किसे बचाएँ और किसे मरने के लिए छोड़ दें? कोरोना संकट ने अस्पतालों में डॉक्टरों के सामने ऐसी नैतिक दुविधा पैदा कर दी है। ये हालात कई जगहों पर हैं। मरीज़ों के लिए आईसीयू बेड, वेंटिलेटर कम पड़ने पर ऐसी स्थिति आन पड़ती है। पिछले साल जब मार्च-अप्रैल में कोरोना पहली बार फैल रहा था तो कुछ यूरोपीय देशों, ख़ासकर इटली में ये हालात बने थे। ऐसे हालात अब भारत के कर्नाटक राज्य में बनने की ख़बर आई है। जब कोरोना की पहली लहर आई थी तो अस्पताल बेड, आईसीयू, वेंटिलेटर कम पड़ने की ख़बरें आई थीं। डॉक्टर और नर्सों की भी कमी की रिपोर्टें आई थीं। लेकिन तब संक्रमण कम होने लगने पर हालात काबू में आ गए थे। अब कोरोना की दूसरी लहर काफ़ी तेज़ है। पिछली बार से कहीं ज़्यादा अस्पताल के संसाधन कम पड़ गए हैं। हालात कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हैं। अस्पताल बेड नहीं मिलने और ऑक्सीज़न की कमी से कोरोना मरीज़ों की मौत की ख़बरें इस भयावहता की पुष्टि करती हैं।