लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली लोकसभा में नया तूफ़ान उठा है। एक तरफ़ स्पीकर ओम बिरला की कुर्सी पर निष्पक्षता के सवाल उठ रहे हैं, तो दूसरी ओर विपक्ष का आरोप है कि उनकी आवाज़ को जानबूझकर दबाया जा रहा है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने स्पीकर को आठ मुद्दों वाला एक पत्र सौंपा है, जिसमें माइक्रोफोन बंद करने से लेकर उपसभापति की नियुक्ति तक की शिकायतें शामिल हैं। क्या यह संसद में सत्ता और विपक्ष की पुरानी जंग का नया अध्याय है, या वाक़ई लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट हो रही है?
दरअसल, लोकसभा में पिछले कुछ दिनों से जो कुछ हो रहा है, वह किसी ड्रामे से कम नहीं। बुधवार को स्पीकर ओम बिरला ने सदन को अचानक स्थगित कर दिया और सदस्यों, खासकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी से संसद की गरिमा बनाए रखने की अपील की थी। लेकिन यह अपील विवाद का सबब बन गई। गुरुवार को इंडिया गठबंधन के नेताओं ने स्पीकर से मुलाकात की और एक पत्र सौंपा, जिसमें आठ गंभीर मुद्दों को उठाया गया। यह घटना न केवल संसदीय प्रक्रिया पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी पूछती है कि क्या लोकतंत्र का यह मंच अब सत्ता के इशारों पर चल रहा है?
इंडिया गठबंधन ने अपने पत्र में कई चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं। लोकसभा में उपसभापति का पद खाली रहना, विपक्ष के नेता को बोलने से रोकना, बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के फ़ैसलों की अनदेखी, और स्थगन प्रस्तावों को खारिज करना जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा, निजी सदस्य विधेयकों की उपेक्षा, बजट चर्चा में प्रमुख मंत्रालयों को बाहर रखना, नियम 193 के तहत चर्चा न कराना, और सबसे विवादास्पद - विपक्षी सांसदों के माइक्रोफोन बंद करना जैसे मुद्दे भी हैं।
इंडिया गठबंधन के प्रमुख मुद्दे
- लोकसभा में उपसभापति का पद लंबे समय से रिक्त है, जो परंपरागत रूप से विपक्ष को दिया जाता रहा है।
- राहुल गांधी सहित विपक्षी नेताओं का आरोप है कि उन्हें सदन में अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा।
- विपक्ष का कहना है कि बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के निर्णयों को लागू नहीं किया जा रहा।
- विपक्ष द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की मांग को लगातार खारिज किया जा रहा है।
- विपक्षी सांसदों के विधेयकों और प्रस्तावों को पर्याप्त समय या ध्यान नहीं दिया जा रहा।
- बजट और मांग अनुदान पर चर्चा में महत्वपूर्ण मंत्रालयों को शामिल नहीं किया जा रहा।
- नियम 193 तत्काल सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर चर्चा की अनुमति देता है, लेकिन इसका उपयोग नहीं हो रहा।
- विपक्ष का दावा है कि उनकी आवाज को दबाने के लिए तकनीकी आधार पर हस्तक्षेप किया जा रहा है।
ये शिकायतें बताती हैं कि विपक्ष को लगता है कि उनकी भागीदारी को व्यवस्थित रूप से कम किया जा रहा है।

स्पीकर से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस के लोकसभा उपनेता गौरव गोगोई ने कहा, 'हमने अपनी साझा चिंताओं को व्यक्त किया कि सत्ता पक्ष संसद के नियमों, परंपराओं और संस्कृति के ख़िलाफ़ जा रहा है। हमने एक पत्र सौंपा और यह मुद्दा उठाया कि स्पीकर ने कल अपना बयान पढ़ा, लेकिन यह साफ़ नहीं था कि वे किस विषय या घटना की बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सदस्यों, खासकर एलओपी को नियम 349 का पालन करना चाहिए, लेकिन यह नहीं बताया कि वे किस घटना का ज़िक्र कर रहे थे। हमने देखा कि शाम को बाहर इस घटना का राजनीतिकरण किया गया और प्रचार फैलाया गया। हमने स्पीकर को यही बताया कि उनके बयान का सदन के बाहर राजनीतिकरण हो रहा है।'
जब गोगोई से पूछा गया कि क्या स्पीकर ने यह खुलासा किया कि वे बुधवार को 'सदन की गरिमा' बनाए रखने की बात किस संदर्भ में कह रहे थे, तो उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि बैठक में स्पीकर ने जो कहा, उसे चर्चा करना उचित है।'
स्पीकर की कुर्सी पर बैठे ओम बिरला के सामने अब एक कठिन सवाल है - क्या वे सभी पक्षों को बराबर मौक़ा देकर अपनी निष्पक्षता साबित करेंगे? अगर विपक्ष की शिकायतें अनसुनी रहीं, तो यह संसद की विश्वसनीयता पर चोट करेगा।
दूसरी ओर, विपक्ष को भी यह सोचना होगा कि क्या उनकी रणनीति सिर्फ शोर मचाने तक सीमित है, या वे रचनात्मक तरीके से अपनी बात रख सकते हैं। यह जंग अब संसद से बाहर सड़कों और सोशल मीडिया तक फैल चुकी है, जहाँ बीजेपी और विपक्ष एक-दूसरे पर हमले तेज कर रहे हैं।
लोकसभा में यह 'लोकतंत्र की लड़ाई' केवल सत्ता और विपक्ष की खींचतान नहीं, बल्कि संसदीय परंपराओं के भविष्य का सवाल है। स्पीकर पर लग रहे इल्ज़ाम और विपक्ष की दबी आवाज़ इस बात की ओर इशारा करते हैं कि संसद में संतुलन बिगड़ रहा है। क्या यह तनाव हल होगा, या और गहराएगा? अभी तो यह साफ़ है कि लोकतंत्र के इस मंच पर गरिमा और विश्वास दोनों दांव पर हैं।
(रिपोर्ट का संपादन: अमित कुमार सिंह)
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