भारत की सियासत में तहलका मचा चुके पेगासस स्पाईवेयर जासूसी के मामले में एक नया खुलासा हुआ है। वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक़, गिरफ़्तारी से पहले एक्टिविस्ट रोना विल्सन के फ़ोन की भी जासूसी की गई थी। वाशिंगटन पोस्ट ने यह रिपोर्ट एमनेस्टी इंटरनेशनल सिक्योरिटी लैब के एक विश्लेषण के आधार पर छापी है।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद एक बार फिर पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी किए जाने का मामला सिर उठा सकता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के विश्लेषण से सामने आया है कि रोना विल्सन के iPhone 6s के दो बैकअप से इस बात का पता चला है कि पेगासस स्पाईवेयर से उनके फ़ोन की जासूसी हुई थी। रोना विल्सन जून, 2018 से ही आतंकवाद के आरोपों में जेल में बंद हैं।
अमेरिका की डिजिटल फ़ॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को रोना विल्सन के फ़ोन का बैकअप दिया था।
आर्सेनल ने भी कहा था कि विल्सन के कम्प्यूटर को हैक किया गया था और पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये इसमें कुछ दस्तावेज़ों को प्लांट किया गया था। विल्सन को गिरफ़्तारी से पहले छह महीने के अंदर 15 ऐसे संदेश भेजे गए थे जिनमें इस स्पाईवेयर के लिंक हो सकते थे।
फरवरी में भी वाशिंगटन पोस्ट ने यह रिपोर्ट दी थी कि फॉरेसिंक जांच से पता चलता है कि रोना विल्सन के लैपटॉप पर 2016 में वायरस का हमला हुआ था।
विल्सन के अलावा सात और लोग ऐसे थे, जिनके फ़ोन नंबर्स को जासूसी किए जाने वालों की सूची में डाला गया था और यह जासूसी भीमा कोरेगांव मामले में हुई हिंसा के पहले होनी थी।
विल्सन पर आरोप है कि वह और एक दर्जन और कार्यकर्ता माओवादियों के प्रतिबंधित गुरिल्ला ग्रुप के सदस्य थे और इनकी कोशिश केंद्र सरकार को गिराने की थी। इसके बाद इनके ख़िलाफ़ क़ानूनी मुक़दमे लगाकर जेल में डाल दिया गया था। इनमें से एक स्टेन स्वामी की इस साल मौत हो गई जबकि सुधा भारद्वाज को हाल ही में जमानत मिली है।
क्या है मामला?
फ्रांसीसी मीडिया ग़ैर-सरकारी संगठन 'फॉरबिडेन स्टोरीज़' ने स्पाइवेयर पेगासस बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस को हासिल किया था तो तब यह पता चला था कि उसमें 10 देशों के 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के फ़ोन नंबर हैं। इनमें से 300 नंबर भारतीयों के हैं और इनकी जासूसी की गई है।
फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने 16 मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर इस पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय मीडिया कंपनी 'द वायर' भी शामिल है।
विपक्षी दलों ने जासूसी को बड़ा मुद्दा बना लिया था और यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि पेगासस से जुड़े तथ्य सार्वजनिक करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है।
कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा था कि वह यह बताए कि उसने इस सॉफ्टवेयर को ख़रीदा है या नहीं। जबकि एनएसओ ग्रुप का कहना है कि वह अपना सॉफ्टवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है।
राहुल,लवासा का नाम
विवाद बढ़ने के बाद सरकार ने संसद में कहा था कि उसने पेगासस के लिए एनएसओ से कोई सौदा नहीं किया है। इस मामले को लेकर संसद के मॉनसूस सत्र में जमकर हंगामा हुआ था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का नाम भी उन लोगों में शामिल था, जिनकी इस स्पाईवेयर के जरिये जासूस की गई थी। इसके अलावा 30 पत्रकारों की भी जासूसी हुई थी।
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