सुशांत सिंह राजपूत की मौत के प्रकरण में एक लंबे इंतज़ार के बाद प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया का बयान आया। काउंसिल ने कहा है कि मीडिया को जांच के तहत मामलों को कवर करने में पत्रकारिता के आचरण के मानदंडों का पालन करना चाहिए और सलाह दी जाती है कि वह अपना 'समानांतर परीक्षण' (parallel trial) न करे। हालांकि करीब ढाई महीने से मीडिया इस मामले को लेकर अपना ट्रायल जारी रखे हुए है और इस सलाह के बाद भी यह बदस्तूर जारी है।
किसी भी मुद्दे को लेकर मीडिया की रिपोर्टिंग पर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए लेकिन जो मीडिया शासन व्यवस्था और समाज को आदर्श आचार संहिता की बात याद दिलाता है उसे अपनी आचार संहिता और दायरे का भी भान होना चाहिए।
अहम सवालों पर बहस नहीं
मीडिया की भूमिका है कि देश में क्या चल रहा है उसकी जानकारी लोगों तक साझा करना। लेकिन आज देश कोरोना महामारी के मामले में दुनिया में सबसे प्रभावित देश बनते जा रहा है, क्या इसे लेकर कोई ख़बर है? देश में लाखों विद्यार्थी NEET/JEE परीक्षाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं क्या इस पर कोई समाचार देखने को मिल रहा है?
अर्थव्यवस्था के सभी आंकड़े नकारात्मक आ रहे हैं, रोजगार तेजी से घट रहे हैं, पूरे बैंकिंग सिस्टम में खतरे की घंटी बज रही है, सीमाओं पर एक नहीं कई तरफ से तनाव बढ़ा हुआ है लेकिन उन सभी मुद्दों से हटकर सारी ख़बरें एक ही मुद्दे पर केंद्रित की जा रही हैं। मीडिया के लिए ये मुद्दे ख़बर का विषय क्यों नहीं बन रहे? प्रेस काउंसिल ही नहीं पूरे मीडिया को इसे लेकर आत्ममंथन करने की जरूरत है।
जिस समय सुशांत सिंह आत्महत्या प्रकरण में रिपोर्टिंग को लेकर प्रेस काउंसिल का यह बयान आया, उसके कुछ देर बाद ही इस मामले की प्रमुख अभियुक्त रिया चक्रवर्ती मुंबई स्थित डीआरडीओ के गेस्ट हाउस से सीबीआई अधिकारियों द्वारा की गई करीब 10 घंटे लंबी पूछताछ के बाद अपने घर के लिए निकलीं। वे अपने घर पहुंचीं लेकिन कार से नीचे उतरने के बजाय सीधे सांताक्रूज पुलिस स्टेशन चली गयीं और पुलिस के समक्ष गुहार लगाई कि उन्हें ख़तरा है और मीडिया कर्मी उन्हें उनके घर में घुसने नहीं दे रहे हैं।
अव्वल दर्जे की बदतमीजी
करीब ऐसे ही हालात एक अन्य अभियुक्त सिद्धार्थ पिठानी के साथ भी देखने को मिले जब सीबीआई से पूछताछ के बाद वे डीआरडीओ के गेस्ट हाउस से अपने घर के लिए निकल रहे थे। एक चैनल का रिपोर्टर सिद्धार्थ की कार के दरवाजे के बीच में खड़ा हो गया और बार-बार मना करने के बावजूद वह वहां से हटे बिना सवाल करता रहा। इसी कड़ी में एक और एक फूड कंपनी के डिलीवरी ब्वॉय तथा एक घटना जिस बिल्डिंग में रिया चक्रवर्ती रहती हैं, उसके सुरक्षा कर्मी के साथ हुई।
रिया चक्रवर्ती को उसके घर तक सुरक्षा देने गए पुलिसकर्मियों के साथ भी कुछ इसी तरह का व्यवहार चैनल के रिपोर्टर्स ने किया और पुलिस कर्मियों को रिया का निजी सुरक्षाकर्मी कहकर संबोधित किया।
इस मामले में जिस तरह का व्यवहार टेलीविजन चैनल के पत्रकारों द्वारा किया गया वह वाकई पत्रकारिता पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर देता है। यही नहीं, ग्राउंड रिपोर्टिंग के अलावा न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में बाकायदा अदालतों के जैसे फरमान सुनाये जा रहे थे। हद तो तब हुई जब एक टेलीविजन चैनल पर सुशांत सिंह के शरीर की तसवीरें दिखाने का प्रोमो दोपहर से चल रहा था और चैनल की ओर से लोगों से कहा जा रहा था कि वे उसके कार्यक्रम से जुड़ें और सच देखें?
सवाल उठता है कि हम किस प्रकार की पत्रकारिता के दौर में आ गए हैं? पत्रकारिता के नाम पर सरकार की चापलूसी जिसे "गोदी मीडिया" कहकर बुलाया जाता है, से यह पत्रकारिता कहीं आगे निकल गयी है। इन सभी घटनाओं में यदि कोई अभियुक्त, पुलिसकर्मी इन कथित पत्रकारों के व्यवहार पर कुछ कर देते तो बात "मीडिया पर हमला" होने की शुरू हो जाती!
मीडिया को फ़ैसला सुनाने की जल्दी
शुक्रवार को सीबीआई की पूछताछ के बाद जो घटनाक्रम हुआ उसे देखकर तो यही लगा कि टेलीविजन चैनलों और उनके स्टूडियो में बहस के दौरान होने वाली गाली-गलौज अब सड़कों पर देखने को मिलेगी। मामले की जांच सीबीआई कर रही है लेकिन लगता है कि उससे पहले ही मीडिया अपना फ़ैसला सुना देना चाहती है और यह सब प्रेस काउंसिल के निर्देशों के बाद भी हुआ।
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