चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम शुरू करने की तैयारी कर ली है। यह ईवीएम जैसी ही मशीन है। लेकिन उन लोगों के लिए जो अपनी नौकरी या फिर पढ़ाई के लिए दूसरे शहर या राज्य में रह रहे हों। ईवीएम पर सवाल उठाते रहे राजनीतिक दलों की अब आरवीएम पर क्या राय है? क्या वे इस पर एक राय होंगे?
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया से पहले यह जान लें कि चुनाव आयोग ने क्या कहा है और आख़िर यह आरवीएम क्या है। चुनाव आयोग ने एक नए आरवीएम के माध्यम से आप्रवासियों को अपने घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान करने में सक्षम बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों को एक प्रस्ताव दिया है। इसने 30 जनवरी, 2023 तक सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के लिखित विचार मांगे हैं। इसने तो 16 जनवरी को पार्टी प्रतिनिधियों के लिए आरवीएम प्रोटोटाइप का डेमंस्ट्रेशन तय किया है।
तो सवाल है कि राजनीतिक दल इसपर अपना किस तरह का रुख अख्तियार करेंगे? विपक्षी कांग्रेस ने चुनाव आयोग के आरवीएम के नए प्रोटोटाइप पर आशंका व्यक्त की है। इसने कहा है कि पहले इसे ईवीएम को लेकर उठ रही शंकाओं को दूर करना चाहिए।
एक बयान में कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने हाल के विधानसभा चुनावों में 'संदिग्ध' मतदान संख्या का उल्लेख करते हुए कहा, "गुजरात में इस बार हमने संदिग्ध मतदान संख्या भी देखी, जिससे पता चला कि मतदान के आखिरी घंटे में 10-12% मतदाताओं ने वोट डाला था। यह प्रत्येक वोट डालने के लिए असंभव सा 25-30 सेकंड का समय बताता है। जबकि वोट डालने के लिए आपको कम से कम 60 सेकंड चाहिए।"
Here is a statement I have just issued on the Election Commission's initiative on remote voting. pic.twitter.com/fHanEOnEyc
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) December 29, 2022
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ललन ने भी कहा है कि एडवांस टेक्नोलॉजी का विरोध मुनासिब नहीं है, लेकिन इन्हीं टेक्नोलॉजी के सहारे ही तो कई तरह के फ्रॉड भी हो रहे हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, "ऐसे में अगर कोई प्रस्तावित 'रिमोट वोटिंग' के इंतजाम को हैक करके पसंदीदा उम्मीदवार को वोट दिला देगा, तो कोई आश्चर्य की बात होगी क्या? ऐसा संभव नहीं है क्या? और अभी तो ईवीएम पर ही जब-तब अंगुली उठती रहती है। बहरहाल, चुनाव आयोग को ऐसी कोई भी नई व्यवस्था करने के पहले इसके फुल सिक्योर और फुलप्रूफ होने की पूरी गारंटी करनी होगी और इसके बारे में सभी पार्टियों को पूरी तरह से आश्वस्त करना होगा, उन्हें भरोसे में लेना होगा।"
आरवीएम की ज़रूरत को बताते हुए 28 दिसंबर को सभी पार्टियों को भेजे गए पत्र में चुनाव आयोग ने कहा है कि 'एक तिहाई मतदाता मतदान नहीं करते हैं' और ये मोटे तौर पर लगभग 30 करोड़ लोग होते हैं।
जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों में 83.4 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, केवल 66.44% ने मतदान किया। 2019 के संसदीय चुनावों में जब पंजीकृत मतदाताओं की संख्या बढ़कर 91.2 करोड़ हो गई, मतदान मुश्किल से 67.40% तक पहुँच पाया।
राज्य और संसदीय दोनों चुनावों में कम वोटिंग के लिए शहरी लोगों और युवाओं की उदासीनता के अलावा आप्रवासियों के वोट को प्रमुख वजह माना जाता है। और इसी वजह से चुनाव आयोग ने आरवीएम को अहम माना है।
जानिए क्या है आरवीएम
इसे बारकोड आधारित 'कांस्टीट्यूएंसी कार्ड रीडर' यानी सीसीआर द्वारा चलाया जाएगा जो पीठासीन अधिकारी के पास रहेगा। यह सीसीआर रिमोट मतदाता के निर्वाचन क्षेत्र की संख्या को पढ़ेगा, इसे पब्लिक डिस्प्ले कंट्रोल यूनिट और आरबीयू पर एक साथ दिखाएगा। और इसके बाद रिमोट मतदाता हमेशा की तरह पसंदीदा उम्मीदवार के सामने बटन दबाकर मतदान कर सकता है। इसे रिमोट वीवीपैट पर भी सत्यापित किया जा सकता है जो निर्वाचन क्षेत्र संख्या और राज्य कोड के साथ एक पर्ची भी दिखाएगा।
मतगणना के दिन रिमोट वोट की गिनती ईवीएम की 'रिमोट' कंट्रोल यूनिट यानी आरसीयू द्वारा की जाएगी जो प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए उम्मीदवार-वार कुल वोट दिखाएगी। इसके बाद यह परिणाम रिमोट आरओ द्वारा गृह निर्वाचन क्षेत्र आरओ के साथ साझा किया जाएगा।
हालाँकि, चुनाव आयोग ने आरवीएम की तैयारी कर ली है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। पहले तो राजनीतिक दलों को ही विश्वास में लेना आसान काम नहीं है। प्रशासनिक तौर पर चुनौतियाँ ये होंगी कि रिमोट लोकेशन पर वोटिंग की निजता कैसे बची रहेगी? रिमोट वोटिंग के लिए बूथ की संख्या, जगह का चयन भी आसान नहीं होगा। रिमोट वोटर्स खुद से सामने कितनी संख्या में आ पाएँगे? इसके अलावा तकनीकी चुनौतियाँ भी होंगी। क़ानूनी चुनौतियाँ भी हैं क्योंकि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 1951 में बदलाव करना होगा।
अपनी राय बतायें