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नए आपराधिक कानूनः कितना विरोध कर पाएगा विपक्ष और देश की जनता?

कांग्रेस समेत विपक्ष के तमाम नेताओं से सहमति जताते हुए बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी 1 जुलाई से लागू होने वाले तीन नए आपराधिक कानूनों का विरोध किया है। नए कानूनों में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पुराने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। हालांकि इन नए कानूनों को लेकर पूरे देश में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। तमाम वकीलों को नए कानूनों के बारे में जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि इन्हें पढ़ने और समझने में समय लगेगा। लेकिन विपक्ष के विरोध की वजह कुछ और है। उसका कहना है कि नए कानून बेहद सख्त हैं। उनसे लोगों की व्यक्तिगत आजादी से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक खतरे में पड़ जाएगी।

यह पिछले साल अगस्त की बात है जब विपक्ष के सौ से ज्यादा सांसदों को सदन से निष्कासित कर दिया गया और सरकार ने तीनों आपराधिक कानूनों को सदन में पारित करा लिया था। 

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ममता बनर्जी ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में कहा कि "किसी भी दूरगामी कानूनी बदलाव के लिए पहले सावधानीपूर्वक जमीनी काम की आवश्यकता होती है। ऐसे होमवर्क को टाला नहीं जा सकता है।" ममता इस मुहिम में अकेली नहीं हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी इस सप्ताह की शुरुआत में नए आपराधिक कानूनों पर केंद्र को पत्र लिखा था, जिसमें प्रधान मंत्री मोदी से सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखने का आग्रह किया गया था। स्टालिन ने लिखा था कि नए कानूनों को "पर्याप्त विचार-विमर्श और परामर्श के बिना" आगे बढ़ाया गया।

स्टालिन ने महत्वपूर्ण और तकनीकी मुद्दा भी उठाया। स्टालिन ने लिखा, "तीनों नए कानून भारत के संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं और इसलिए राज्य सरकार के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए। राज्यों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और नए कानून विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित किए गए।" उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में विसंगतियों की तरफ इशारा करते हुए धारा 103 की ओर इशारा किया, जिसमें कथित तौर पर हत्या के दो अलग-अलग वर्गों के लिए एक ही सजा की दो उपधाराएं हैं।

पूर्व नौकरशाहों ने भी विरोध किया

केंद्र और राज्य सरकारों में शीर्ष पदों पर कार्यरत रहे 100 से अधिक रिटायर्ड नौकरशाहों ने केंद्र सरकार से तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू नहीं करने का आग्रह किया है। पत्र में इन लोगों ने लिखा है कि संविधान के बाद यही तीनों कानून देश के आम लोगों खासकर गरीब, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों को प्रभावित करते हैं। इसके बावजूद इन्हीं तीनों कानूनों को नए रूप में जटिल तरीके से बिना विपक्ष के गंभीर सवालों का सामना किए पास कर दिया गया। इन कानूनों के बारे में कई वैध और महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब नहीं मिले हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वालों में नजीब जंग, जूलियस रिबेरो, मैक्सवेल परेरा, अमिताभ पांडे, कवि अशोक वाजपेयी, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, सुशांत बलिगा समेत काफी पूर्व आईएएस और पूर्व आईपीएस हैं।

असहमति अपराध हो जाएगीः एक जुलाई से लागू होने जा रहे है कानूनों के बाद सरकार की किसी भी नीति, कार्रवाई से असहमति अपराध के दायरे में आ जाएगी। यानी सरकार की आलोचना पर किसी की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज कर सकती है। इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग विपक्ष के राजनीतिक लोगों के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल, संजय हेगड़े, प्रशांत भूषण जैसे दिग्गज वकील तक नए कानूनों पर चिंता जता चुके हैं। सरकार के आलोचकों और कानूनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल 20 से 25 फीसदी प्रावधान नए हैं और वे पुलिस को बहुत अधिक पावर देते हैं। सरकार के आलोचकों का कहना है कि नए कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो असहमति को अपराध घोषित कर सकते हैं।

पुलिस राज कायम हो जाएगा

कांग्रेस सांसद और मुखर नेता मनीष तिवारी ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखकर इस पर विरोध जताया है। मनीष तिवारी ने लिखा है- “1 जुलाई 2024 से लागू होने वाले नए आपराधिक कानून भारत को एक पुलिस राज्य में बदलने की नींव रख देंगे। उनके कार्यान्वयन को तुरंत रोका जाना चाहिए और संसद को उनकी फिर से देखना चाहिए।'' 

मनीष तिवारी इससे पहले भी इन नए कानूनों का विरोध कर चुके हैं। यह मामला कितना गंभीर है, उनकी इस लाइन से समझा जा सकता है। उन्होंने लिखा था, "इन कानूनों में कुछ प्रावधान भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद से नागरिक स्वतंत्रता पर सबसे बड़े हमले का प्रतिनिधित्व करते हैं।" .
तीनों नए आपराधिक कानून का विरोध अभी जनसंगठनों या आम जनता द्वारा नहीं किया जा रहा है। क्योंकि जनता को इस बारे में मुख्यधारा का मीडिया तटस्थ होकर नहीं बता रहा है। तीनों नए कानून उसकी गंभीर डिबेट से गायब हैं। संसद में भी जब इन्हें पिछले साल पास किया गया था तो बहस ही नहीं हो पाई थी। क्योंकि विपक्ष के 100 से ज्यादा सांसद निष्कासित कर दिए गए थे। 
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संसद का मॉनसून सत्र खत्म होने के बाद सारे राजनीतिक दल चुनावी मोड में आ गए थे। हालांकि चुनाव के दौरान भी विपक्षी दल इन तीनों कानूनों के बारे में जनता को जागरूक कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संविधान बदलने और आरक्षण को खतरे का मुद्दा बनाया। जबकि तीनों आपराधिक कानूनों पर जनता को बताया जाना चाहिए था। 
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क़मर वहीद नक़वी
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