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नामी कॉलेजों पर सवर्णों का कब्ज़ा, ग़ायब हैं दलित-आदिवासी!

क्या बड़े प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालयों के दरवाजे केवल ऊंची जाति वालों के लिए हैं? लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट ने सभी बड़े-चमकदार नामों वाले कॉलेज और विश्वविद्यालयों की पोल खोल दी है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मणिपाल और सिम्बायोसिस जैसे भारत के टॉप 30 प्राइवेट विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों में केवल 5% दलित अथवा अनुसूचित जाति के हैं। अनुसूचित जनजाति समूह से आने वाले छात्रों की संख्या तो और कम, केवल 1% है। 

इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। जैसे बीआईटी पिलानी जिसे देश के सबसे नामी तकनीकी संस्थानों में एक माना जाता है, वहाँ केवल ऊंची जातियों के ही छात्र पढ़ रहे हैं। एक भी छात्र एससी, एसटी या ओबीसी कैटेगरी का नहीं है। 

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वहीं मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन की बात करें तो वहां सिर्फ 0.46% एससी छात्र, 0.36% एसटी छात्र और 18% ओबीसी छात्र हैं। सस्त्रा, अमृता, और वेल्लोर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी जैसे बड़े संस्थानों में भी हाशिए के समुदायों से बहुत कम छात्र दिखते हैं। रिपोर्ट को लोकसभा में पेश करने वाली समिति ने बताया कि इस रिपोर्ट को 2022-23 के अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण यानी AISHE के आकंडों के अनुसार तैयार किया गया है। इस सर्वे ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति पर भी रिपोर्ट जारी की है। 

वहाँ भी आंकड़ा मायूस करने वाला ही मिलेगा। इन टॉप 30 प्राइवेट विश्वविद्यालयों में सिर्फ 4% शिक्षक अनुसूचित जाति से हैं। और अनुसूचित जनजाति से तो सिर्फ 0.46% प्रोफेसर हैं। वहीं, 30% शिक्षक ओबीसी समुदाय से हैं।

हालांकि संसदीय समिति ने यह बात भी मानी है कि AISHE डेटा अभी भी पूरी तरह से सही नहीं है। उदाहरण के लिए, डेटा में अन्ना विश्वविद्यालय में केवल एक फैकल्टी सदस्य दर्ज है, जो कि स्पष्ट रूप से एक गलती है। समिति ने सिफारिश की कि AISHE को संस्थागत स्तर के बजाय व्यक्तिगत स्तर पर डेटा एकत्र करना चाहिए, जिससे डेटा की गुणवत्ता और सटीक तथा बेहतर होगी। 
आंकड़ों पर बात करें तो दिसम्बर 2023 में शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट और सामने आई थी। इसके अनुसार पिछले कुछ सालों में कई हज़ार दलित और अनुसूचित जन जाति के छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़ी थी।

ये छात्र सरकार के बड़े कॉलेजों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ, आईआईटी और आईआईएम में पढ़ रहे थे। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 2018 से 2023 तक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के कुल 13,500 से अधिक छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी थी। 

गौरतलब है कि वंचित समुदाय को उचित शिक्षा का मौका देने के लिए कई सरकारी पहल हुई है। जैसे कि ट्यूशन शुल्क में छूट, छात्रवृत्ति, कोचिंग योजनाएँ लागू की गई हैं। शिकायतों को सुलझाने के लिए भी सिस्टम तैयार किया गया है पर कई संस्थानों में इन दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है। जैसे कि IIT दिल्ली ने 2023 में अपना SC/ST प्रकोष्ठ स्थापित किया, UGC ने दस साल पहले ही ऐसा करने की गाइडलाइन ज़ारी की थी। 

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इस वक़्त जब कई दक्षिणपंथी दल और वैचारिकी वाले आरक्षण हटाने की बात कर रहे हैं, इन संख्याओं को देखकर कई सवाल उठते हैं। इन बड़े संस्थानों से क्यों गायब हैं दलित और आदिवासी समुदाय के छात्र। कुछ लोगों की दलील है कि इन संस्थानों की फीस बहुत ज़्यादा है, जिसकी वजह से भी छात्रों को समान अवसर नहीं मिल पाते हैं। 

गौरतलब है कि कई राज्यों में आरक्षण लागू करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन अभी तक कोई सख्त कानून नहीं बना है जो निजी विश्वविद्यालयों को अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों को आरक्षण देने के लिए बाध्य करे।

इसे देखते यही कहा जा सकता है कि जब तक निजी विश्वविद्यालयों में आरक्षण और आर्थिक सहायता की नीति को सख्ती से लागू नहीं किया जाएगा, तब तक भारत में शिक्षा का सही मायनों में लोकतंत्रीकरण संभव नहीं होगा।

(रिपोर्ट: अणु शक्ति सिंह)
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क़मर वहीद नक़वी
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