पूर्व आईएएस अधिकारी एम. जी. देवसायम समेत देश के कई प्रतिष्ठित नागरिकों ने ईवीएम, मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) और वोट-गिनती प्रक्रिया की विश्वसनीयता को लेकर एक याचिका दायर की थी। सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत चुनाव आयोग से उनके ज्ञापन आवेदन पर की गई कार्रवाई का विवरण मांगा गया था।
चुनाव आयोग ने अनिवार्य 30-दिन के अंदर उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने देवसायम सहित जनता की पहली अपील भी नहीं सुनी गई। उन्होंने चुनाव आयोग से प्रतिक्रिया की कमी का हवाला देते हुए दूसरी अपील में सीआईसी से संपर्क किया। जब मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया ने पूछताछ की, तो चुनाव आयोग के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी इस बात पर संतोषजनक जवाब देने में विफल रहे कि देवसायम को कोई जवाब क्यों नहीं दिया गया।
उन्होंने आदेश में कहा कि यदि चूक के लिए अन्य लोग भी जिम्मेदार हैं, तो सीपीआईओ उन्हें आदेश की एक प्रति देें। ऐसे लोगों की लिखित दलीलें (जवाब) सीआईसी को भेजी जाएं। सीआईसी ने केंद्रीय चुनाव आयोग से 30 दिनों के भीतर आरटीआई के हर प्वाइंट का जवाब देने का भी निर्देश दिया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) के प्रोफेसरों और रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों सहित पूर्व सिविल सेवकों, प्रसिद्ध तकनीकी प्रोफेशनल्स और शिक्षाविदों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाते हुए 2 मई 2022 को चुनाव आयोग को पत्र लिखा था। उसमें कहा गया था- ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को लेकर हम लोग ईसीआई के समक्ष कुछ बातें रखना चाहते हैं जिनका चुनावी लोकतंत्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर असर पड़ता है। और हम ईसीआई से प्रत्येक के लिए तत्काल प्रतिक्रिया की उम्मीद करते हैं।'' चुनाव आयोग ने इस पत्र का कोई नोटिस ही नहीं लिया।
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चुनाव आयोग-ईवीएम पर भरोसा कम हुआः सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे ने ईवीएम और चुनाव आयोग को लेकर भी जनता के बीच सर्वे किया। इस सर्वे के मुताबिक 2019 के बाद से भारतीय चुनाव आयोग (ईसी) पर भारतीय मतदाताओं का भरोसा कम हो गया है। जबकि 2019 के चुनाव बाद सर्वेक्षण में, आधे से अधिक मतदाताओं ने संकेत दिया था कि उन्हें चुनाव आयोग पर भरोसा था। लेकिन 2024 में सिर्फ 28 पर्सेंट लोगों ने कहा कि उन्हें चुनाव आयोग पर भरोसा है। जिन लोगों पर 'ज्यादा भरोसा नहीं है' या 'बिल्कुल भी भरोसा नहीं है' उनका प्रतिशत पांच साल पहले की तुलना में दोगुना होकर क्रमश: 14 फीसदी और 9 फीसदी हो गया है, जबकि पहले यह 7 फीसदी और 5 फीसदी था। .
यूट्य्बू किसके इशारे पर कर रहा है कार्रवाई
ईवीएम से संबंधित वीडियो पर यूट्यूब ने कई चैनलों पर कार्रवाई की है। कुछ चैनलों को मोनोटाइज यानी उनका आर्थिक फा.दा बंद कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में शनिवार को यह जानकारी दी गई। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कम से कम दो यूट्यूबर मेघनाद और स्वतंत्र पत्रकार सोहित मिश्रा को हाल ही में ईवीएम और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों पर चर्चा करने वाले उनके वीडियो को मोनोटाइज करना यूट्यूब ने बंद कर दिया। यूट्यूब ने इन दोनों को विज्ञापनदाता-अनुकूल दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि स्पष्ट रूप से गलत जानकारी वाले वीडियो विज्ञापन राजस्व के लिए अयोग्य हैं।
मिश्रा, जिनके यूट्यूब चैनल "सोहित मिश्रा ऑफिशियल" के 3.68 लाख से अधिक ग्राहक हैं, ने खुलासा किया कि उनके ईवीएम से संबंधित चार वीडियो "सीमित मोनोटाइजेशन" के लिए चिन्हित किए गए। इसके बाद, समीक्षा के लिए मिश्रा के अनुरोध के बाद केवल एक वीडियो का मोनोटाइजेशन बहाल किया गया। यहां यह बताना जरूरी है कि चुनाव आयोग के दबाव पर यूट्यूब ने ईवीएम से जुड़े वीडियो पर एक्शन शुरू किया। आयोग के दबाव पर यूट्यूब ने यह संदेश ईवीएम वाले संदेशों के साथ दिखाना शुरू कर दिया कि ईवीएम में कोई गड़बड़ नहीं है और पूरी पारदर्शिता के साथ ईवीएम के जरिए मतदान कराया जाता है। यूट्यूब गूगल की ही कंपनी है। भारतीय जनता पार्टी सर्वाधिक ऑनलाइन विज्ञापन गूगल के सबी प्लैटफॉर्म पर देती है। यानी गूगल, यूट्यूब आदि के लिए भाजपा आय का बहुत बड़ा जरिया है।
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