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माता-पिता की सहमति के बिना आर्य समाज मंदिर विवाह करा सकेंगे या नहीं?

माता-पिता की अनुमति के बिना भी आर्य समाज मंदिर अब तक जो शादी कराते आए हैं उसकी मान्यता रहेगी या नहीं, इसको सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। आर्य समाज की इस तरह की शादी पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के हाल के फ़ैसले के बाद रोक लग गई थी, लेकिन अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और उसने फ़िलहाल हाई कोर्ट के फ़ैसले पर स्टे भी लगा दिया है।

आर्य समाज मंदिर में आर्य समाजी और हिंदू जोड़े शादी कराते रहे हैं। इसमें ख़ासकर वे युवा जो अपने अभिभावकों की मर्जी के ख़िलाफ़ और खुद की मर्जी से शादी करते रहे हैं। दरअसल, ऐसे युवाओं की शादी के लिए आर्य समाज मंदिर ही शरण स्थल रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फ़ैसले से इस स्थिति में बदलाव आ गया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी के इच्छुक जोड़ों को अपने माता-पिता को पूर्व सूचना देना, विवाह के लिए नोटिस का प्रकाशन और विवाह के लिए आपत्तियाँ मंगाना अनिवार्य है। इसी के तहत हाई कोर्ट ने आर्य समाज मंदिर को अपने विवाह से जुड़े दिशा-निर्देश में बदलाव करने को कहा था। 

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सुप्रीम कोर्ट ने किस वजह से इस मामले में सुनवाई के लिए हामी भरी है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आर्य समाज में किस तरह शादी होती है। आर्य समाज मंदिर बिना माता-पिता की सहमति के ही हिंदू जोड़ों की शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत करते हैं और मंदिर की ओर से विवाह का प्रमाण पत्र दिया जाता है। इस प्रमाण पत्र से सरकार के प्रावधानों के अनुसार विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी को पंजीकृत कराया जा सकता है। और इस तरह विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऐसे जोड़ों को शादी की मान्यता मिल जाती है। 

लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद माता-पिता की सहमति, शादी के प्रकाशन और आपत्ति मंगाने के प्रावधान से उन हिंदू जोड़ों के लिए परेशानियाँ खड़ी होंगी जो माता-पिता की मर्जी के ख़िलाफ़ शादी करना चाहते हैं। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद ऐसे जोड़ों पर दबाव पड़ेगा और उन्हें धमकियों का भी सामना करना पड़ सकता है। 

इसी के ख़िलाफ़ आर्य समाज की संस्था मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फ़ैसले पर फ़िलहाल स्टे लगा दिया है। 

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'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करके विधायिका के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने कहा कि आर्य विवाह सत्यापन अधिनियम, 1937 और हिंदू विवाह अधिनियम में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। आगे तर्क दिया गया कि यदि विवाह इस प्रकार दो हिंदुओं के बीच है, तो विशेष विवाह अधिनियम में उल्लिखित इच्छुक जोड़ों के विवाह की सूचना, विवाह नोटिस का प्रकाशन, विवाह पर आपत्ति और प्रक्रिया जैसी शर्तों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आर्य समाज के संगठन की इस अपील पर हाई कोर्ट के फ़ैसलों पर उठाए गए सवालों की जांच करने के लिए सहमति व्यक्त की।

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जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उन याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया, जिनके इशारे पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्णय पारित किया था। पीठ ने आर्य समाज के अधिकारियों को हाई कोर्ट के निर्देशों की तुरंत पालना पर भी रोक लगा दी। 

अपीलकर्ता ने वकील वंशजा शुक्ला के माध्यम से कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की तरह न तो आर्य विवाह अधिनियम और न ही हिंदू विवाह अधिनियम आर्य समाजियों या हिंदुओं के बीच विवाह के लिए कोई शर्त लगाता है।

अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने आर्य समाज मंदिरों द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जारी किए गए विवाह प्रमाणपत्रों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्र के साथ जोड़कर ग़लती की। वंशाजा शुक्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वलसम्मा पॉल बनाम कोचीन विश्वविद्यालय मामले में अपने 1996 के फैसले में दोहराया था कि माता-पिता द्वारा विवाह को मान्यता देना विवाह के लिए अनिवार्य नहीं है।

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क़मर वहीद नक़वी
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