कल मैंने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के बारे में बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी के विचार बताए थे। ये विचार उन्होंने 1998 में व्यक्त किए थे जिनमें उन्होंने 1977-80 के बीच हुए कुछ चुनिंदा मगर महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रमों की मिसाल देकर यह साबित करने की कोशिश की थी कि जनता पार्टी सरकार में जो भी गड़बड़ियाँ हुईं और जिनके कारण अंत में सरकार का पतन और पार्टी का बिखराव भी हुआ, उनके लिए सबसे ज़्यादा अगर कोई ज़िम्मेदार था तो वे थे अटलबिहारी वाजपेयी।
ज़ुबाँ से इतना गंदा है, यह बहुत 'काम' का बंदा है
- विश्लेषण
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- 26 Dec, 2018

सुब्रमण्यण स्वामी का अब तक का इतिहास कहता है कि वे ‘लाभ के लोभ’ में ही किसी के दोस्त बनते हैं। और अगर उन्हें लगे कि कि कोई उनका काम बिगाड़ रहा है तो वे उसके पीछे पड़ जाते हैं।
मैंने इस बात पर भी हैरानी जताई थी कि जिस व्यक्ति ने वाजपेयी के लिए ‘धूर्त’ और ‘पियक्कड़’ जैसे घटिया विशेषण इस्तेमाल किए हों, उस व्यक्ति को बीजेपी ने क्यों राज्यसभा का सांसद बनाया हुआ है। आज हम इसी सवाल का जवाब पाने की कोशिश करेंगे।
स्वामी के मामले में वह कहावत बिलकुल सही बैठती है कि राजनीति में कोई भी दोस्ती या दुश्मनी हमेशा के लिए नहीं होती लेकिन अपने दुश्मन से हिसाब बराबर करने का स्वामी का तरीक़ा सबसे अलग है।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश