मध्य प्रदेश में एक चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी लाने की बात कहकर फिर से विवाद छेड़ दिया है। पीएम मोदी की समान नागरिक संहिता की वकालत पर डीएमके ने जोरदार सवाल उठाए हैं। एमके स्टालिन की पार्टी ने तर्क दिया कि पहले हिंदुओं के लिए एक समान संहिता लागू की जानी चाहिए, जिसके बाद उन्हें सभी जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रार्थना-पूजा करने की अनुमति देनी होगी।
डीएमके की यह टिप्पणी तब आई है जब पीएम मोदी ने मंगलवार को भोपाल में कहा, 'समान नागरिक संहिता के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। देश दो कानूनों पर कैसे चल सकता है? भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है।'
मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि समान नागरिक संहिता लाओ, लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग हैं।' उन्होंने कहा, 'भारतीय मुसलमानों को समझना होगा कि कौन से राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए उन्हें भड़का रहे हैं और नष्ट कर रहे हैं...।' उन्होंने यूसीसी की वकालत करते हुए कहा कि एक ही परिवार के अलग-अलग सदस्यों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान पर डीएमके के नेता टीकेएस एलंगोवन ने पीएम से सवाल पूछा है। उन्होंने कहा, 'समान नागरिक संहिता सबसे पहले हिंदू धर्म में लागू की जानी चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति सहित प्रत्येक व्यक्ति को देश के किसी भी मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। हम यूसीसी केवल इसलिए नहीं चाहते क्योंकि संविधान ने हर धर्म को सुरक्षा दी है।'
.@narendramodi made certain comments on Triple Talaq, UCC and Pasmanda Muslims.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) June 27, 2023
It seems Modiji did not understand Obama's advice properly. Will the PM end "Hindu Undivided Family"? Because of HUF, the country is loses ₹3064 crores every year.
On the one hand the PM is…
ओवैसी ने यह भी कहा है, 'मोदी जी यह बताइए कि क्या आप हिन्दू अविभाजित परिवार को खत्म करेंगे? इसकी वजह से देश को हर साल 3064 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। एक तरफ आप पसमांदा मुसलमानों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं और दूसरी तरफ आपके प्यादे उनकी मस्जिदों पर हमला कर रहे हैं, उनका रोजगार छीन रहे हैं, उनके घरों पर बुलडोजर चला रहे हैं, उनकी लिंचिंग कर रहे हैं और उनके आरक्षण का विरोध भी कर रहे हैं।'
बता दें कि पिछले साल सितंबर में समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए एक पैनल का प्रावधान करने वाला एक निजी विधेयक विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद राज्यसभा में पेश किया गया था। हालांकि इसी तरह के विधेयकों को पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन उन्हें उच्च सदन में पेश नहीं किया गया था।
इस महीने की शुरुआत में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर नए सिरे से परामर्श प्रक्रिया शुरू की है। राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर सभी हितधारकों से विचार मांगे गए हैं।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता की बात भारत के संविधान में कही गई है। संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को अनिवार्य करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करेगा। यहां राज्य से मतलब भारत की सरकार, भारत की संसद और सभी राज्यों की सरकारों से है। इसका मतलब यह है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही समान नागरिक संहिता का क़ानून ला सकते हैं।
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