देश में अब कहीं भी नफ़रती भाषण देने वालों की खैर नहीं! बिना किसी शिकायत के ही नफ़रती भाषण या बयान पर एफ़आईआर दर्ज की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जब भी कोई नफरत फैलाने वाला भाषण दिया जाए तो वे बिना किसी शिकायत के प्राथमिकी दर्ज करने के लिए स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई करें। शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी है कि मामला दर्ज करने में देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा।
इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी साफ़ कर दिया है कि भाषण देने वाले व्यक्तियों के धर्म की परवाह किए बिना ऐसी कार्रवाई की जाए ताकि संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पित भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को संरक्षित रखा जा सके। शीर्ष अदालत ने इसे एक गंभीर अपराध करार देते हुए कहा कि नफ़रती भाषण देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित करते हैं। शीर्ष अदालत का यह फ़ैसला 2022 के उसके अपने ही आदेश का दायरा बढ़ाने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अक्टूबर 2022 के आदेश में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस को हेट स्पीच के मामलों के खिलाफ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। अब इसी फ़ैसले को बढ़ाकर इसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह आदेश दिया है। इसलिए अब सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को किसी औपचारिक शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए स्वत: कार्रवाई करनी होगी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने चेतावनी दी कि निर्देशों के अनुसार कार्य करने में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना के रूप में देखा जाएगा। जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की एक पीठ याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी। याचिकाओं में देश भर में घृणा अपराधों के विभिन्न मामलों के संबंध में कार्रवाई की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, 'यह सुनिश्चित करें कि जब भी कोई भाषण या कोई कार्रवाई होती है, जो आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए और 506 आदि जैसे अपराधों के तहत आती है, बिना किसी शिकायत दर्ज किए मामले को दर्ज करने और कार्रवाई करने के लिए स्वत: संज्ञान लिया जाए।'
यह आदेश याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला की ओर से एडवोकेट निजाम पाशा द्वारा दायर एक याचिका पर आया है। इसमें हेट स्पीच पर अंकुश लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। निर्देश के लिए अपने आवेदन में पाशा ने सुझाव दिया है कि प्रत्येक राज्य में नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएँ जो नफरती भाषणों पर कार्रवाई के लिए ज़िम्मेदार हों।
29 मार्च को अदालत ने एक अवमानना याचिका में महाराष्ट्र राज्य से जवाब मांगा था जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य के अधिकारी रैलियों के दौरान नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे।
नफ़रती भाषण के मामले बढ़ने पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए पीठ ने निराशा के साथ टिप्पणी की थी, 'राज्य नपुंसक है, राज्य शक्तिहीन है; यह समय पर कार्य नहीं करता है। यदि वह चुप है तो ऐसा राज्य किस काम का?' जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की एक पीठ रैलियों के दौरान नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ कथित तौर पर कार्रवाई करने में विफलता पर महाराष्ट्र के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मिसाल देते हुए कहा था, 'वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से इकट्ठा होते थे। हम कहां जा रहे हैं?'
बहरहाल, शुक्रवार को न्यायमूर्ति जोसेफ ने महाराष्ट्र की ओर से पेश एएसजी एसवी राजू से कहा, 'आप को हमारे आदेशों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।' एएसजी ने जवाब दिया, 'हमारे मन में इस अदालत के लिए सर्वोच्च सम्मान है।' अवमानना याचिका के संबंध में, न्यायमूर्ति जोसेफ ने पूछा कि क्या महाराष्ट्र राज्य द्वारा जवाबी हलफनामा दायर किया गया है? अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि कल फाइल की गई थी। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि इसे पहले दायर किया जाना चाहिए था ताकि न्यायाधीशों के पास इसका अवलोकन करने के लिए पर्याप्त समय हो।
जवाबी हलफनामे में एएसजी ने कहा है, 'हमने कुछ मामलों की पहचान की है और प्राथमिकी दर्ज की है... वीडियोग्राफी 5 फरवरी को प्रस्तावित रैली तक सीमित थी, वह रैली नहीं हुई थी।' उन्होंने कहा, 'यहां तक कि उन मामलों में भी जिन्हें याचिकाकर्ताओं ने ज़िक्र नहीं किया, हमने प्राथमिकी दर्ज की है।' न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, 'यह आपका कर्तव्य है।'
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