कांग्रेस पार्टी में बग़ावत के सुर तेज होते जा रहे हैं। बुधवार को पहले सलमान ख़ुर्शीद और उसके बाद ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने कांग्रेस पार्टी को कड़े शब्दों में चेतावनी दे दी और शीर्ष नेतृत्व की आलोचना कर दी। सिन्धिया ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी को अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए, वर्ना यह तेज़ी से क़यामत की ओर बढ़ रही है।
ज्योतिरादित्य सिन्धिया ने कहा कि 'कांग्रेस की स्थिति बेहद बुरी है और पार्टी को आगे ले जाने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि स्थिति की समीक्षा की जाए।' उन्होंने चंबल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव पार्टी नहीं जीत सकती।
सिन्धिया राहुल गाँधी के नज़दीक समझे जाते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वह मध्य प्रदेश के गुना से हार गए। हालांकि वह पार्टी के महासचिवों में एक हैं और मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता हैं, पर वह अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। लेकिन ऐसे समय जब पार्टी की स्थिति वाकई ख़राब है, खुले आम पार्टी की आलोचना करने से कई तरह के राजनीतिक संकेत जा रहे हैं।
सिन्धिया ने इसके पहले अनुच्छेद 370 पर पार्टी लाइन से हट कर सरकार के फ़ैसले का समर्थन किया था और कहा था कि यह एक सही फ़ैसला है और इससे जम्मूू-कश्मीर का विकास होगा।
सिन्धिया के कुछ घंटे पहले ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने पार्टी नेतृत्व की आलोचना की थी। उन्होंने तो खुले आम सीधे राहुल गाँधी की ही आलोचना कर दी थी। खुर्शीद ने कहा है कि हार के कारणों की समीक्षा इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि राहुल गाँधी 'छोड़कर चले गए' और पार्टी में खालीपन आ गया। क्या इसका यह मतलब है कि कांग्रेस में सबकुछ राहुल के भरोसे था या है? यदि ऐसा नहीं है तो क्या कांग्रेस में वैसा काम भी इतनी धीमी गति से होता है जिसमें उसके अस्तित्व की लड़ाई का सवाल हो?
सलमान खुर्शीद ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि वह पार्टी में उस अस्थायी व्यवस्था से ख़ुश नहीं थे जिसमें सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने कहा कि वह अपनी व्यथा को इसलिए बता रहे हैं कि कहीं तो यह सुनी जाएगी।
अपनी राय बतायें