मणिपुर हिंसा मामले में गठित न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति ने सुप्रीम में तीन रिपोर्ट प्रस्तुत की है। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इन रिपोर्टोंं को देखने को कहा है। इस मामले की सुनवाई कर रही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने मणिपुर मामले में समिति की ओर से दाखिल तीनों रिपोर्टों को अधिवक्ताओं को देने को कहा है।
इस समिति की अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस जस्टिस गीता मित्तल कर रही हैं। वहीं उनके साथ इसमें बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्व जज जस्टिस शालिनी फणसलकर जोशी और दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व जज जस्टिस आशा मेनन भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस समिति के कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए 25 अगस्त को आदेश पारित करेगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समिति के वित्तीय खर्चों को पूरा करने के लिए प्रशासनिक सहायता के लिए कुछ प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करने की आवश्यकता होगी। इस समिति को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंसा प्रभावित मणिपुर के राहत कार्यों, पुनर्वास उपायों और मुआवजे आदि मानवीय पहलुओं की निगरानी के लिए स्थापित किया गया था।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने खंडपीठ से अनुरोध किया कि समिति को अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति देने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा कि समिति के सदस्यों के पास बैठने के लिए जगह नहीं है और जस्टिस गीता मित्तल ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से उन्हें जगह आवंटित करने का अनुरोध किया है। इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मैं जस्टिस मित्तल और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बात करूंगा।
समिति की रिपोर्टों में इन मुद्दों का है जिक्र
समिति द्वारा दाखिल तीन रिपोर्ट में पहली में , दंगों में मणिपुर के नागरिकों के दस्तावेजों के नुकसान पर प्रकाश डाला गया है। यह रिपोर्ट ऐसे नागरिकों के लिए आधार कार्ड आदि जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों के पुनर्निर्माण में सहायता करने की बात कहती है। दूसरी रिपोर्ट में NALSA योजना को ध्यान में रखते हुए मणिपुर हिंसा के पीड़ितों के मुआवजे की योजना में सुधार और अपडेट करने की बात कही गई है। वहीं तीसरी रिपोर्ट में प्रशासनिक निर्देशों के लिए डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति को लेकर समिति ने सुझाव दिए हैं। समिति द्वारा पेश की गई इन तीनों रिपोर्टों की समीक्षा करने के बाद सीजेआई ने कहा कि समिति ने मुआवजे, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल, चिकित्सा या स्वास्थ्य देखभाल, राहत शिविर, डेटा रिपोर्टिंग और निगरानी आदि जैसे कई प्रमुख मुद्दों की रिपोर्ट में रेखांकित किया है। इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी यह समिति
सुप्रीम कोर्ट ने सात अगस्त को मणिपुर मामले की सुनवाई के दौरान इस समिति का गठन करने की बात कही थी। उस दिन सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानून के शासन में विश्वास की भावना बहाल करने और विश्वास की भावना पैदा करने के लिए मणिपुर हिंसा मामलों के संबंध में आवश्यक निर्देश पारित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मणिपुर में राहत कार्यों, पुनर्वास, मुआवजे और निगरानी के लिए हाईकोर्ट की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित करेगा। तब कोर्ट ने कहा था कि यह समिति एक "व्यापक आधार वाली समिति" होगी जो राहत, उपचारात्मक उपाय, पुनर्वास उपाय, घरों और पूजा स्थलों की बहाली सहित मानवीय पहलुओं से जुड़ी चीजों को देखेगी।
जांच के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट में 7 अगस्त को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि केंद्र ने यौन हिंसा से संबंधित 11 एफआईआर केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने का फैसला किया है। कोर्ट इन मामलों को सीबीआई को ट्रांसफर करने की इजाजत देगा। हालांकि, इसमें अन्य राज्यों से लिए गए एसपी नहीं तो कम से कम डीएसपी रैंक के 5 अधिकारी भी शामिल होंगे। कोर्ट ने कहा था कि जांच पर विश्वास और इसकी निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ये अधिकारी सीबीआई के प्रशासनिक ढांचे के भीतर काम करेंगे। मणिपुर सरकार ने बनाई है कई एसआईटी
सुप्रीम कोर्ट में 7 अगस्त को हुई इस सुनवाई में मणिपुर सरकार ने कहा था कि वह उन मामलों की जांच के लिए 42 एसआईटी का गठन करेगी जो सीबीआई को हस्तांतरित नहीं किए गए हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि इन एसआईटी के लिए वह अन्य राज्य पुलिस बलों से कम से कम एक इंस्पेक्टर को शामिल करने का आदेश देगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह छह अन्य राज्यों के डीजीपी को छह एसआईटी के काम की निगरानी के लिए छह डीआइजी रैंक के अधिकारियों को नामित करने का निर्देश देगा।
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