समय रैना के शो पर बवाल मचा हुआ है। रणवीर इलाहाबादिया की 'अश्लील' टिप्पणी के बाद असम पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की है। इसने गुरुवार को समन भेजा है। समय रैना को महाराष्ट्र साइबर सेल ने दूसरी बार समन भेजा है और 17 फरवरी को पेश होने के लिए कहा है। उनके शो के ख़िलाफ़ लगातार आ रही शिकायतों के बीच रैना ने अपने शो 'इंडियाज गॉट लेटेंट' के अपने सारे वीडियो हटा लिए हैं। ख़बर है कि उनके गुजरात का शो रद्द कर दिया गया है।
इस विवाद के बीच सवाल है कि आख़िर समय रैना के शो में रणवीर इलाहाबादिया की 'अश्लील' टिप्पणी को लेकर इतना हंगामा क्यों मचा है? क्या यह क़ानून के तहत अश्लील है भी या नहीं? कहीं यह सिर्फ़ अभद्र, गंदी और घटिया भाषा' के दायरे में तो नहीं आती? यह कितना 'अश्लील' है और क़ानून के हिसाब से इन पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
अश्लीलता तय करने का पैमाना क्या होना चाहिए? किसी के लिए कोई अभद्र भाषा किसी दूसरे के लिए अश्लीलता हो सकती है? एक ही देश में जो आज सामान्य चीज हो सकती है वह 4-5 दशक पहले तक अश्लीलता में आती होगी? तो सवाल है कि क़ानून क्या कहता है? तो आइए जानते हैं कि आख़िर क़ानून के हिसाब से किस कंटेंट को अश्लील कहा जा सकता है और अदालतें कैसे अश्लीलता के दायरे को तय करती हैं।
यह अदालतों के फ़ैसलों से भी पता चलता रहा है। पिछले साल ही एक ऐसा ही मामला आया था। मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 292 और आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत यूट्यूब वेब सीरीज़ 'कॉलेज रोमांस' के क्रियेटरों के ख़िलाफ़ कार्यवाही को रद्द कर दिया था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि शो के पात्रों ने अश्लील भाषा का इस्तेमाल किया और कथानक कॉलेज के छात्रों के इर्द-गिर्द घूमता है जो आपत्तिजनक रूप से चर्चा करते हैं और यौन गतिविधियों में लिप्त होते हैं। लेकिन अदालत ने इन दलीलों से सहमति नहीं जताई।
क्या अश्लील है और क्या नहीं, इसको अदालत हाल में कम्युनिटी स्टैंडर्ड के आधार पर परीक्षण करती रही है।
मुक़दमे में क्या लिखा है?
'इंडियाज गॉट लैटेंट' शो के होस्ट और कॉमेडियन समय रैना, रणवीर इलाहाबादिया भी अब जांच के दायरे में हैं। हालांकि मुंबई पुलिस ने अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की है, लेकिन असम पुलिस ने सोमवार को इलाहाबादिया और रैना दोनों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, 2023 यानी बीएनएस की धारा 296 के तहत 'अश्लील कृत्यों' के आरोपों लेकर शिकायत दर्ज की है।
बीएनएस की धारा 294 उन लोगों को दंडित करती है जो किताबें, पेंटिंग और आकृतियाँ के रूप में अश्लील सामग्री परोसते हैं, खरीदते-बेचते हैं, विज्ञापन देते हैं या उनसे लाभ कमाते हैं। इसमें 'इलेक्ट्रॉनिक रूप में किसी भी सामग्री का प्रदर्शन' भी शामिल है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार यह ऐसी सामग्री की बात करता है जो 'कामुक है या कामुक रुचि को आकर्षित करती है'। ऐसी सामग्री जो स्पष्ट रूप से और काफ़ी ज़्यादा यौन से जुड़ा है। इसके लिए दो साल तक की कैद और पहली बार अपराध करने वालों के लिए 5,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
ऑनलाइन अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत दंडित किया जा सकता है। अश्लील सामग्री की परिभाषा बीएनएस की धारा 294 के तहत दी गई परिभाषा के समान है। हालाँकि, इसमें तुलनात्मक रूप से अधिक कठोर सजा का प्रावधान है। पहली बार अपराध करने पर तीन साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
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