हालांकि, पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह परिसर के प्राथमिक सर्वे की अनुमति दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार 17 जनवरी को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हाईकोर्ट में कोर्ट कमिश्नर के सर्वे के लिए जो आवेदन दायर किया गया, वो इस बारे में बहुत स्पष्ट नहीं है। ऐसी मांग बहुत विशिष्ट परिस्थितियों में होती है। आप इस पर गौर करने के लिए सब कुछ अदालत पर नहीं छोड़ सकते।"
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस खन्ना ने कहा कि “क्या अदालत में कोई आवेदन इस तरह किया जा सकता है? आवेदन को लेकर हमें आपत्ति है। आप अपनी प्रेयर देखिए, यह बहुत अस्पष्ट है। आप इसे पढ़ें। आपको इस बारे में बहुत स्पष्ट होना होगा कि आप स्थानीय कोर्ट कमिश्नर से क्या चाहते हैं।'' इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक अभी पूरा फैसला सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर नहीं आया है।
ईदगाह परिसर के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने एक दर्जन से अधिक याचिकाएं लंबित हैं, जिसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि मसजिद का निर्माण मुगल सम्राट औरंगजेब ने कृष्ण जन्मस्थान पर मंदिर को ध्वस्त करके किया था।
हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मूल मुकदमे में दायर आवेदन में यह दावा किया गया था कि श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मस्जिद के नीचे है और ऐसे कई संकेत हैं जो स्थापित करते हैं कि मस्जिद एक हिंदू मंदिर है। आवेदन में कहा गया था कि वहां एक कमल के आकार का स्तंभ मौजूद है जो हिंदू मंदिरों की एक उत्कृष्ट विशेषता है और शेषनाग की एक छवि भी वहां मौजूद है, जो हिंदू देवताओं में से एक हैं, जिन्होंने कृष्ण की उनके जन्म की रात में रक्षा की थी।
आवेदन में यह भी कहा गया है कि मस्जिद के स्तंभ के आधार पर हिंदू धार्मिक प्रतीक और नक्काशी भी दिखाई देती है। यह आवेदन मूल मुकदमे में दायर किया गया था, जो वर्तमान में मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में हाईकोर्ट में लंबित है। हिंदू पक्ष की ओर से लंबे समय से मांग रही है कि मथुरा में शाही ईदगाह के परिसर का एएसआई से सर्वे कराया जाए ताकि यह पता चल सके कि क्या यह हिंदू मंदिर के अवशेष पर बना है। वहीं मुस्लिम पक्ष इस तरह के किसी सर्वे का विरोध करता आया है। कुछ ऐसा ही मामला काशी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहा है जहां कोर्ट के आदेश पर सर्वे को मंजूरी मिली थी।
क्या कहा था ओवैसी ने
एआईएमआईएम के नेता और सांसद असदुद्दीन औवेसी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद कई सवाल उठाए थे। उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी है। बाबरी मस्जिद फैसले के बाद, मैंने कहा था कि इससे संघ परिवार की शरारतें बढ़ेंगी। यह पूजा स्थल अधिनियम के बावजूद ऐसी मुकदमेबाजी पर रोक लगाने के बावजूद है।
उन्होंने लिखा था कि मथुरा विवाद दशकों पहले मस्जिद समिति और मंदिर के ट्रस्ट के बीच आपसी सहमति से सुलझाया गया था। इन विवादों को एक नया गुट उछाल रहा है। चाहे वह काशी हो, मथुरा हो या लखनऊ की टीले वाली मसजिद, यह एक ही समूह है। उस समझौते के कागजात के शेयर करते हुए उन्होंने एक्स पर लिखा था कि कोई भी उस समझौते को यहां पढ़ सकता है, जिसे अदालत के सामने तय किया गया था।
हिन्दू पक्ष की मूल याचिका
हिंदू पक्ष ने मथुरा की एक अदालत में याचिका दायर कर विवादित 13.37 एकड़ भूमि के पूर्ण स्वामित्व की मांग की थी, जिसमें दावा किया गया था कि सदियों पुरानी मसजिद का निर्माण कटरा केशव देव मंदिर को तोड़कर किया गया था जो पहले वहां था। उन्होंने आरोप लगाया कि यह मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा आदेश दिया गया था। मुस्लिम पक्ष ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी, जो किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को 15 अगस्त, 1947 के तहत मौजूदा स्वरूप में बनाए रखता है।
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