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बाएं से चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार और चिराग पासवान

लैटरल एंट्री पर एनडीए बंटा, जेडीयू- चिराग खुलकर विरोध में, टीडीपी का समर्थन

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के 45 सरकारी पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने के फैसले पर सोमवार को एनडीए में भारी मतभेद उभर आए। जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने इस कदम का विरोध किया, जबकि तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने समर्थन करते हुए कहा कि नौकरशाही में लैटरल एंट्री से आम लोगों को बेहतर सेवा मिल सकेगी।” भाजपा यह कह इसका बचाव कर रही है कि इस नीति को कांग्रेस ने 2005 में तैयार किया था। लेकिन भाजपा इस सवाल का जवाब नहीं दे रही है कि कांग्रेस ने इसे कभी लागू नहीं किया और मोदी सरकार ने इसे 2018 में लागू कर रखा है। 57 अधिकारी लैटरल एंट्री के जरिए रखे भी जा चुके हैं। जिनसे आरक्षण का हक और आईएएस का हक मारा गया है।

जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि “हम एक ऐसी पार्टी हैं जो शुरू से ही सरकारों से कोटा भरने के लिए कहती रही है। हम राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं। जब लोग सदियों से सामाजिक रूप से वंचित रहे हैं, तो आप योग्यता की तलाश क्यों कर रहे हैं? सरकार का यह आदेश हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।”

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केसी त्यागी ने कहा कि ऐसा करके सरकार विपक्ष को एक मुद्दा तश्तरी में परोस रही है। उन्होंने कहा कि “एनडीए का विरोध करने वाले लोग इस विज्ञापन का दुरुपयोग करेंगे। राहुल गांधी सामाजिक रूप से वंचितों के चैंपियन बनेंगे। हमें विपक्ष के हाथों में हथियार नहीं देना चाहिए।'

एलजेपी (रामविलास) अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी शनिवार को प्रकाशित यूपीएससी विज्ञापन को लेकर नाखुशी जाहिर की। चिराग ने कहा- “किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। निजी क्षेत्र में कोई आरक्षण मौजूद नहीं है और अगर इसे सरकारी पदों पर भी लागू नहीं किया गया तो गलत होगा।... यह जानकारी रविवार को मेरे सामने आई और यह मेरे लिए चिंता का विषय है।''

पासवान ने कहा कि सरकार के सदस्य के रूप में उनके पास इस मुद्दे को उठाने के लिए मंच है और वह उठाएंगे। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि जहां तक ​​उनकी पार्टी का सवाल है, वह इस तरह के कदम के "बिल्कुल समर्थन में नहीं" है।

एलजेपी (रामविलास पासवान) के प्रवक्ता एके वाजपेयी ने कहा, ''हम बिना आरक्षण के लेटरल एंट्री के विरोध में हैं। यह संवैधानिक आदेश के ख़िलाफ़ है। चूंकि हम एनडीए का हिस्सा हैं, इसलिए हम सरकार से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं। हम इस मामले में उचित समय पर उचित कदम उठाएंगे।''

आंध्र प्रदेश के मंत्री और टीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव नारा लोकेश ने बताया, "इनमें से कई (सरकारी) विभागों को विशेषज्ञता की आवश्यकता है और हमें खुशी है कि इसे (लैटरल एंट्री) लाया जा रहा है। हम हमेशा विशेषज्ञों की सेवाएं लेने के पक्ष में रहे हैं। सरकार को निजी क्षेत्र से सीखना चाहिए। हम केंद्र सरकार के इस कदम का समर्थन करते हैं क्योंकि इससे शासन की गुणवत्ता और आम नागरिक तक सेवाओं की डिलीवरी में वृद्धि होगी।''
कांग्रेस का जबरदस्त विरोध

सत्तारूढ़ गठबंधन में अलग-अलग आवाजें तभी उभरीं जब लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) राहुल गांधी ने सोमवार और मंगलवार को लगातार इस कदम की आलोचना की। राहुल ने मोदी सरकार के कदम को "दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला" बताया। गांधी ने कहा, ''भाजपा का राम राज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करना और बहुजनों से आरक्षण छीनना चाहता है।''

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी लगातार दो दिन लैटरल एंट्री के बारे में एक्स पर ट्वीट किया। खड़गे ने कहा कि "मोदी सरकार का लेटरल एंट्री प्रावधान संविधान पर हमला क्यों है"। खड़गे ने कहा कि 'बीजेपी ने सरकारी विभागों में नौकरियां भरने के बजाय अकेले पीएसयू में भारत सरकार की हिस्सेदारी बेचकर पिछले 10 वर्षों में 5.1 लाख पदों को खत्म कर दिया है। आकस्मिक और कॉन्ट्रैक्ट भर्ती में 91% की वृद्धि हुई है। 2022-23 तक एससी, एसटी, ओबीसी पदों में 1.3 लाख की कमी की गई है।”
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समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यूपीएससी के तहत शीर्ष पदों पर अपने वैचारिक मित्रों को नियुक्त करने की भाजपा की साजिश के खिलाफ अब राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करने का समय आ गया है। अखिलेश ने कहा-  “वास्तव में, पूरी योजना ‘पीडीए (पिछड़ा, दलित, आदिवासी)’ के आरक्षण और अधिकारों को छीनने की है। अब जब भाजपा को एहसास हो गया है कि पीडीए संविधान को बदलने की उनकी योजना के खिलाफ खड़ी हो गई है, तो वे लैटरल एंट्री की अनुमति देकर गुप्त रूप से आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं।”

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने दबी जबान से इसका विरोध किया है। मायावती ने कहा कि सरकार का कदम "सही नहीं" है। रविवार को उन्होंने कहा था कि इससे निचले स्तर के कर्मचारी पदोन्नति के अवसरों से वंचित हो जाएंगे। मायवती ने सरकार पर "संविधान का उल्लंघन" करने का आरोप लगाया। लेकिन बसपा ने मोदी सरकार के इस कदम के विरोध में किसी तरह का आंदोलन छेड़ने की बात नहीं कही।

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