सेप्टिक टैंक, नाली और मल जल की सफ़ाई कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन जारी है। ताज़ा वारदात दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाक़े की है, जहां सेप्टिक टैंक की सफ़ाई करने गए कर्मचारी की मौत हो गई। दिल्ली पुलिस ने इसकी पुष्टि कर दी है। बिहार के कटिहार ज़िले से आए डूमन राय दिल्ली जल बोर्ड का सेप्टिक टैंक साफ़ करने गए थे। उन्हें टैंक से निकाल कर अस्पताल ले जाया गया, जहां मृत घोषित कर दिया गया।
1 साल, 22 मौतें
लेकिन डुूमन राय दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी नहीं थे। दिल्ली जल बोर्ड ने एक निज़ी कंपनी केके स्पन इंडिया लिमिटेड को टैंक की सफ़ाई और रख रखाव काम दे रखा था। सेप्टिक टैंक या नाले की सफ़ाई करने के मामले में दिल्ली में बीते एक साल में यह 22वीं मौत है। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ए के तहत मामला दर्ज़ कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में मल जल, सीवेज, सेप्टिक टैंक या नाले की सफ़ाई हाथ से करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। इसलिए इस काम में मज़दूरों को लगाना ग़ैर क़ानूनी है। पर इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जाती रही है। यह मामला पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उधेड़ कर रख देता है।
दिल्ली के मोतीनगर इलाक़े में डीएलएफ़ हाउसिंग सोसाइटी में कुछ दिनों पहले ही सेप्टिक टैंक की सफ़ाई करते हुए एक ही समय पांच लोगों की मौत हो गई थी। राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि साल 1993 और 2018 के बीच सीवेज या सेप्टिक टैंक में हाथ से सफ़ाई करते हुए 666 मौतें हुई हैं। पिछले साल जनवरी से इस साल के जुलाई तक 123 लोग इस तरह की मौत मरे हैं। यानी हर पांच दिन में एक कर्मचारी मारा गया है।
लेकिन, यह पूरी तस्वीर नहीं है। सफ़ाई कर्मचाारी आंदोलन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में आयोग से कहा कि वह पता लगाए कि इस तरह की कितनी मौतें हुई हैं। आयोग ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों से रिपोर्ट देने को कहा। सिर्फ़ 13 यानी आधे से भी कम राज्यों की रपटों के आधार पर यह आंकड़ा हैं, यानी वास्तव में इससे अधिक लोग मारे गए हैं।
सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि इस तरह की मौत की स्थिति में मृतक के परिजनों को दास लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाना चाहिए। लेकिन इस आदेश का भी पालन नहीं हुआ है। राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग ने यह माना है कि साल भर में जो 123 लोग मारे गए, उनमें से सिर्फ़ 70 लोगों के परिवार वालों को ही मुआवज़ा मिला है। बाकी लोगोें के बारे में इसके पास पूरी जानकारी तक नहीं है।
यह तो साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का उल्लंघन स्वयं सरकारी एजेंसियां कर रही हैं। राज्य सफ़ाई कर्मचारी आयोग अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए बने मंत्रालय के अधीन आता है। सरकार दलितों के हितों की रक्षा करने के दावे तो कर रही है। पर यह अपने ही एजेंसी से अदालत के आदेश का पालन सख्ती से करवाने में नाक़ाम है। दिल्ली जल बोर्ड में हुई मौत ने एक बार फिर यह उजागर कर दिया है।
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