चुनावी बॉन्ड योजना की एसआईटी जांच नहीं होगी। इसकी मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की खरीद में कंपनियों और राजनीतिक दलों के बीच कथित लेन-देन की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा, 'अदालत के लिए ऐसा करना प्रि-मैच्योर और अनुचित होगा।' कोर्ट ने कहा कि जब आपराधिक कानून प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले सामान्य कानून के तहत उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, तो सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में जांच का आदेश देना प्री-मैच्योर और अनुचित होगा।
कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त किए गए चंदे को वसूलने और उनके आयकर आकलन को फिर से खोलने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये उपाय आयकर अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा वैधानिक कार्यों के प्रयोग से जुड़े हैं। इस स्तर पर कोर्ट द्वारा इस तरह के कोई भी निर्देश जारी करने का मतलब विवादित तथ्यों पर एक निर्णायक राय देना होगा।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने चार याचिकाओं पर सुनवाई की। इनमें से एक गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई थी, जबकि तीन अन्य डॉ. खेम सिंह भट्टी, सुदीप नारायण तमणकर और जय प्रकाश शर्मा द्वारा दायर की गई थीं।
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8,000 करोड़ रुपये से अधिक के धन ट्रेल मिल रहा है! कुछ मामलों में आईएफबी एग्रो जैसी कंपनियों ने तमिलनाडु में समस्याओं का सामना करने के कारण बॉन्ड में 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया... यह केवल एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है।
प्रशांत भूषण की अदालत में दलील
उन्होंने कहा कि यह भ्रष्टाचार का सबसे असाधारण मामला है और भारत के इतिहास में सबसे खराब वित्तीय घोटालों में से एक है। उन्होंने कहा, 'जब तक इस अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा जांच की निगरानी नहीं की जाती, तब तक इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा।'
हालांकि, अदालत इस बात से सहमत नहीं हुई। इसने कहा, 'हमने खुलासा करने का आदेश दिया। हम एक बिंदु पर पहुंच गए...हमने योजना को रद्द कर दिया। अब एसआईटी क्या जांच करेगी?'
इससे पहले फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को खारिज कर दिया था। योजना में गुमनाम राजनीतिक फंडिंग की बात कही गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था, 'मतदाता को प्रभावी तरीके से मतदान करने की अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने के लिए राजनीतिक दल को मिलने वाले फंडिंग के बारे में जानकारी होना ज़रूरी है।'
इस योजना को संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए कोर्ट केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं था कि इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना और राजनीतिक वित्तपोषण में काले धन पर अंकुश लगाना है।
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