दो हजार रुपये के नोट बंद करने का मामला क्या है इसे समझना मुश्किल है। 2016 में हुई नोटबंदी ने देश में जिस तरह तबाही लाई थी, उस के बारे में ये कहा गया था कि उसे सोच विचार के बाद नहीं लाया गया था। अब फिर वही कहा जा सकता है। सरकार की तरफ़ से ना उसका कारण बताया जाएगा और ना पूछा जाएगा। हो सकता है कि 2024 के चुनाव की घोषणा से पहले ऐसे फैसले होते रहेंगे। हमारे पास उसे झेलने के अलावा कोई विकल्प नही है। संभव है, उसका जो कारण स्पष्ट बताया जाये वो असली कारण न हो।
जानकारों का कहना है कि कुछ दिन बाद 1000 का नोट फिर शुरू कर दिया जाए तो भी ताज्जुब नहीं होना चाहिए। ऐसे में अब ऐसा करने के कारण बताये जा रहे हैं जिसपर यकीन नहीं करने का कोई कारण नहीं है और विकल्प भी नहीं है। उदाहरण के लिए, अब कहा जा रहा है कि नोटबंदी के समय नोट की कमी से निपटने के लिए 2000 का नोट लाया गया था। उस समय जब कहा जा रहा था कि चुनाव से पहले बड़े नोट बंद करने की बात थी तो 1000 का नोट बंद करके 2000 का क्यों शुरू किया गया ?
अब 2000 के नोट बंद करने का मकसद काले धन को रोकना तो नहीं ही हो सकता है पर लोगों के पास विकल्प भी नहीं है। इसलिए कुछ लोग नोट नहीं बदल पाएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। पर उससे सरकार को क्या फायदा होगा ? कहने की जरूरत नहीं है कि इससे सरकार और भारतीय मुद्रा की साख पर बुरा असर पड़ेगा और उसका परोक्ष नुकसान अर्थव्यवस्था को भी हो सकता है। सरकार को इन बातों का ख्याल रखते हुए बहुत जरूरी होने पर ही ऐसा करना चाहिये था ।
इसका उद्देश्य राजनीतिक हो सकता है, सरकार हेडलाइन मैनेजमेंट भी करती रही है। वह भी हो सकता है। पर सरकार को क्या फायदा है यह समझना फिलहाल मुश्किल है। जिन लोगों के पास काला पैसा है और सुविधा के लिए 2000 के नोटों में रखा है वो फंस तो जाएंगे ही, परेशान भी होंगे और खपाने के लिए गैर जरूरी खर्चे करने को मजबूर होंगे। पर वह आयकर के 30 प्रतिशत से ज्यादा होगा, इसपर मुझे शक है। 2024 के आम चुनाव से पहले इलेक्ट्रल बांड लाने वाली सरकार इस बंदी से अपना फायदा उठा ले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। अधिक संभावना तो इसकी हो सकती है।
बाजार में 2000 का नोट लगभग नहीं है और लंबे समय से नहीं है। सरकार कह रही है कि 2018-19 के बाद 2000 के नोट नहीं छपे, उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है, प्रसार में नहीं हैं आदि आदि पर सच यही है कि छापे में बरामदगी के समय जो नोट दिखते हैं वे अच्छी स्थिति में लगते हैं और उनसे बहुत खराब नोट हमलोग उपयोग कर रहे होते हैं। इसलिए इनका प्रचलन बंद करने में जल्दबाजी की कोई जरूरत नहीं समझ में आती है। नोटबंदी के समय सरकार ने कहा था कि नकली नोट के प्रसार पर रोक लगाना नोटबंदी के प्राथमिक उद्देश्यों में एक था लेकिन 2016 के बाद नकली नोटों की बरामदगी बढ़ गई थी।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा है कि 2000 का नोट बमुश्किल लेन-देन का लोकप्रिय माध्यम था और हमने यह बात नवंबर 2016 में ही कही थी। अब हम सही साबित हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि 500 और 1000 के नोट जो खूब प्रचलन में थे को बंद करने के मूर्खतापूर्ण निर्णय के नुकसान को ढंकने के लिए 2000 का नोट चलाना बहुत ही फूहड़ प्रयास था।
आरबीआई के नोटिस में याद दिलाया गया है कि आरबीआई ने 2013-14 में भी ऐसा किया था। कहा गया है कि एक बार में 20,000 रुपए बदले जा सकते हैं। सुविधाजनक होता कि दो लाख रुपए का एक पैकेट एकबार में बदला जाता। जब पर्याप्त संख्या में नोट उपलब्ध हैं तो यह सुविधा क्यों नहीं। जो प्रेस विज्ञप्ति मुझे दिखी उसमें विदेशियों के बारे में कोई नियम नहीं है। भारत आते रहे वाले विदेशी और अनिवासी भारतीयों के पास कुछ न कुछ मुद्रा रहती ही है। भारत सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे अपने इन नोटों को जहां है वहीं बदलने की व्यवस्था करे। विदेशों में मौजूद ऐसे नोट बेकार जाएंगे और इससे मुद्रा की साख घटेगी।
2016 की नोटबंदी का घोषित मकसद भ्रष्टाचार, कालेधन और आतंकवाद से लड़ना था। इनमें कुछ भी पूरा नहीं हुआ। उल्टे मनमोहन सिंह ने इसे ऑर्गनाइज्ड लूट एंड लीगलाइज्ड प्लंडर कहा था। उन्होने ये भी कहा था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को 2% का नुकसान होगा और वही हुआ। अब 2000 के नोट बंद करने का क्या असर होगा, देखना होगा।
फिर ये भी सवाल उठता है कि कि इस फ़ैसले का चुनावों से कोई लेना देना है ? उल्लेखनीय है कि कर्नाटक चुनाव के दौरान जब्त नकदी 2018 के चुनाव के मुकाबले कई गुना बढ़ गई । तो क्या विपक्ष की कमर तोड़ने के लिये ये कदम उठाया गया है ?
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