तमिलनाडु और खासकर इसके दो जिलों तिरुपुर और कोयंबटूर में कथित तौर पर हिंदी बोलने वाले मजदूरों के खिलाफ हिंसा की खबरें राजनीतिक मोहरा बन चुकी हैं। ऐसी ज्यादातर शिकायतें बिहार और कुछ हद तक झारखंड के अखबारों में और दूसरे मीडिया प्लेटफार्म से सामने आईं। जब तमिलनाडु की सरकार और उसके अफसरों द्वारा सच्चाई बताने के साथ अफवाह फैलाने पर कार्रवाई का सख्त बयान जारी किया गया तो अखबारों का रवैया नर्म हो गया।
इस सिलसिले में एक अखबार के संपादक और भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता सहित कई लोगों पर केस दर्ज किया गया है। इसके अलावा बिहार भाजपा के ट्विटर अकाउंट होल्डर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है।
तमिलनाडु में टेक्सटाइल और संबंधित उद्योगों में लगभग 12 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं। इन अफवाहों से जहां नेता अपनी राजनीति चमका रहे हैं वहीं इन दो जिलों के औद्योगिक घराने इस बात से चिंतित हैं कि अगर प्रवासी मजदूर नहीं रहे तो उनके कारखाने कैसे चलेंगे। इससे पहले महाराष्ट्र में बिहारी और हिंदी बोलने वाले प्रवासी मजदूरों के खिलाफ वहां के राजनीतिक पार्टियों ने जरूर संगठित प्रयास किया था लेकिन तमिलनाडु से ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है।
तमिलनाडु में बिहार और दूसरे हिंदी प्रदेशों के मजदूरों के खिलाफ व्यापक हिंसा की बातें 1 मार्च से इंटरनेट मीडिया पर फैलनी शुरू हुई थीं। इसमें दो हत्या की वीडियो क्लिप भी थीं जिन्हें यह कहकर वायरल किया गया के यह बिहारी मजदूरों के खिलाफ तमिलनाडु के स्थानीय लोगों की हिंसा से संबंधित हैं।
तमिलनाडु डीजीपी सैलेन्द्र बाबू द्वारा कहा गया है कि यह वीडियो पुराने हैं और इन्हें तमिलनाडु के स्थानीय लोगों द्वारा हिंदी बोलने वालों के खिलाफ हिंसा बताना कोरी अफवाह है। लेकिन तब तक अफवाह फैलाने वालों ने अपना काम कर दिया था।
जब बिहार के लोग तमिलनाडु से वापस आने लगे तो लौटने वालों ने अपने ऊपर किसी हिंसा की बात तो नहीं कही लेकिन यह जरूर बताया कि उन्होंने हिंसा की बात व्हाट्सएप आदि पर देखकर ही वापस होने का फैसला किया। यह बात भी ध्यान में रखने की है कि बिहार के लोग होली में बड़ी संख्या पर अपने गांव लौटते हैं और यह भी संभव है कि वे होली में आना चाह रहे हों लेकिन इस अफवाह के बाद उन्होंने लौटने में थोड़ी जल्दी की।
अब इस विवाद को एक और खबर के साथ देखने से अंदाजा लगता है कि इसके पीछे कैसी राजनीति काम कर रही है। इस समय बिहार विधान मंडल का बजट सत्र चल रहा है। अखबारों में तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ हिंसा की छपी अपुष्ट खबर के आधार पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने सदन में यह मुद्दा उठाते हुए तेजस्वी प्रसाद यादव को भी टारगेट किया क्योंकि वह एक मार्च को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री केएम स्टालिन को जन्मदिन की बधाई देने चार्टर्ड प्लेन से चेन्नई गए थे। इस पर तेजस्वी यादव ने कटाक्ष किया कि उन्होंने अडानी का जहाज़ तो इस्तेमाल नहीं किया।
हिंसा की अफवाह पर तमिलनाडु सरकार ने अपनी ओर से हिंदी अंग्रेजी और तमिल में स्पष्टीकरण जारी कर इस मामले को काफी हद तक शांत किया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी तमिलनाडु से संबंध रखने वाले बिहार के अफसरों की एक टीम बनाकर चेन्नई भेजी जिसने अब यह रिपोर्ट दी है कि कोई संगठित या व्यापक हिंसा की बात बिल्कुल झूठी है।
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने भी इस मुद्दे पर नीतीश कुमार सरकार को घेरने की कोशिश की और यह भी कहा कि अगर यह खबरें झूठी है तो वह सदन में माफी मांग लेंगे। बिहार भाजपा के लिए यह बात भी अजीबोगरीब है कि तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने तमिलनाडु में हिंदी बोलने वाले और खासकर बिहार के मजदूरों के खिलाफ किसी भी हिंसा की बात से इंकार किया है। हालांकि अन्नामलाई ने भी अफवाह का इस्तेमाल एमके स्टालिन को निशाना बनाने में किया और कहा कि यह उनकी राजनीति का ही नतीजा है कि उत्तर भारतीय लोगों के खिलाफ ऐसा माहौल बना है।
बिहार भाजपा के लिए यह बात भी असहज करने वाली थी कि बिहार से संबंध रखने वाले तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने भी बयान जारी कर कहा कि वहां बिहारी मजदूरों के खिलाफ हिंसा की सभी बातें कोरी अफवाह है। उन्होंने उत्तर भारत के श्रमिकों से घबराने और असुरक्षित महसूस न करने का आग्रह किया।
तमिलनाडु के राज्यपाल के इस बयान के साथ उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी हमलावर होने की कोशिश करते हुए कहा कि केंद्र को चाहिए कि वह स्थिति साफ करे और अपने राज्यपाल से रिपोर्ट मांगे। उन्होंने पूछा कि तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ कोई घटना यदि हुई है तो केंद्र सरकार चुप क्यों है?
इस मामले में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने भी भाजपा को निशाना बनाते हुए उसे कनफुकवा पार्टी बताया। उन्होंने तो लिखा, लगे रहो मुन्ना भाई …अफवाह फैलाते रहो, नाव डूबने तो तय ही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने यह कोशिश की थी कि तमिलनाडु के मामले को उछाल कर एक साथ बिहार और तमिलनाडु दोनों जगह विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया जाए। लेकिन अब जो तथ्य उभरे हैं उसके बाद भारतीय जनता पार्टी बिहार में बैकफुट पर नजर आती है।
बिहार विधान मंडल में होली के बाद सत्र शुरू होने के दौरान इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को सत्ताधारी दलों द्वारा घेरे जाने की उम्मीद है। दूसरी ओर अखबार के संपादकों के लिए भी यह बात सोचने की है कि सिर्फ एक दो वीडियो के आधार पर किसी खबर को फैलाकर छापना कैसे उचित हो सकता है। इस मामले में अखबार भी अब सतर्क नजर आ रहे हैं।
अपनी राय बतायें