भारत पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान किससे ख़रीदेगा? प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका यात्रा पर हैं तो यह सवाल और भी अहम हो जाता है। खासकर तब और भी, जब पीएम यात्रा के बीच ही रूस ने 'गोल्डन डील' की पेशकश कर दी है। पाँचवीं पीढ़ी के विमान को बेचने के लिए फ्रांस भी कतार में है। तो सवाल है कि भारत अब लड़ाकू विमान किससे ख़रीदेगा?
यह सवाल इसलिए कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान अमेरिका से रक्षा उपकरणों की खरीद का सौदा होने की संभावना है। रिपोर्ट है कि भारत अमेरिका से 31 ड्रोन खरीदने की प्रक्रिया में है, जिसकी क़ीमत लगभग 4 बिलियन डॉलर है। भारत ने 114 लड़ाकू विमानों के लिए निविदा जारी की है। पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अपेक्षित प्रमुख चर्चाओं में से एक भारत को एफ़-35 लड़ाकू विमान बेचने की अमेरिकी पेशकश होगी। यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत फ्रांसीसी राफेल जेट के साथ अपनी वायु सेना को मजबूत कर रहा है। भारत और अमेरिका के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी-साझाकरण समझौते और उन्नत अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद पर चर्चा होने की संभावना है।
जब पीएम मोदी अमेरिका में हैं और एफ़-35 ख़रीद सौदे पर बातचीत के कयास लगाए जा रहे हैं तो इसी बीच रूस ने अपने लड़ाकू विमान एसयू-57ई की आकर्षक पेशकश कर दी है। इसको 'गोल्डन डील' यानी सुनहरा सौदा कहा जा रहा है। सवाल है कि आख़िर इस सौदे में ऐसा क्या है?
दरअसल, रूस के सरकारी हथियार बनाने वाली कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट ने एसयू-57ई प्रोजेक्ट पर ज्वाइंट डेवलपमेंट का प्रस्ताव रखा है। इसने अपने ऑफर में कहा है कि हमारे प्रस्तावों में तैयार विमानों की आपूर्ति, भारत में उनके साझा उत्पादन, साथ ही भारतीय पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के विकास में सहायता शामिल है। बेंगलुरु में आयोजित एयरो इंडिया में भी रूस ने पहली बार अपने इस फाइटर जेट का शक्ति प्रदर्शन भी किया है। अमेरिका भी चाहता है कि भारत उससे फाइटर जेट खरीदे। अमेरिका ने भी एयरो इंडिया में अपने एफ-35 विमान की ताकत दिखाई है।
रूसी और अमेरिका के लड़ाकू विमानों में फर्क क्या है? यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट में सेवानिवृत्त स्क्वाड्रन लीडर विजयेंद्र के. ठाकुर ने कहा कि एसयू-57 एक रक्षात्मक प्लेटफॉर्म है, जबकि एफ़-35 एक हमला करने वाला फाइटर जेट है।
बिशम्बर दयाल कहते हैं कि दशकों से भारत का दोस्त रूस रहा है और अमेरिका भू-राजनैतिक स्थिति का फायदा उठाता रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका सामान बनाकर सिर्फ़ बेचना चाहता है और तकनीक को वो कभी भी ट्रांसफर नहीं करेगा।
भारत और रूस के बीच दशकों से मज़बूत रक्षा संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच बड़े रक्षा सौदे हुए हैं। भारतीय सेना के पास अधिकतर हथियार रूस से ही खरीदे गए हैं।
ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि भारत ने सबसे ज़्यादा हथियार रूस से ही खरीदे हैं। हाल ही में ऐसी भी रिपोर्ट आई थी कि भारत पिछले 5 सालों में विश्व में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश रहा है। यही वजह है कि हर बड़ा देश अपना हथियार भारत को बेचने के लिए लुभाने की कोशिश में है। अमेरिका यात्रा से पहले पीएम मोदी जब फ्रांस में पहुँचे थे तो फ्रांस के राष्ट्रपति को लेकर भी ऐसी ख़बरें आईं कि वह भारत को राफेल विमान जैसे रक्षा सौदे के इच्छुक हैं। अब जब पीएम मोदी अमेरिका में पहुँचे हैं तो माना जा रहा है कि ट्रंप की टीम अमेरिकी लड़ाकू विमान भारत को बेचने के लिए दबाव बनाने की कोशिश में होगी।
पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा तब हो रही है जब अमेरिका से अवैध प्रवासी भारतीयों को वापस भेजने के अमानवीय तौर-तरीक़ों का मुद्दा गरमाया हुआ है। कुछ दिन पहले ही अमेरिका का एक सैन्य विमान 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर अमृतसर पहुंचा था। हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीरों के साथ कुछ लोगों की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई।
104 'अवैध' प्रवासी भारतीयों को बेड़ियाँ, हथकड़ियाँ लगाकर भेजने का मुद्दा शांत हुआ भी नहीं था कि अमेरिका से 487 और संभावित भारतीयों के निष्कासन का आदेश निकाला गया है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या इनको सम्मानजनक रूप से वापस लाने के प्रयास किए जाएँगे?
इसके साथ ही टैरिफ़ का मुद्दा भी है। दोनों नेता व्यापार और टैरिफ पर चर्चा करेंगे, खास तौर पर आयात शुल्क को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने के बारे में। कनाडा, मैक्सिको और चीन पर टैरिफ लगाने के बाद ट्रंप ने भारत को 'टैरिफ किंग' और 'दुरुपयोग करने वाला' क़रार दिया है। अडानी का मुद्दा भी है। तो सवाल है कि इन मुद्दों का असर कहीं रक्षा सौदे पर तो नहीं होगा?
अपनी राय बतायें