देश में जीने, खाने, नींद लेने और निजता तक का मौलिक अधिकार प्राप्त है। लेकिन साफ़ पानी का? यह कैसी विडंबना है कि देशवासियों के लिए स्वच्छ जल के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय राज्य सरकारों को तलब कर रहा है। न्यायालय ज़ोर देकर कहता है कि स्वच्छ यानी साफ़ पीने का पानी प्राप्त करना लोगों का अधिकार है, लेकिन केंद्र सरकार कहती है कि सभी को साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार घोषित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार क्यों नहीं मानती सरकार?
- देश
- |
- |
- 1 Dec, 2019

साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार क्यों नहीं मानती सरकार? क्या यह माना जाए कि दूरदराज तक के इलाक़ों में सभी के लिए साफ़ पेय जल की व्यवस्था प्रदान करने के दावे सिर्फ़ खोखले ही हैं?
जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 21 नवंबर को लोकसभा में बीजेपी सांसद हेमा मालिनी के एक सवाल के जवाब में कहा कि साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार घोषित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि देश के 18 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में से तीन करोड़ घरों में स्वच्छ पेय जल की आपूर्ति की जा रही है।