सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार सिद्दिक कप्पन को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब शुक्रवार को होगी। मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को एक बार फिर हाई कोर्ट में भेजने पर विचार कर रहा है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल इस मामले में कप्पन की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कप्पन को ज़मानत मिल जानी चाहिए क्योंकि वह 5 अक्टूबर से ही जेल में हैं। उन पर साफ आरोप नहीं लगाए गए हैं और एफ़आईआर में उसका जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा, 'यह पत्रकार का मामला है, इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट यह मामला ले आए हैं, वर्ना यहां नहीं आते।'
मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने पूछा कहा कि 'आप इलाहाबाद हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते।' इस पर सिब्बल ने कहा कि 'कप्पन को किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है, इस कारण उसकी याचिका में बदलाव नहीं किया जा सका है, ऐसे में हाई कोर्ट कैसे जाएं।'
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला अनुच्छेद 32 का है और सुप्रीम कोर्ट इस तरह के मामलों को प्रोत्साहित नहीं कर सकता। सिब्बल ने कहा कि अदालत ने पहले भी इस तरह के मामले की सुनवाई की है। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं। पर इस मामले को वह एक बार फिर हाई कोर्ट भेज सकते हैं।
मामला क्या है?
बता दें कि हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड की रिपोर्टिेंग के लिए जा रहे केरल के तीन पत्रकारों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीच रास्ते में ही रोक लिया और उन्हें हिरासत में ले लिया था। बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया और उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट (यूएपीए) लगा दिया गया था। इसके अलावा धारा 153 ए, 295-ए, 124-ए और आईटी एक्ट की कई धाराओं में भी मामला दर्ज कर जेल में डाल दिया गया था।
हाथरस में एक युवती का बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी, उसकी लाश को जबरन जला दिया गया था।
सिद्दक कप्पन उनमें से एक हैं। कप्पन के परिवार वालों ने इसके पहले कहा था कि उन्हें कप्पन के बारे में कोई जानकारी नहीं है, उन्हें वकीलों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। इसके बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी, जिसमें राज्य को उस व्यक्ति को अदालत में पेश करना होता है।
लेकिन इसके पहले कप्पन के मामले की सुनवाई करने के बाद मुख्य न्यायाधीस जस्टिस एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में बनी बेंच ने 12 अक्टूबर को कहा था कि वे लोग इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर करें। इस बेंच ने यूनियन को इसकी भी अनुमति दी थी कि वह पहले से पड़ी याचिका में संशोधन कर लें। इस संशोधन के लिए ही यूनियन के लोग कप्पन से मिलना चाहते हैं, जिसकी अनुमति नहीं दी गई है।
अर्णब गोस्वामी को मिली थी राहत
इस मामले ने इसलिए तूल पकड़ा है कि कुछ दिन पहले पत्रकार अर्णब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी। उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अगले ही दिन उस पर सुनवाई हो गई। उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज चंद्रचूड़ ने कहा था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ख्याल रखा जाना चाहिए। उसके बाद से ही यह सवाल उठ रहा है कि अर्णब गोस्वामी की तरह ही दूसरे मामले भी हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाई कोर्ट या दूसरी निचली अदालत भेज दिया।
अर्णब गोस्वामी के मामले में वरिष्ठ पत्रकार अशुतोष की क्या राय है, देखें यह वीडियो।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कोर्ट के महासचिव को पत्र लिखकर गोस्वामी की रिहाई की याचिका पर तुरंत सुनवाई किए जाने को लेकर विरोध जताया था। दुष्यंत दवे ने पत्र में लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने कोरोना महामारी के दौरान भेदभावपूर्ण ढंग से मामलों को सुनवाई के लिए लिस्ट किया है। उन्होंने लिखा है, ‘एक ओर जहां हज़ारों लोग उनके मामलों की सुनवाई न होने के कारण जेलों में पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर एक प्रभावशाली व्यक्ति की याचिका को एक ही दिन में सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया।’
दवे ने कहा है कि वे इस बात से बेहद निराश हैं कि जब भी गोस्वामी सुप्रीम कोर्ट का रूख़ करते हैं, तो उनके मामले को क्यों और कैसे तुरंत सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया जाता है। दवे ने लिखा है कि गोस्वामी को विशेष सुविधा दी जाती है जबकि आम भारतीय परेशान होने के लिए मजबूर हैं।
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