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सिर्फ स्थानीय लोगों को नौकरी देने की बात खारिज कर चुकी हैं अदालतें

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि राज्य की सरकारी नौकरियाँ सिर्फ राज्य के लोगों को मिलेंगी। हालांकि यह एकदम नई बात नहीं है, इस तरह की कोशिशें पहले भी हो चुकी हैं, पर चौहान ने इसका एलान कर उस पुरानी बहस को एक बार फिर ताज़ा कर दिया है।

क्या कहता है संविधान?

भारतीय संविधान में बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जन्म स्थान पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 16 (2) में कहा गया है, 'सिर्फ धर्म, नस्ल,जाति, उत्पत्ति, जन्म स्थान, आवास या इनमें से किसी एक के आधार पर सरकारी रोज़गार या पद के मामले किसी नागरिक के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2019 में उत्तर प्रदेश सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन कमीशन के रोज़गार से जुड़े उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि उन महिलाओं को तरजीह दी जाएगी जो राज्य की 'मूल निवासी' हैं।

इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में राजस्थान सरकार की उन नियुक्तियों को अवैध क़रार दिया जिनमें राज्य चयन बोर्ड ने 'ज़िले' या 'ज़िले के ग्रमाण इलाक़ों' के अभ्यर्थियों को 'तरजीह' दी थी। दो जजों की बेंच ने उस समय फ़ैसला देते हुए कहा था,

'हमें इस पर कोई संदेह नहीं है कि इस तरह के तर्क जो क्षेत्रवाद से प्रभावित हैं, उन्हें अनुच्छेद 16 (2) और 16 (3) के परिप्रेक्ष्य में खारिज कर दिया जाना चाहिए। इस तरह के तर्क अनुच्छेद 16 (2) के आड़े आते हैं और उन संवैधानिक मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं जिन पर हमारे देश की एकता और अखंडता आधारित है।'


सुप्रीम कोर्ट

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1955 में दिए एक फ़ैसले में जन्म स्थान (प्लेस ऑफ़ बर्थ) और निवास स्थान (डोमिसाइल) के बीच का अंतर साफ़ किया था। उस समय यह कहा गया था कि निवास स्थान तो बदल सकता है। जन्म स्थान के आधार पर निवास स्थान तय हो सकता है।

किस राज्य में क्या है व्यवस्था

लेकिन डोमिसाइल के आधार पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण कई राज्यों में है।
  • महाराष्ट्र में सरकारी नौकरी उसे ही मिल सकती है जो उसके पहले राज्य में कम से कम 15 साल तक रहा हो और जिसे धारा प्रवाह मराठी आती हो।
  • जम्मू-कश्मीर में डोमिसाइल वालों को ही नौकरी मिल सकती है।
  • उत्तराखंड में कुछ नौकरियां सिर्फ स्थानीय लोगों को ही मिल सकती हैं।
  • पश्चिम बंगाल में कुछ पदों पर नियुक्ति के लिए बांग्ला लिखना-पढ़ना आना चाहिए।

कर्नाटक सरकार ने 2017 में ब्लू कॉलर्ड जॉब यानी निचले पदों पर सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में राज्य का मूल निवासी होना ज़रूरी कर दिया। राज्य के एडवोकेट जनरल ने इसी वैधता पर सवाल उठाया था। पिछले साल मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि कारखानों में और क्लर्कों के पदों पर कन्नडिगा लोगों को तरजीह दी जानी चाहिए। 

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क़मर वहीद नक़वी
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