बिहार विधानपरिषद की 24 सीटों के लिए संपन्न चुनाव ने बिहार में एक नये राजनीतिक समीकरण का आगाज किया। करीब तीस वर्षो से बिहार की राजनीति के मुख्य धारा से गायब सवर्णों की इस चुनाव से बड़ी संख्या में एंट्री हुई।
24 सीटों में से 12 पर केवल भूमिहार और राजपूत जाति के प्रत्याशियों ने बाजी मारी। दोनों जातियों के 6-6 उम्मीदवारों ने इस चुनाव में अपना परचम लहराया है।
आरजेडी की राजनीति के दृष्टिकोण से देखा जाए तो तीन दशकों की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब आरजेडी को भूमिहारों का समर्थन मिला है। लालू प्रसाद से अलग तेजस्वी यादव बिहार में एक नया राजनीतिक समीकरण (भूमिहार, यादव और मुसलमान) बनाने में सफल होते दिख रहे हैं।
हालांकि, यह संख्या और बढ़ सकती थी। लेकिन, एक बार फिर कांग्रेस ने इस चुनाव में आरजेडी का खेल बिगाड़ा और अपने दम पर विधान परिषद में 2 सीटों पर एंट्री मारी है। बेगूसराय से उसके प्रत्याशी और पूर्वी चंपारण में उसके समर्थित प्रत्याशी की जीत हुई है।
आरजेडी में बदला जातीय समीकरण
यह पहला मौका है जब राष्ट्रीय जनता दल ने किसी चुनाव में सवर्णों को साथ लेकर चलने की कोशिश की है। राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्रा की माने तो आरजेडी अगर इसी रणनीति को बनाए रखी तो वह बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले से ही तेजस्वी यादव राष्ट्रीय जनता दल को ए टू जेड की पार्टी बता रहे थे। हालांकि, टिकट वितरण में ऐसी कोई बात देखने को नहीं मिली थी, लेकिन विधानपरिषद चुनाव में उन्होंने रणनीति बदली और काफी हद तक सफल भी रहे।
बिहार विधान परिषद की 24 सीटों में आरजेडी के कुल 6 सदस्य नवनिर्वाचित हुए हैं। इसमें 3 भूमिहार जाति से हैं। दूसरी तरफ पार्टी ने 10 यादव और 1 मुसलिम को भी विधान परिषद का टिकट दिया था, लेकिन 10 में से केवल 1 यादव उम्मीदवार को ही जीत नसीब हुई।
कांग्रेस को मिला ब्राह्मणों का समर्थन
विधान परिषद की हुई 24 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस की 2 सीटों पर जीत हुई। बेगूसराय से उसके प्रत्याशी और पूर्वी चंपारण में उसके समर्थित प्रत्याशी की जीत हुई। यह जीत कांग्रेस ने अपने दम पर प्राप्त की है। इन दोनों सीटों पर मुसलमान और ब्रह्राणों का कांग्रेस को समर्थन मिला।
इससे इस बात पर बहस तेज हो गई है कि क्या कांग्रेस को बिहार में उसके परंपरागत वोटर का अब समर्थन मिलना शुरु हो गया है।
1990 के बाद यह पहला अवसर है जब मुसलमानों ने आरजेडी की जगह कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने कई सीटों पर आरजेडी का खेल भी बिगाड़ दिया। बताते चलें कि आरजेडी बिहार विधान परिषद में अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी थी। कांग्रेस को उसने कोई सीट नहीं दी थी। इससे नाराज़ कांग्रेस ने भी 24 में से 14 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए और पांच सीटें-कटिहार, दरभंगा, सीतामढ़ी, पूर्णिया और गोपालगंज में आरजेडी का खेल बिगाड़ा दिया।
सवर्णों का प्रदर्शन बेहतर
बिहार विधानपरिषद की 24 सीटों में टिकट वितरण के लिहाज से देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि सभी पार्टियों ने सभी जातियों का ख्याल रखा। वैसे जीत में सवर्णों की बड़ी भागीदारी रही। 24 सीटों में 12 सीट पर केवल भूमिहार और राजपूत जाति के प्रत्याशियों ने बाजी मारी। दोनों जातियों के 6-6 उम्मीदवार इस चुनाव में पताका फहराते नजर आए। वैश्य समुदाय से भी 6 प्रत्याशियों का भाग्य खुला।
वैसे दूसरे समुदाय से भी 6 प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे। 5 सीट पर यादव और 1 सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी विजयी रहे। दूसरी जातियों के प्रत्याशियों को कोई कामयाबी नहीं मिली। मुसलिम प्रत्याशियों का तो खाता तक नहीं खुला। सबसे ज्यादा भूमिहार और राजपूत प्रत्याशी बीजेपी से जीते।
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