यह बहुत पुराना तरीका है कि जब हिसाब को मिलान नहीं हो पाता तो लोग गणित पर सवाल उठाने लगते हैं। इस समय भारत सरकार के संस्थान और विश्व स्वास्थ्य संगठन एक दूसरे के गणित पर सवाल उठा रहे हैं। सरकार के स्वास्थ्य और सांख्यिकीय विशेषज्ञ जब कोविड से होने वाली मौतों की संख्या गिनने बैठते हैं तो आंकड़ा साढ़े चार लाख से थोड़ा उपर जाकर रुक जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में महामारी ने 47 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान ली थी। पांच मई को संगठन ने जब ये आंकड़े जारी किए तबसे दोनों के बीच विवाद लगातार गर्म हो रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में महामारी ने 47 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान ली थी। डब्ल्यूएचओ ने उन खबरों की पुष्टि कर दी है जब कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी।
वैसे यह विवाद कोई नया नहीं है। जबसे कोविड की महामारी के भारत में कदम पड़े हैं किसी न किसी रूप में आंकड़ों के लेकर तकरार हो ही रही है। पिछले साल अप्रैल मई में जब देश कोविड की दूसरी लहर यानी डेल्टा वैरियेंट से त्रस्त था उस समय यह विवाद काफी तीखा होना शुरू हो गया था। अचानक ही सरकारी दावों और लोगों के वास्तविक अनुभवों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ गया था। सरकार कह रही थी कि अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में बिस्तर उपलब्ध हैं, लेकिन मरीजों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही थी। सरकार कह रही थी कि आक्सीजन की कोई कमीं नहीं है, लेकिन मरीजों के परिजन आक्सीजन के लिए दर दर की ठोकरे खा रहे थे। ऐसे में आंकड़े भला कहां विश्वसनीय हो सकते थे।