वैसे तो आम तौर पर मेरी फ़ेसबुक पोस्‍ट पर लिखी टिप्‍पणियों पर मैं बाद में टीका नहीं करता हूँ परन्‍तु इस बार एक ‘आलेख’ लिखकर किन्‍हीं पत्रकार महोदय ने पूरे विस्‍तार से मेरी पोस्‍ट पर जो लिखा उसमें वर्णित कुछ तथ्‍यात्‍मक बातों पर कहने की विवशता हो रही है खास तौर पर ‘आलेख’ के अंत में लिखे वाक्‍यों और समझ के बाबत जिसे पहले ही मैं उद्धृत कर रहा हूँ। न जाने किस मंतव्‍य से बेहद आपत्तिजनक और असत्‍य बातें कही गई हैं:-