हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
देश में जीने, खाने, नींद लेने और निजता तक का मौलिक अधिकार प्राप्त है। लेकिन साफ़ पानी का? यह कैसी विडंबना है कि देशवासियों के लिए स्वच्छ जल के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय राज्य सरकारों को तलब कर रहा है। न्यायालय ज़ोर देकर कहता है कि स्वच्छ यानी साफ़ पीने का पानी प्राप्त करना लोगों का अधिकार है, लेकिन केंद्र सरकार कहती है कि सभी को साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार घोषित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 21 नवंबर को लोकसभा में बीजेपी सांसद हेमा मालिनी के एक सवाल के जवाब में कहा कि साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार घोषित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि देश के 18 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में से तीन करोड़ घरों में स्वच्छ पेय जल की आपूर्ति की जा रही है।
हमारे संविधान ने नागरिकों को दैहिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समता का अधिकार सहित अनेक मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं और देश की शीर्ष अदालत संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का लगातार दायरा बढ़ा रही है। जीने के अधिकार संबंधी संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में नींद लेने और भोजन का अधिकार शामिल है।
न्यायालय ने रामलीला मैदान में बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ चार जून, 2011 को आधी रात में की गई पुलिस कार्रवाई से संबंधित मामले में फ़रवरी, 2012 में अपनी व्यवस्था में कहा था कि जीवन के लिए नींद भी एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है और किसी भी व्यक्ति को उसकी नींद से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
न्यायमूर्ति डॉ. बलबीर सिंह चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की बेंच ने अपने फ़ैसले में कहा था कि निजता के अधिकार और नींद लेने के अधिकार को सदैव ही साँस लेने, खाने, पीने और पलक झपकने के अधिकार के समान ही है।
शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय संविधान बेंच ने 24 अगस्त, 2017 को अपने एक फ़ैसले में निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का ही हिस्सा क़रार दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने कई मामलों में अपनी व्यवस्था में कहा है कि स्वच्छ और सुरक्षित पेय जल प्राप्त करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है और यह अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार का ही हिस्सा है और यह बुनियादी मानव अधिकार है।
तो क्या यह माना जाए कि दूरदराज तक के इलाक़ों में सभी के लिए साफ़ पेय जल की व्यवस्था प्रदान करने के दावे सिर्फ़ खोखले ही हैं?
सरकार कहती है कि इस समय ‘जल जीवन मिशन’ पर तेज़ी से काम हो रहा है। इस मिशन के अंतर्गत ‘हर घर जल’ योजना शुरू की गयी है जिसमें 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों में नल का पानी पहुँचाने का लक्ष्य है। जल जीवन मिशन पर अगले पाँच साल में क़रीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे, लेकिन साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं किया जाएगा।
सरकार अगर दूरदराज तक के इलाक़ों में नल का पानी पहुँचाने के प्रयास कर रही है तो निश्चित ही वह यह भी सुनिश्चित करेगी कि इन नलों में प्रवाहित होने वाला जल स्वच्छ हो जिसे नागरिक पी सकें।
सदियों से यही कहा जाता रहा है कि ‘जल ही जीवन’ है और ‘प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम’ है। लेकिन इसके बावजूद सभी को साफ़ पानी उपलब्ध कराने को मौलिक अधिकार में शामिल नहीं करना थोड़ा अटपटा लगता है।
न्यायालय के हस्तक्षेप से गंगा और यमुना सहित विभिन्न नदियों के जल को प्रदूषण मुक्त कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘किन्तु-परंतुओं’ से अलग हटकर सरकार लोकसभा में दिए गए सवाल पर ग़ौर करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि दूरदराज के इलाक़ों में रहने वाले देशवासियों को भी साफ़ पीने का पानी उपलब्ध हो सके।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें