भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रवाद को चुनाव प्रचार का मुख्य आधार बनाया, सेना का जम कर इस्तेमाल किया और विपक्षी दलों, ख़ास कर कांग्रेस को खूब आड़े हाथों लिया, पर इसकी सरकार सेना को उचित गोला-बारूद तक मुहैया नहीं करा रही है। सेना ने रक्षा मंत्रालय को इस बारे में एक चिट्ठी लिख कर रेड अलर्ट जारी किया है। इसने सरकार को आगाह किया है कि घटिया गोला-बारूद की वजह से युद्ध की तैयारियों पर दूरगामी और बुरा असर पड़ सकता है।
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी ख़बर के अनुसार, सेना ने इस पर चिंता जताई है कि टैंक, तोप, बंदूकें और हवाई सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले गोला-बारूद ख़राब और घटिया क्वालिटी के हैं, जिस वजह से बार-बार हादसे हो रहे हैं। ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड इन गोला-बारूदों की आपूर्ति करता है। सेना ने कहा है कि पहले से ज़्यादा हादसे हो रहे हैं, जिससे अधिक संख्या में लोग मारे जा रहे हैं, घायल हो रहे हैं और उपकरण बर्बाद हो रहे हैं। इससे सेना का मनोबल गिर रहा है और इन चीजों के इस्तेमाल को लेकर अनिश्चितता का वातावरण बन रहा है।
घटिया क्वालिटी
समझा जाता है कि रक्षा मंत्रालय ने सचिव (रक्षा उत्पादन) अजय कुमार को भेजे नोट में इस पर गंभीर चिंता जताई है कि ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड की सप्लाई की गई इन चीजों की गुणवत्ता के नियंत्रण और आश्वासन की कोई गारंटी नहीं है। सेना ने रेड अलर्ट में यह भी कहा है कि सेना और रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग को मिल कर ओएफ़बी के कामकाज को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और इस दिशा में दोनों को मिल कर एक दस्तावेज़ तैयार करना चाहिए।
सेना ने रेड अलर्ट में यह भी कहा है कि सेना और रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग को मिल कर ओएफ़बी के कामकाज को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और इस दिशा में दोनों को मिल कर एक दस्तावेज़ तैयार करना चाहिए।
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105 मिलीमीटर के फ़ील्ड गन में हादसे नियमित रूप से होते रहते हैं, 130 लाइट फ़ील्ड गन, 130 एमएम एमए 1 मिड फ़ील्ड गन, 40 एमएम एल-70 एअर डिफेन्स गन हादसे के शिकार होते रहते हैं। लेकिन टी 71, टी 90 मेन बैटल टैंक अर्जुन और यहाँ तक कि 150 एमएम बोफ़ोर्स गन के साथ भी दुर्घटनाएँ हुई हैं। ये तमाम दुर्घटनाएँ ख़राब गोला-बारूद की वजह से ही हुई हैं।
सेना ने कहा है कि ओएफ़बी के उत्पादों की ख़राब गुणवत्ता की वजह से सेना ने लंबी दूरी की मार करने वाले गोला-बारूदों के साथ परीक्षण रोक दिया है, इसके अलावा कुछ दूसरे उत्पादों के परीक्षणों से भी वह बच रही है।
क्या कहा अमेरिकी विशेषज्ञों ने?
इस प्रकरण में एक दिलचस्प मोड़ आया जब पोकरण फ़ील्ड टेस्टिंग रेंज में हुए प्रयोग में एम 777 लाइट हाउवित्जर तोप की नली में विस्फोट हो गया। यह तोप अमेरिका से लिया गया था, लिहाज़ा, उससे शिकायत की गई। उसके विशेषज्ञ भारत आए, उन्होंने जाँच पड़ताल करने के बाद कहा कि यह विस्फोट ख़राब बारूद की वजह से हुआ।
ओएफ़बी के तहत 41 कारखाने हैं, जो पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में हैं और यहाँ हर तरह के गोला बारूद बनाए जाते हैं। यह रक्षा मंत्रालय के तहत काम करता है। इससे यह तो साफ़ होता है कि इस पर ध्यान भी रक्षा मंत्रालय को देना चाहिए और सरकार इस ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती। इससे यह भी पता चलता है कि सरकार इस मुद्दे पर कितनी लापरवाह है कि वह सेना को गोला-बारूद तक मुहैया नहीं करा सकती है। ये बुनियादी चीजें हैं और दुनिया की कोई सेना इसके बिना कोई लड़ाई नहीं लड़ सकती।
लेफ़्टीनेंट जनरल शरत चंद ने बीते साल रक्षा से जुड़ी संसदीय समिति के सामने पेश होकर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सेना के पास जो साजो सामान हैं, उसका सिर्फ़ 8 प्रतिशत ही आधुनिक है, 24 प्रतिशत आज की ज़रूरतों के मुताबिक़ हैं। तक़रीबन 68 प्रतिशत बेहद पुराने हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं।
हथियारों की कमी
सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं, लेकिन इसके बावजूद सेना को पैसे मुहैया कराये जाने के बजाय मोदी सरकार ने उसमें कटौती कर दी। यह रिपोर्ट सुन्जुवान आर्मी कैम्प पर जैश-ए-मुहम्मद के एक फ़िदायीन हमले के बाद आयी थी। यह रिपोर्ट देनेवाली संसद की इस स्थायी समिति के अध्यक्ष कोई कांग्रेसी या वामपंथी नहीं थे, बल्कि बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी थे, जो केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी।क्या था खंडूरी रिपोर्ट में?
खंडूरी की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर कड़ी नाराज़गी जाहिर की थी कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों (समुद्री अड्डों समेत) की सुरक्षा के मामले में मौजूदा इंतज़ाम बहुत ही घटिया हैं और कहा था कि रक्षा मंत्रालय का रवैया इस मामले में बहुत ही शर्मनाक है।
लेफ़्टीनेंट जनरल शरत चंद्र की रिपोर्ट में जो बातें कही गई थीं, लगभग वही बातें खंडूरी रिपोर्ट में भी कही गई थीं। इस रिपोर्ट में बताया था कि हमारे क़रीब 68 फ़ीसदी गोला-बारूद और हथियार बाबा आदम के जमाने के हैं। केवल 24 फ़ीसदी ही ऐसे हथियार हैं, जिन्हें हम आज के ज़माने के हथियार कह सकते हैं और सिर्फ़ आठ फ़ीसदी हथियार ऐसे हैं, जो 'स्टेट ऑफ़ द आर्ट' यानी अत्याधुनिक कैटेगरी में रखे जा सकते हैं।
1962 के बाद सबसे कम रक्षा बजट
पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए दावा किया था कि आज़ादी के बाद रक्षा मद में सबसे ज़्यादा 3 लाख करोड़ रुपये अलॉट इसी साल किए गए हैं। लेकिन सच यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल रक्षा बजट में सिर्फ़ 5,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की गई है। रक्षा बजट में यह अब तक का न्यूनतम इजाफ़ा है। कुल रक्षा बजट सकल घरेलू अनुपात का सिर्फ़ 1.58 प्रतिशत है।
साल 1962 में भारत का रक्षा बजट उस समय के सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत था। उसी साल भारत को चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा था। उसके अगले साल इसे बढ़ा कर 2.31 प्रतिशत कर दिया गया था। इस तरह जीडीपी के हिसाब से 1962 के बाद दूसरी बार सबसे कम पैसे रक्षा मद में अलॉट किए गए हैं।
कैसे होगा सेना का आधुनिकीकरण?
यह जानना ज़रूरी इसलिए भी है कि कम पैसे की वजह से सैन्य बलों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा। थल सेना को आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार के लिए 36,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है, लेकिन उसे मिलेंगे सिर्फ 29,700 करोड़ रुपए। नौसेना को 35,714 करोड़ रुपये चाहिए, उसके लिए 22,227 करोड़ रुपये अलॉट हुए हैं। इसी तरह वायु सेना को 74,895 करोड़ रुपये चाहिए, लेकिन उसे मिलेंगे महज़ 39,347 करोड़ रुपये। यानी सेना को 1,46,609 करोड़ रुपए अपने आधुनिकीकरण के लिए चाहिए। पर उसके लिए अंतरिम बजट में महज 91,274 करोड़ रुपये मिलेंगे। यानी, उसे 55,335 करोड़ रुपये ज़रूरत से कम मिलेंगे। साफ़ है, सेना का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा, न ही इसकी क्षमता का विस्तार मुमकिन है।इन बातों से यह साफ़ है कि सत्तारूढ़ दल चुनाव जीतने के लिए भले ही सेना के ऑपरेशन्स, उसके पराक्रम और उसके नाम का इस्तेला करे, वह सेना के प्रति गंभीर नहीं है। दूसरी सुविधाएँ तो दूर, वह उसे लड़ने के लिए जरूरी अच्छी क्वालिटी के साजो सामान तक नहीं मुहैया करा सकती है।
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