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दुनिया भर के डॉक्टरों का एक समूह दावा कर रहा है कि कोरोना से होने वाली ज़्यादातर मौतों का कारण पता लगाया जा चुका है और सदियों से प्रचलित एक दवा को सही समय पर और सही मात्रा में देकर बड़ी संख्या में रोगियों का जीवन बचाया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ और भारत में आईसीएमआर ने इसके उपयोग की अनुमति दे दी है। लेकिन इसकी डोज़ को तय करने के लिए एक साधारण क्लीनिकल ट्रायल की ज़रूरत है जिसको लेकर आईसीएमआर ने चुप्पी साध रखी है। दवा की डोज़ और उपयोग का प्रोटोकोल तय नहीं होने के कारण डॉक्टर दुविधा में हैं।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एंटी वायरल दवा बनाने वाली कुछ बड़ी दवा कंपनियां इस दवा को रोकने की कोशिश कर रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को कोरोना के इलाज के लिए यही दवा दी जा रही है। स्टेरॉयड नाम से प्रचलित ये दवा कई पीढ़ियों से अस्थमा, दमा, फेफड़े तथा सांस के रोगियों को दी जाती है। स्टेरॉयड का इस्तेमाल हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। अमेरिका के मशहूर अख़बार 'द न्यूयार्क़ टाइम्स' की एक रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टरों ने ट्रम्प को मुख्य रूप से स्टेरॉयड दिया। इसके चलते ट्रम्प तेज़ी से स्वस्थ हो रहे हैं।
इंग्लैंड में लंबे समय से काम कर रहे भारतीय मूल के डॉक्टर अशोक जैनर का कहना है कि कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड एक चमत्कारिक दवा की तरह सामने आयी है। भारत में इस पर थोड़े और क्लीनिकल ट्रायल करके इसके उपयोग के नियम तय कर दिए जाने चाहिए क्योंकि इससे बेहतर कोई और दवा अभी उपलब्ध नहीं है।
दिल्ली के लोक नायक जय प्रकाश अस्पताल (एलएनजेपी) में प्रोफ़ेसर डॉ. विनोद कुमार ने कोरोना से संक्रमित होने के बाद ख़ुद स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया और आसानी से ठीक हो गए। डॉ. कुमार के परिवार के चार सदस्य कोरोना से संक्रमित हुए। सबसे पहले उनकी बेटी संक्रमित हुई जो एमबीबीएस करने के बाद एक अस्पताल में इंटर्न हैं। फिर उनकी पत्नी जो ख़ुद भी डॉक्टर हैं। इन दोनों को बहुत हल्का संक्रमण था। इसके बाद उनके बेटे को संक्रमण हुआ जो मेडिकल का छात्र है और फिर ख़ुद वो चपेट में आ गए।
डॉ. कुमार और उनके बेटे का संक्रमण गंभीर था। डॉ. कुमार बताते हैं कि जैसे ही उनका ऑक्सीजन लेवल 96 पर पहुंचा उन्होंने स्टेरॉयड लेना शुरू कर दिया। इससे उन्हें बहुत जल्दी आराम मिला।
डॉ. जैनर बताते हैं कि स्टेरॉयड पर क्लीनिकल ट्रायल सबसे पहले ब्रिटेन में किया गया। इसमें पाया गया कि जो गंभीर रोगी वेंटिलेटर पर पहुंच चुके थे उन्हें स्टेरॉयड देने पर एक-तिहाई रोगियों की जान बच गयी। और जिन्हें ऑक्सीजन दी जा रही थी, उसमें से हर पांचवें मरीज़ की जान स्टेरॉयड से बची। लेकिन यह प्रारंभिक ट्रायल था। इसमें स्टेरॉयड की डोज़ बहुत कम रखी गयी थी। और बहुत ही ज़्यादा गंभीर रोगियों पर ट्रायल किया गया। इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने स्टेरॉयड को कोरोना के इलाज की सूची में शामिल कर लिया।
भारत में आईसीएमआर ने भी इसे कोरोना के इलाज की सूची में रखा है लेकिन विवाद इस पर है कि कितनी डोज़ सही होगी। डॉ. जैनर बताते हैं कि डोज़ का फ़ैसला संक्रमण की गंभीरता और रोगी की स्थिति और वज़न के आधार पर लिया जाना चाहिए। डॉ. विनोद कुमार बताते हैं कि उन्होंने गाइड लाइन से ज़्यादा बड़ी डोज़ ली और इसका फ़ायदा बहुत तेज़ी से हुआ।
डॉ. जैनर बताते हैं कि अब तक कोरोना वायरस के बारे में बहुत सारे तथ्य सामने आ चुके हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कोरोना वायरस किसी व्यक्ति की मौत के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार नहीं है।
संक्रमण के छठे-सातवें दिन इस वायरस के प्रभाव से हमारे फेफड़ों में कई बदलाव आने लगते हैं। इसे ‘साइटोकिन स्टॉर्म’ कहते हैं। वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए हमारा शरीर इम्युनिटी बढ़ाने वाले रसायन का उत्पादन करने लगता है। इसके चलते हमारे ख़ून में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। आम तौर पर हमारे ख़ून में ऑक्सीजन की मात्रा 97/98% से कम नहीं होनी चाहिए। ऑक्सीजन अगर 93% से कम होने लगे तो जीवन ख़तरे में पड़ना शुरू हो जाता है।
आम तौर पर डॉक्टर बड़ी डोज़ देने से क़तरा रहे हैं। उनको डर है कि बड़ी डोज़ के साइड इफ़ेक्ट ख़तरनाक हो सकते हैं। इससे शुगर बढ़ सकता है। डॉ. कुमार ने बताया कि आमतौर पर 6 मिली ग्राम डोज़ की सिफ़ारिश की जा रही है लेकिन उन्होंने पहले दिन 16 मिली ग्राम ली और बाद में दस दिनों तक आठ मिली ग्राम।
इसके साथ ही जैसे ही ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगी और 96 पर पहुंची वैसे ही स्टेरॉयड लेनी शुरू कर दी। डॉ. विनोद कुमार डॉयबेटिक भी हैं इसलिए शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए उन्होंने इंजेक्शन लेना भी शुरू कर दिया।
डॉ. जैनर का कहना है कि भारत को स्टेरॉयड का क्लीनिकल ट्रायल तुरंत शुरू करना चाहिए। चार से छह सप्ताह में इसके नतीजे सामने आ जाएंगे। डॉ. जैनर की सलाह पर भारत में कई रोगियों को स्टेरॉयड दिया गया और वो सब के सब ठीक हो गए।
महंगी दवा बनाने वाली कम्पनियों की एक लॉबी सस्ती दवाओं को रोकने की मुहिम चला रही है। इनकी पहुंच डब्ल्यूएचओ से लेकर सभी बड़े देशों के स्वास्थ्य विभागों तक है। कुछ कम्पनियों ने पिछले कुछ महीनों में वायरस की दवा बनाने की घोषणा कर दी। इनमें से कोई भी दवा असरकारक नहीं है लेकिन उनकी खुराक 40 हज़ार से 50 हज़ार रुपये में बेची जा रही है।
ज़ाहिर है कि स्टेरॉयड जैसी सस्ती दवा जिसकी क़ीमत सौ रुपये के क़रीब होगी, अगर उपयोग में लायी जाय तो इन कम्पनियों का मुनाफ़ा ख़त्म हो जाएगा। डॉ. जैनर का कहना है कि स्टेरॉयड का सही ढंग से इस्तेमाल होने लगे तो भारत में कोरोना से मौत को एक प्रतिशत से कम किया जा सकता है।
भारत में कोरोना का दूसरा दौर धीमा पड़ने लगा है। लेकिन तीसरा दौर नहीं आएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि क़रीब 50% से ज़्यादा लोगों के संक्रमित होने के बाद ही कोरोना का क़हर रुकेगा।
सीरो सर्वे के मुताबिक़, अबतक क़रीब 25% लोग संक्रमित हुए हैं। दिसम्बर तक वैक्सीन आ भी गयी तो भी इतनी बड़ी आबादी को वैक्सीन लगाने में लंबा समय लग जाएगा। ज़ाहिर है कि कोरोना के तीसरे विस्फोट से पहले स्टेरॉयड का क्लीनिकल ट्रायल करके अगले दौर की तैयारी करके रखना ज़रूरी है।
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