कल्पना सोरेन
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हेमंत सोरेन
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स्टालिन ने महत्वपूर्ण और तकनीकी मुद्दा भी उठाया। स्टालिन ने लिखा, "तीनों नए कानून भारत के संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं और इसलिए राज्य सरकार के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए। राज्यों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया और नए कानून विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना संसद द्वारा पारित किए गए।" उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में विसंगतियों की तरफ इशारा करते हुए धारा 103 की ओर इशारा किया, जिसमें कथित तौर पर हत्या के दो अलग-अलग वर्गों के लिए एक ही सजा की दो उपधाराएं हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों में शीर्ष पदों पर कार्यरत रहे 100 से अधिक रिटायर्ड नौकरशाहों ने केंद्र सरकार से तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू नहीं करने का आग्रह किया है। पत्र में इन लोगों ने लिखा है कि संविधान के बाद यही तीनों कानून देश के आम लोगों खासकर गरीब, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों को प्रभावित करते हैं। इसके बावजूद इन्हीं तीनों कानूनों को नए रूप में जटिल तरीके से बिना विपक्ष के गंभीर सवालों का सामना किए पास कर दिया गया। इन कानूनों के बारे में कई वैध और महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब नहीं मिले हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वालों में नजीब जंग, जूलियस रिबेरो, मैक्सवेल परेरा, अमिताभ पांडे, कवि अशोक वाजपेयी, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, सुशांत बलिगा समेत काफी पूर्व आईएएस और पूर्व आईपीएस हैं।
असहमति अपराध हो जाएगीः एक जुलाई से लागू होने जा रहे है कानूनों के बाद सरकार की किसी भी नीति, कार्रवाई से असहमति अपराध के दायरे में आ जाएगी। यानी सरकार की आलोचना पर किसी की शिकायत पर पुलिस केस दर्ज कर सकती है। इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग विपक्ष के राजनीतिक लोगों के खिलाफ होगा। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल, संजय हेगड़े, प्रशांत भूषण जैसे दिग्गज वकील तक नए कानूनों पर चिंता जता चुके हैं। सरकार के आलोचकों और कानूनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि केवल 20 से 25 फीसदी प्रावधान नए हैं और वे पुलिस को बहुत अधिक पावर देते हैं। सरकार के आलोचकों का कहना है कि नए कानूनों में ऐसे प्रावधान हैं जो असहमति को अपराध घोषित कर सकते हैं।
कांग्रेस सांसद और मुखर नेता मनीष तिवारी ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखकर इस पर विरोध जताया है। मनीष तिवारी ने लिखा है- “1 जुलाई 2024 से लागू होने वाले नए आपराधिक कानून भारत को एक पुलिस राज्य में बदलने की नींव रख देंगे। उनके कार्यान्वयन को तुरंत रोका जाना चाहिए और संसद को उनकी फिर से देखना चाहिए।''
मनीष तिवारी इससे पहले भी इन नए कानूनों का विरोध कर चुके हैं। यह मामला कितना गंभीर है, उनकी इस लाइन से समझा जा सकता है। उन्होंने लिखा था, "इन कानूनों में कुछ प्रावधान भारतीय गणराज्य की स्थापना के बाद से नागरिक स्वतंत्रता पर सबसे बड़े हमले का प्रतिनिधित्व करते हैं।" .
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