अब यह बिल्कुल साफ़ हो चुका है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अगला लोकसभा चुनाव बालाकोट हमले के मुद्दे पर ही लड़ेगी और इस पर आक्रामक रवैया अपनाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने शनिवार को दिल्ली के पास ग्रेटर नोयडा में एक कार्यक्रम के बाद सार्वजनिक सभा में जिस भाषा और भाव-भंगिमा का इस्तेमाल किया, इससे उनका पहले से ज़्यादा आक्रामक रवैया साफ़ होता है। मोदी ने बालाकोट हवाई हमले की चर्चा की और इस पर संदेह करने वालों के भारतीय होने पर सवाल उठाए, उनकी राष्ट्रीयता पर संदेह किया और उन्हें पहचान लेने को कहा। उन्होंने पूछा, 'जिसकी रगों में हिन्दुस्तान का ख़ून हो, उसे शक होना चाहिए क्या? जो भारत माता की जय बोलता हो, उसको शक होना चाहिए क्या? वे कौन लोग हैं जो हवाई हमले पर शक कर रहे हैं? ऐसे लोगों पर भरोसा करोगे क्या?'
मोदी ने विपक्ष का मजाक उड़ाते हुए कहा कि बालाकोट हमले के चार-पाँच घंटे बाद तक तो विपक्ष के लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि बालाकोट कहाँ है, यह पाक-अधिकृत कश्मीर में है, पाकिस्तान में है या नियंत्रण रेखा के पास है। मोदी ने यह भी कहा कि जब पाकिस्तान रो रहा था, ये लोग आगे बढ़ कर उसकी मदद कर रहे थे।
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हमने आतंकवादियों को घरों में घुस कर मारा। आतंकवादी और उनके आक़ा हमसे इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं कर रहे थे। हवाई हमले 3.30 पर हुए और उसके बाद पाकिस्तान की नींद हराम हो गई। उन्होंने सुबह पाँच बजे ट्वीट कर कहना शुरू किया कि मोदी ने हमला कर दिया।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि यदि उनकी सरकार ने समय पर इसी भाषा में आतंकवादियों को जवाब दिया होता तो आतंकवाद देश के लिए इतना बड़ा सिरदर्द नहीं बना होता। मोदी ने यह भी कहा कि 26/11 के मुंबई हमलों का जवाब देने की हिम्मत ही कांग्रेस सरकार में नहीं थी।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार 'नई नीति, नई रीति' पर चल रही है और आतंकवादियों को उसी भाषा में जवाब दे रही है, जो वे समझते हैं। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, 'उरी हमले के बाद हमने सर्जिकल स्ट्राइक किया तो लोगों ने उसका भी सबूत माँगा था। लेकिन हमारे सैनिकों ने वह किया जो उसके पहले कभी नहीं हुआ था। आतंकवादियों को उनके घर में मारा।'
ग़ौरतलब है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद रिटायर हो चुके कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने कहा था कि इस तरह के स्ट्राइक होते रहते हैं और दोनों ही देशों की सेनाएँ एक-दूसरे पर करती रहती हैं। लेकिन कोई उसका प्रचार नहीं करता है। कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने सैनिक कार्रवाई के राजनीतिकरण का भी विरोध किया था।
दिलचस्प बात यह है कि किसी ने यह नहीं कहा है कि हवाई हमले हुए ही नहीं हैं, लेकिन बीजेपी ने जिस तरह 250 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया, उस पर सवाल ज़रूर उठ रहे हैं। कई अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों ने बालाकोट में अपने रिपोर्टर भेजे, जिन्होंने कहा है कि वहाँ किसी के मारे जाने की ख़बर नहीं है। इस पर कांग्रेस ने कहा था कि सरकार इन समाचार एजेंसियों को जवाब दे।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीद हुए सीआरपीएक जवानों में से कुछ के परिजनों ने यह कहा है कि सरकार हमें बताए कि बालाकोट हमले में कितने लोग मारे गए। इसी तरह एक जवान की विधवा ने कहा कि वह युद्ध नहीं चाहती, लेकिन इसके बाद बीजेपी की साइबर सेना ने उन्हें बुरी तरह ट्रोल किया।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी बालाकोट मुद्दे को भुनाएगी, यह तो लोग मान कर चल रहे थे। पर लोग प्रधानमंत्री की आक्रामकता से चकित हैं। मोदी का यह कहना कि जो बालाकोट हमले पर शक करते हैं, उन्हें पहचान लो, एक ख़तरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। इससे यह भी मुमकिन है कुछ बालाकोट पर सवाल पूछने वालों को निशाना बनाएँ।
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि विपक्ष के लिए इस मुद्दे पर बीजेपी को जवाब देना वाकई मुश्किल होगा। तमाम विपक्षी दल इस पर फ़िलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। वे यह नहीं समझा पा रहे हैं कि क्या जवाब दें और कैसे बीजेपी को रोकें। लेकिन यदि वे इसका जवाब इसी मुद्दे पर देंगे तो यह बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद होगा क्योंकि फिर उसे पाँच साल के सरकार के कामकाज पर कोई हिसाब-किताब नहीं देना होगा। शायद मोदी के आक्रामकता की यही वजह भी है।
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