प्रवासी मज़दूरों के हालात पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा है कि एक मई से अब तक ट्रेन और सड़क से 91 लाख प्रवासी मज़दूरों को उनके गृह राज्य पहुँचा दिया गया है। सरकार की तरफ़ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों में से 80 फ़ीसदी बिहार और उत्तर प्रदेश से हैं।
सुप्रीम कोर्ट प्रवासी मज़दूरों के संकट को लेकर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है और सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट में यह मामला तब आया है जब ट्रेनों में प्रवासी मज़दूरों के भूखे-प्यासे रहने और मौत की ख़बरें आ रही हैं।
कोर्ट ने 50 सवाल पूछे
मज़दूरों की ख़राब हालत पर कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने तुषार मेहता से कम से कम 50 सवाल पूछे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा, 'मुख्य समस्या प्रवासियों के परिवहन और उन्हें भोजन देने की है। पहली समस्या परिवहन की है। वे पंजीकरण के बाद भी हफ्तों तक इंतज़ार कर रहे हैं। क्या इन लोगों को किसी भी स्तर पर किसी भी पैसे का भुगतान करने के लिए कहा जा रहा है? राज्य कैसे भुगतान कर रहा है?'
अदालत ने कहा, 'हम स्वीकार करते हैं कि एक ही समय में सभी को परिवहन करना संभव नहीं है। लेकिन भोजन और आश्रय तब तक दिया जाना चाहिए जब तक कि उन्हें परिवहन नहीं मिल जाता।'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवासी मज़दूरों की स्थिति का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र-शासित क्षेत्रों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने नोटिस में इन सबसे पूछा है कि उन्होंने प्रवासी मज़दूरों की इस स्थिति को ठीक करने के लिए क्या किया है? जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एम. आर. शाह के खंडपीठ ने साफ़ शब्दों में कहा है कि ‘केंद्र और राज्य सरकारों से चूकें हुई हैं।’
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इन सब सरकारों से कहा है कि वे इन मज़दूरों की यात्रा, उनके खाने-पीने और उनके ठहरने का उचित प्रबंध करे। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि मीडिया में लगातार यह बताया जा रहा है और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये मज़दूर पैदल या साइकिल से बहुत ही दयनीय स्थिति में लंबी दूरी तय कर रहे हैं।
इस मामले में एक दिन पहले ही देश के 20 बड़े और मशहूर वकीलों ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की स्थिति और सरकार के रवैए पर एक बेहद कड़ी चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट को लिखी थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट को उसके दायित्व की याद दिलाई गई और आग्रह किया गया था कि वह इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान ले और सरकार को आदेश दे।
इस चिट्ठी में कहा गया था कि लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र के मज़ूदरों की रोज़ी-रोटी छिन गई, उनकी आय का कोई स्रोत नहीं रहा, उनके पास खाने-पीने का कुछ नहीं रहा, ऐसे में ये अपने कार्य स्थल को छोड़ सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गृह राज्य के लिए पैदल रवाना को मज़बूर हो गए।
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