अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की किताब 'अ प्रॉमिस्ड लैंड' में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गाँधी को लेकर पिछले हफ़्ते जो रिपोर्टिंग हुई उस पर काफ़ी हंगामा मचा। ख़ासकर राहुल गाँधी के बारे में की गई ओबामा की टिप्पणी के बाद बीजेपी और कांग्रेस की ओर से प्रतिक्रियाएँ आईं। लेकिन अब उसी किताब में बीजेपी के 'विभाजनकारी राष्ट्रवाद' का ज़िक्र किया गया है। इसी संदर्भ में ओबामा ने हिंसा, राष्ट्रवाद, नस्लवाद और धार्मिक असहिष्णुता जैसे शब्दों का भी उल्लेख है।
हालाँकि ओबामा की किताब का यह पहला हिस्सा ही है जिसमें उन्होंने 2008 से 2012 के बीच उनकी भारत यात्रा के संदर्भों का ज़िक्र भी किया है। यह वह समय था जब बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में नहीं थे। मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि उनकी किताब का दूसरा अंक भी आएगा और माना जा रहा है कि उसमें वह बीजेपी और मोदी के बारे में शायद ज़्यादा ज़िक्र करें। वैसे, ओबामा बहुभाषायी व बहुसंख्यक समाज, धार्मिक सहिष्णुता का समर्थक रहे हैं। वह महात्मा गाँधी से भी प्रभावित रहे हैं। उन्होंने यह बात ख़ुद स्वीकार की है। ऐसे में वह अगली किताब में इस मामले में क्या लिखते हैं, इस पर लोगों की शायद उत्सुकता रहेगी।
ओबामा ने अपनी भारत यात्रा का ज़िक्र उस किताब में किया है। मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के साथ डिनर पर जाने का उल्लेख कर वह लिखते हैं कि पता नहीं जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद से हटेंगे तो क्या होगा। उन्होंने लिखा, 'क्या माँ की तरफ़ से लिखी गई किस्मत को सही साबित करने और बीजेपी की विभाजनकारी राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ कांग्रेस पार्टी का दबदबा कायम रखने के लिए बैटन सफलतापूर्वक राहुल को दे दिया जाएगा?'
'बीजेपी की विभाजनकारी राष्ट्रवाद' की चर्चा के बाद ही ओबामा के शब्दों से यह मतलब निकाला जा सकता है कि भारत में होने वाले घटनाक्रमों को वह अपने देश अमेरिका के लिए चेतावनी के तौर पर देख रहे थे। हालाँकि उन्होंने न तो प्रधानमंत्री मोदी और न ही डोनल्ड ट्रंप का ज़िक्र किया है। लेकिन जो वह कह रहे थे वह यह कि जो समस्याएँ भारत में हैं वही अमेरिका में भी हैं। ओबामा ने लिखा है, 'यह सिंह की ग़लती नहीं थी। उन्होंने शीत युद्ध के बाद की दुनिया में उदार लोकतंत्रों के नियमों के अनुसार अपने हिस्से का काम किया था: संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखना; जीडीपी को बढ़ावा देने के तकनीकी विशेषज्ञ के तौर पर हर रोज़ के काम में अक्सर भाग लेना; और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क का विस्तार करना। मेरी तरह, उन्हें यह विश्वास हो गया था कि हम में से कोई भी लोकतंत्र से यही उम्मीद कर सकता है, विशेष रूप से भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बड़े, बहु-भाषी, बहुसंख्यक समाजों में...।'
Here is what Barak Obama thinks about Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Manmohan Singh, and BJP. - His book 'A Promised Land'. pic.twitter.com/VFEz5eALyK
— Ashok Swain (@ashoswai) November 15, 2020
उन्होंने आगे लिखा है,
"पहले मैं खुद से यह पूछता था कि क्या हिंसा, लालच, भ्रष्टाचार, राष्ट्रवाद, नस्लवाद और धार्मिक असहिष्णुता, हमारी ख़ुद की अनिश्चितता व मौत को मात देने की मानव-इच्छा और दूसरों को अधीनस्थ करने की तुच्छ भावना इतनी मज़बूत थी कि क्या कोई भी लोकतंत्र इन्हें स्थायी रूप से नियंत्रित कर पाएगा।
ऐसा इसलिए कि जब कभी विकास दर रुके या जनसांख्यिकी बदले या करिश्माई नेता लोगों की आशंकाओं और आक्रोश की लहर को भुनाना तय कर ले, तो सभी जगह वे (आवेग) इंतज़ार में थे, सर उठाने के लिए तैयार। और मैं जैसा चाहता था, मुझे यह बताने के लिए कोई महात्मा गाँधी नहीं थे कि मैं ऐसे आवेगों को रोकने के लिए क्या करूँ।"
ओबामा ने एक जगह लोकतंत्र का संदर्भ देते हुए लिखा है,
"जो नहीं बता सकता था वह यह कि (मनमोहन) सिंह के सत्ता में आना भारत के लोकतंत्र के भविष्य की झलक थी या सिर्फ़ एक असामान्य घटना...
हालाँकि भारत ने वित्तीय संकट के मद्देनज़र कई अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन वैश्विक मंदी भारत की युवा और तेज़ी से बढ़ती आबादी के लिए रोज़गार पैदा करना अनिवार्य रूप से कठिन बनाती।
सिंह ने हमलों के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई करने की माँग का विरोध किया था, लेकिन उनके संयम के कारण उन्हें राजनीतिक क़ीमत चुकानी पड़ी थी। उन्हें आशंका थी कि मुसलिम-विरोधी भावना बढ़ने से भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी, हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का प्रभाव मज़बूत हुआ।
प्रधानमंत्री ने कहा, 'मिस्टर प्रेजिडेंट, कभी-कभी धार्मिक और जातीय एकजुटता का आह्वान ज़हर फैलाने वाला हो सकता है। और राजनेताओं के लिए इसका फ़ायदा उठाना इतना कठिन नहीं है, चाहे वह भारत हो या कहीं और।"
ओबामा ने भारत के दौरे और महात्मा गाँधी के मुंबई निवास मणि भवन की यात्रा से प्रेरित होने का वर्णन भी किया है जहाँ उन्होंने कमरे में गाँधी के मौजूद होने की कल्पना करने की कोशिश की और यह कामना की कि उनके पास वह बैठें और उनसे बात करें।
बता दें कि इससे पहले राहुल गाँधी के बारे में ओबामा की टिप्पणी को लेकर काफ़ी विवाद हुआ था। तब वह रिपोर्ट न्यूयार्क टाइम्स में आई थी। इसके मुताबिक़, ओबामा ने अपनी जीवनी ‘ए प्रोमिज्ड लैंड’ में राहुल गाँधी को लेकर लिखा है, ‘राहुल एक नर्वस और कच्चे गुण वाले व्यक्ति हैं, वह एक ऐसे छात्र की तरह हैं, जिसने अपना कोर्स पूरा कर लिया है और वह अपने टीचर को प्रभावित करना चाहता है लेकिन उस छात्र में योग्यता या विषय में मास्टर होने के लिए ज़रूरी जुनून की गहरी कमी है।’
ओबामा के राहुल गांधी को लेकर नर्वस कहे जाने के बाद ओबामा की इस टिप्पणी को लेकर मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने ट्वीट किया था। गिरिराज सिंह ने लिखा कि राहुल गाँधी की जैसे ही देश में बेइज्जती कम होने लगती है, विदेश से करवा लेते हैं।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने लिखा कि राहुल को लेकर बराक ओबामा के आकलन की चर्चा अमेरिका से लेकर भारत तक में हो रही है।
बीजेपी को जवाब देने के लिए कांग्रेस मैदान में उतरी थी। पार्टी के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने ट्वीट कर कहा, ‘एक चुनौती उन सारे न्यूज़ चैनल्स को जो राहुल गांधी पर ओबामा के बयान पर बहस कर रहे हैं। मोदी के बारे में दुनिया के नेता क्या-क्या राय रखते हैं। एक बहस सारे चैनल्स पर हो जाये। हिम्मत, हैसियत और हौसला हो तो आइये मैदान में।’ कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भी इसे लेकर ट्वीट किया और ओबामा के बयान पर सवाल उठाया।
अपनी राय बतायें