कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर ने यूजीसी के नये ड्राफ्ट नियमों पर कहा कि शैक्षणिक योग्यता, रिसर्च पेपर और शिक्षण अनुभव का दौर खत्म होने वाला है। अब भर्ती मानदंड अत्याधुनिक अनुसंधान से हटकर सिर्फ मौजूदा ज्ञान को दोहराने पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि मुख्य योग्यता को खत्म कर दिया गया है।
कई राज्यों में चल रहा है विवादः वीसी का पद लंबे समय से राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच रस्साकशी का मुद्दा रहा है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल में तो विवाद चरम सीमा पर जा पहुंचा था। अप्रैल 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस से बंगाल सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए उम्मीदवारों की सूची में से छह उपयुक्त लोगों को कुलपति नियुक्त करने को कहा।
बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने आरोप लगाया कि राज्यपाल नियुक्तियों और पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 पर अपनी सहमति नहीं दे रहे हैं, जिससे कुलपतियों की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी में सदस्यों की संख्या बढ़ गई है। भारतीय जनता पार्टी ने इस आधार पर विधेयक का विरोध किया कि इससे पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ दल को कुलपतियों की नियुक्ति पर अधिक नियंत्रण मिल जाएगा।
इससे पहले मई 2022 में तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच भी ऐसा ही टकराव हुआ था जब धनखड़ ने रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के लिए नया वीसी नियुक्त किया था।
2022 में, तमिलनाडु में भी इसी तरह की खींचतान देखी गई थी जब राज्य सरकार ने 13 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की पावर को मुख्यमंत्री को ट्रांसफर करने की मांग करते हुए दो विधेयक पारित किए थे। राज्यपाल आरएन रवि ने विधेयकों पर अपनी सहमति रोक ली। 2023 में इन विधेयकों को फिर से अधिनियमित किया गया। तमिलनाडु में गवर्नर आरएन रवि की हठधर्मिता अभी भी जारी है।
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इससे पहले 2021 में, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को पत्र लिखकर विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में संशोधन करने के लिए कहा था ताकि वह चांसलर बने रह सकें। आरिफ अब बिहार के राज्यपाल बन गये हैं। दिसंबर 2022 में, कई हफ्तों के टकराव के बाद, केरल सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों के प्रशासन से संबंधित कानूनों में संशोधन करने और आरिफ को चांसलर पद से हटाने के लिए विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक पेश किया।
2020 से पहले छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी ऐसे ही मामले देखने को मिले थे। उस समय वहां गैरभाजपाई सरकारें थीं।
यूजीसी के नये नियमों को लेकर आशंका यह भी जताई जा रही है कि इसके जरिये आरएसएस के लोग गैरभाजपा शासित राज्यों के विश्वविद्यालयों में भी अपनी पैठ बनायेंगे। कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में वीसी की नियुक्ति विवाद का विषय रही है। लेकिन नये नियम लागू होते ही राज्यों के विश्वविद्यालयों में केंद्र का दखल बढ़ जायेगा।
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क़मर वहीद नक़वी
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