विपक्षी नेताओं ने मंगलवार 12 सितंबर को अमेरिकी सेब पर से आयात शुल्क को कम करने के केंद्र सरकार के हालिया कदम का विरोध किया है। विपक्ष ने सरकार से सवाल किया है कि अमेरिकी सेब से आयात शुल्क कम क्यों किया गया है? उनका कहना है कि इससे जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के लाखों सेब किसानों को नुकसान होगा।
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने सोमवार को कहा है कि जब पीएम मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे तो वह कहा करते थे कि हिमाचल उनका दूसरा घर है और उनकी सरकार बनने पर वॉशिंगटन के सेब पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगाया जायेगा। लेकिन जब वह पीएम बने तो रिपोर्टों के अनुसार जी 20 के दौरान केंद्र सरकार ने निर्णय लिया कि वाशिंगटन सेब पर केवल 15 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया जाएगा, जो कभी 70 प्रतिशत था।
प्रियंका गांधी ने कहा कि अमेरिका से आने वाले सेब पर से आयात शुल्क कम कर दिया गया है। इसका मतलब है कि उनका आयात आसान हो जाएगा। दूसरी ओर शिमला में सेब की पेटियों को खरीदने का काम कुछ बड़े उद्योगपतियों ने कम कर दिया है। उन्होंने कहा कि जब यहां के किसान नुकसान में हैं और पीड़ित हैं तो सरकार को यहां के किसानों की मदद करनी चाहिए न कि अमेरिका के किसानों की मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश अभी एक बड़ी आपदा से जूंझ कर निकल रहा है इसलिए कम से कम इस समय तो ऐसा नहीं करना चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी सोमवार को केंद्र से अपने फैसले पर दुबारा विचार करने की अपील की है। इन नेताओं का कहना है कि इससे घरेलू किसानों की बिक्री को नुकसान होगा।
सेब के साथ-साथ अखरोट, बादाम और अमेरिका से आयातित कुछ अन्य उत्पादों पर 20 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क हटा दिया गया है। यह कदम इस साल जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा से कुछ दिन पहले उठाया गया था।
2019 में लगाया गया था यह अतिरिक्त आयात शुल्क
इंडियन एक्सप्रेस वेबसाइट पर लगी रिपोर्ट कहती है कि सेब के साथ-साथ अखरोट, बादाम और अमेरिका से आयातित कुछ अन्य उत्पादों पर 20 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क इस साल जून में हटा दिया गया था। भारत और अमेरिका विश्व व्यापार संगठन में चल रहे छह विवादों को सुलझाने के लिए एक समझौते पर पहुंचने में सफल रहे थे।
यह 20 प्रतिशत का शुल्क 2019 में अमेरिका द्वारा भारत के कुछ स्टील और एल्यूमीनियम उत्पादों पर टैरिफ में क्रमशः 25 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद जवाबी कदम के तौर पर भारत ने लगाया गया था। वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त सचिव पीयूष कुमार ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि भारत 20 प्रतिशत शुल्क हटाकर कुछ भी अतिरिक्त नहीं दे रहा है और ऐसा नहीं है कि हमने अमेरिकी सेबों के लिए बाढ़ का द्वार खोल दिया है।
अमेरिकी सेब पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगता रहेगा
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के इस कदम के बावजूद बाजार में अमेरिकी सेबों की बाढ़ नहीं आ आएगी। इसके कारण हैं कि अमेरिकी सेब पर 50 प्रतिशत का आयात शुल्क लगता रहेगा। यह शुल्क सभी देशों से आयातित सेब पर लागू है और अब केवल अतिरिक्त शुल्क हटा दिया गया है। दूसरा, अमेरिकी सेब पर प्रतिशोधात्मक टैरिफ ने भारत के फलों के कुल आयात में वृद्धि को नहीं रोका है। माना जा रहा है कि अमेरिकी सेब तुर्की या इटली के सेबों की जगह ले लेते हैं, तो इससे आयात की कुल मात्रा में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं होगी। प्रतिशोधात्मक शुल्क के बाद, अमेरिकी या वाशिंगटन सेब ने तुर्की और ईरान के फलों के मुकाबले बाजार हिस्सेदारी में भारी गिरावट की है। ये दोनों देश पिछले तीन वर्षों में भारत के शीर्ष आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरे हैं। यहां तक कि चिली, इटली और न्यूजीलैंड जैसे अन्य स्थापित निर्यातकों से भी आगे हैं। अतिरिक्त शुल्क हटाने से अमेरिकी सेब बाजार हिस्सेदारी वापस हासिल करने में सक्षम हो सकते हैं।
हालांकि एक विचार यह भी सामने आ रहा है कि अतिरिक्त शुल्क को खत्म करने के निर्णय का समय घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुंचा सकता है।
सोलन और हिमाचल प्रदेश की निचली पहाड़ियों में जुलाई के मध्य में सेब की कटाई शुरू हो जाती है। यह शिमला की मुख्य बेल्ट में मध्य अगस्त से मध्य सितंबर तक और किन्नौर की अभी भी अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक फैला हुआ है। कश्मीर घाटी में कटाई सितंबर में शुरू होती है और अक्टूबर में चरम पर होती है, और आवक दिसंबर की शुरुआत तक जारी रहती है।
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