कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का एलान कर सबको चौंका दिया है। जिस देश में प्राथमिक स्कूलों में कई जगह छत, पीने का पानी या ब्लैक बोर्ड तक न हो या पेड़ के नीचे कक्षााएँ लगती हों, वहाँ शिक्षा पर इतना खर्च ज़रूरी तो है, पर जब भावनाएँ भड़का कर वोट हासिल करने की राजनीति परवान चढ़ी हो, यह घोषणा ताज्जुब में डालने वाली है।
कांग्रेस का यह एलान एक तरह का क्रांतिकारी कदम इसलिए भी है कि अब तक कभी किसी सरकार ने शिक्षा पर इतना पैसा खर्च नहीं किया है न ही ऐसा करने की इच्छा ही दिखाई है। लम्बे समय तक केंद्र सरकार में रही कांग्रेस ने भी कभी यह हिम्मत नहीं दिखाई।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने यदि यह फ़ैसला लागू कर दिया तो शिक्षा का पूरा परिदृश्य ही बदल जाएगा। निकट भविष्य में बहस का विषय भी बदल जाएगा।
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पुरानी सिफ़ारिश अब तक पूरी नहीं
लेकिन ग़ौर से देखा जाए तो जीडीपी का 6 फ़ीसदी शिक्षा पर खर्च करने का मामला नया नहीं है, क़ायदे से तो इसे 1985-86 में ही लागू कर दिया जाना चाहिए था। दरअसल, केंद्र सरकार ने 1964 में ही राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया, जिसके अध्यक्ष दौलत सिंह कोठारी थे। इस वजह से इसे कोठारी आयोग भी कहते हैं। यह बहुत बड़ा आयोग था, जिसकी कई कमेटियाँ थीं, बहुत सदस्य थे। कोठारी आयोग ने पूरी शिक्षा व्यवस्था का अध्यययन करने के बाद 1966 में एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी।कोठारी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। इसे हर हाल में 1985-86 के बजट में लागू कर देना था। हालाँकि सरकार ने ज़्यादातर सिफ़ारिशों को लागू किया, पर शिक्षा पर खर्च से जुड़ी यह सिफ़ारिश अब तक लागू नहीं हुई है।
इसके लिए कई बार माँग उठी, छात्र संगठनों ने आंदोलन चलाया। उन दिनों वामपंथी छात्र संगठनों की यह मुख्य माँग हुआ करती थी। पर नतीजा सिफ़र ही रहा।
जीडीपी का 3.1 प्रतिशत खर्च
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़, शिक्षा के मद में जीडीपी का बड़ा हिस्सा वित्तीय वर्ष 2009-10 में खर्च किया गया। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री थे। मुखर्जी ने सकल घरेलू उत्पाद का 3 फ़ीसद शिक्षा पर खर्च करने का फ़ैसला किया था। उसके बाद यह घटता-बढ़ता रहा। वित्तीय वर्ष 2014-15 के बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जीडीपी का 3.1 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया।
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नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान वित्तीय वर्ष 2017-18 में जीडीपी का 2.7 प्रतिशत पैसा शिक्षा पर खर्च हुआ। यह शिक्षा पर मोदी सरकार का सबसे अधिक खर्च है। लेकिन इसी सरकार ने साल 2015-16 में 2.4 प्रतिशत, 2016-17 में 2.6 प्रतिशत, साल 2017-18 में 2.7 फ़ीसद शिक्षा के मद में खर्च किया गया।
नीति आयोग ने पिछले साल ‘स्ट्रैटेजी फ़ॉर न्यू इंडिया एट 75’ नामक एक मसौदा प्रस्ताव तैयार किया। इसमें कहा गया है कि 2022 में जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च होना चाहिए।
राहुल गाँधी के इस एलान को मास्टर स्ट्रोक इसलिए कहा जा सकता है कि इससे चुनाव की बहस बदल सकती है। यह घोषणा ऐसे समय हुई है जब उग्र राष्ट्रवाद ही अजेंडा में है, आम जनता से जुड़े तमाम मुद्दे हाशिए पर हैं। शिक्षा जैसे विषय को आम जनता तक ले जाने के विषय पर तो किसी ने सोचा नहीं होगा, कम से कम उस पार्टी ने तो बिल्कुल नहीं जो भावनाओं को भड़का कर वोट चाहती है। राहुल की यह घोषणा उस पार्टी के लिए एक तरह की चुनौती है जो पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारने के नाम पर वोट माँग रही है।
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