सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट के 2023 के उस फ़ैसले को खारिज कर दिया जिसमें किशोरियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी गई थी। हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर 2023 के फैसले को खारिज करते हुए जस्टिस एएस ओका और उज्जल भुइयां की दो जजों की बेंच ने कहा कि उसने पोक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत आरोपी की सजा को बहाल कर दिया है।
कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फ़ैसले में किशोरियों से अनावश्यक रूप से यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए कहा गया था। इसने कहा था कि समाज की नजर में जब वे मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए झुक जाती हैं, तो वे हार जाती हैं। हाई कोर्ट की यह टिप्पणी एक छोटी लड़की के अपहरण और यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी एक व्यक्ति को बरी करते हुए आई थी। इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने भी कलकत्ता हाई कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कार्यवाही का शीर्षक 'किशोरियों की निजता के अधिकार के संबंध में' रखा और हाईकोर्ट की टिप्पणियों को हटा दिया। मई महीने में शीर्ष अदालत ने इस पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुख्य अंश पढ़ते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि राज्यों को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 19 (6) के प्रावधानों के साथ-साथ किशोर न्याय अधिनियम की धारा 30 से 43 के प्रावधानों को लागू करने के निर्देश भी जारी किए गए हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस ओका ने कहा कि फ़ैसले कैसे लिखे जाने हैं, इस पर भी निर्देश जारी किए गए हैं।
ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के पैरा 30.3 में विवादास्पद टिप्पणियां की गईं- "यह प्रत्येक किशोरी बालिका का कर्तव्य/दायित्व है कि वह: अपने शरीर की निष्ठा के अधिकार की रक्षा करे; अपनी गरिमा और आत्म-सम्मान की रक्षा करे; लैंगिक बाधाओं से परे अपने समग्र विकास के लिए प्रयास करे; यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखे क्योंकि समाज की नजर में वह तब हार जाती है जब वह मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए झुक जाती है; अपने शरीर और अपनी निजता की स्वायत्तता के अधिकार की रक्षा करे'।
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