लालू प्रसाद के राजनैतिक सुख-दुख के पुराने साथी जगदानंद सिंह उर्फ जगदा बाबू ग़ुस्से में बताये जा रहे हैं। वजह भी लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप हैं जो उन्हें अपने ताज़ा बयान में हिटलर बता चुके हैं। इसके बाद से जगदा बाबू एक तरह से कोप भवन में हैं। दफ्तर नहीं आ रहे। आरजेडी के किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।
लेकिन यह उनकी असल मजबूरी नहीं है। असली मजबूरी यह है कि वह अपने ग़ुस्से का इज़हार नहीं कर सकते या नहीं कर पा रहे। कुछ बोलते हैं तो तेज प्रताप कोई और आपत्तिजनक बयान दे सकते हैं। दूसरी तरफ़ बीजेपी-जेडीयू को यह कहने का मौक़ा मिलेगा कि आरजेडी में आंतरिक कलह गहरा है। इससे पहले भी जदयू और बीजेपी के प्रवक्ता कहते आए हैं कि आरजेडी में जगदा बाबू जैसी बड़ी शख्सियत की कोई अहमियत नहीं है और उन्हें बेइज्जत किया जाता रहा है।
ताज़ा मामला 8 अगस्त का है जब समस्तीपुर के ताजपुर से विधायक तेज प्रताप यादव ने छात्र राजद के एक कार्यक्रम में जगदानंद सिंह के ख़िलाफ़ काफी आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए कह दिया कि वे हिटलर शाही चला रहे हैं और पार्टी में मनमानी कर रहे हैं। तेज प्रताप ने यह भी कहा कि वह कुर्सी को अपनी बपौती समझ रहे हैं जबकि कुर्सी किसी की नहीं होती। उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि वह भी मंत्री थे लेकिन उनकी भी कुर्सी नहीं रही।
तेज प्रताप की आपत्ति इस बात पर है कि जब से जगदानंद सिंह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने हैं पार्टी का कार्यालय सारे लोगों के लिए खुला नहीं रहता। उन्होंने आरोप लगाया कि जब से नए प्रदेश अध्यक्ष बने हैं सिस्टम ही बदल गया है। उन्होंने यह भी कहा कि हम हैं कि सभी को एक सिस्टम में ले जाना चाहते हैं इसलिए हमने भी आना जाना शुरू कर दिया है।
इस बयान के बाद जगदानंद सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि वे नाराज़गी के कारण आरजेडी के कार्यालय नहीं जा रहे हैं। 11 अगस्त को विधानसभा के सामने शहीद स्मारक स्थल पर जगदा बाबू को माल्यार्पण करना था लेकिन वह नहीं पहुँचे। राजद की ओर से आधिकारिक रूप से इस बारे में कुछ नहीं बताया गया लेकिन उसके सूत्रों का कहना है कि जगदा बाबू की तबीयत ख़राब है इसलिए वे दफ्तर नहीं जा रहे हैं।
5 जुलाई को जब राजद का स्थापना दिवस मनाया जा रहा था तो तेज प्रताप के बयान के बाद यह ख़बर आई थी कि जगदा बाबू ने इस्तीफे की पेशकश की है। हालाँकि तब जगदा बाबू दफ्तर गए थे। इससे यह बात समझी जा सकती है कि जगदा बाबू के लिए इस्तीफा देना इतना आसान भी नहीं है।
आरजेडी में तेज प्रताप को लेकर खटपट की बात सिर्फ़ जगदा बाबू तक सीमित नहीं है। छात्र राजद के कार्यक्रम के दौरान एक ऐसा पोस्टर लगाया गया जिसमें लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, तेज प्रताप और छात्र राजद के प्रदेश अध्यक्ष की तस्वीर तो थी लेकिन तेजस्वी प्रसाद की तस्वीर नहीं थी। इसके अगले दिन वह पोस्टर हटाया गया और उसकी जगह जो पोस्टर लगा उसमें तेज प्रताप की तस्वीर नहीं थी।
पोस्टर की इस लड़ाई में तेज प्रताप ने अब मीडिया को भी शामिल कर लिया है। तेज प्रताप ने हाल के अपने एक फेसबुक पोस्ट में मीडिया पर कई आरोप लगाए। यहाँ तक कि उन्होंने अपने वकील बुलाकर मीडिया पर एफ़आईआर करने की भी धमकी दी। उन्होंने यह भी कहा कि वह जो कहते हैं वह करते हैं। तेज प्रताप ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आरजेडी के पोस्टर से खुद उनकी, पिता लालू प्रसाद, माता राबड़ी देवी और अपनी बहन मीसा देवी की तस्वीर नहीं होने की बात भी उठाई और आरोप लगाया कि तब मीडिया ने इसपर नहीं लिखा।
तेज प्रताप का यह आरोप सही नहीं है क्योंकि उस समय इसकी खूब चर्चा हुई थी।
तेज प्रताप का आरोप है कि ऐसे पोस्टर उनके विरोधी लगाते हैं जिसमें कभी उनकी और कभी उनके भाई की तस्वीर नहीं होती। तेजस्वी के पोस्टर न होने की बात उठाये जाने पर तेज प्रताप अपने तरीक़े से तेजस्वी के लिए समर्थन भी जताते रहते हैं। वे तेजस्वी को अपना अर्जुन कहते हैं और उन्हें मुख्यमंत्री बनवाने की भी बात कहते हैं। दूसरी तरफ़ तेज प्रताप के बीमार पड़ने पर तेजस्वी भी फौरन अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान उनके साथ न के बराबर देखे गए थे।
राजद के एक क़रीबी सूत्र का कहना है कि तेज प्रताप वास्तव में इस बात पर नाराज़ रहते हैं कि उन्हें उनके भाई तेजस्वी यादव की तरह अहमियत नहीं दी जाती। चूँकि वे सीधे लालू प्रसाद या तेजस्वी याद के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोल सकते इसलिए अपना ग़ुस्सा प्रदेश अध्यक्ष पर निकालते हैं। उधर तेज प्रताप के क़रीबियों का कहना है कि जगदा बाबू तेजस्वी यादव को ही अहमियत देते हैं, उन्हें नहीं, इसलिए वे उनपर आरोप लगाते हैं।
जगदा बाबू अभी हाल में इस बात को लेकर भी चर्चा में आए थे कि उन्होंने जींस पहनने वाले कार्यकर्ताओं को खरी-खोटी सुनाई थी। राजद के सूत्रों के अनुसार हाल के एक प्रदर्शन के दौरान जब जगदा बाबू ने कुछ युवाओं से धरने पर बैठने को कहा तो वे बैठने में आनाकानी कर रहे थे या बैठ नहीं पा रहे थे। जगदा बाबू इसका कारण यह समझ रहे थे कि उन लड़कों ने जींस पहन रखी है। इसलिए उन्हें यह कह दिया कि ऐसे लड़के आरएसएस के एजेंट की तरह हैं।
तेज प्रताप और जगदा बाबू को क़रीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि दोनों की इस लड़ाई में अक्सर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बीच-बचाव करते हैं और इस बार भी ऐसा ही होगा।
लालू प्रसाद की समस्या यह है कि वे अगर जगदा बाबू को पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए मनाने में नाकाम होते हैं तो उनकी पार्टी पर राजपूत समाज को सम्मान नहीं देने का आरोप लगेगा। इससे पहले भी स्वर्गीय रघुवंश प्रसाद सिंह के बारे में यह आरोप आरजेडी पर लग चुका है कि पार्टी ने एक राजपूत नेता को सम्मान नहीं दिया। ध्यान रहे कि रघुवंश बाबू भी लालू प्रसाद के शुरुआती राजनीति कैरियर से साथ रहे लेकिन अंतिम समय में उन्होंने भी अस्पताल से ही इस्तीफा भेज दिया था।
जगदा बाबू के लिए दिक्कत की बात यह है कि वह तेज प्रताप के इन हमलों के विरोध में पार्टी अध्यक्ष पद से तो इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन पार्टी से बाहर जाना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा। इतने लंबे समय तक लालू प्रसाद के साथ रहने के बाद उन्हें किसी दूसरी पार्टी में जगह मिलना वह भी इस उम्र में मुश्किल लगता है। ऐसे में जब तक लालू प्रसाद की ओर से उन्हें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने को ना कहा जाए वह शायद इस पद पर बने रहें।
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