मध्य प्रदेश में बीजेपी ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया तो क्या अब यूपी बिहार में अहीर भाजपा के साथ चला जाएगा? यह ध्यान रखना चाहिए मुलायम सिंह यादव जैसे कद्दावर नेता बिहार में लालू यादव के गढ़ में कामयाब नहीं हो पाए, न शरद यादव उत्तर प्रदेश में कोई चमत्कार दिखा पाए। ये दोनों राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता रहे और आंदोलन से निकले। दरअसल, हर राज्य के जातीय समीकरण और जनाधार वाले नेताओं का चमत्कार भी अलग-अलग होता है इसलिए यह मुगालता पाल लेना ठीक नहीं कि मध्य प्रदेश का यादव नेता यूपी बिहार में चमत्कार कर देगा।
राजनीतिक विश्लेषक मणींद्र मिश्र ने कहा, वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश में लालू यादव ने विधान सभा में बहुत से उम्मीदवार उतार दिए और खुद प्रचार करने भी आए पर मुलायम सिंह के आगे उनकी कुछ नहीं चली और वे नाकाम रहे। इसलिए एक राज्य की राजनीति को दूसरे राज्य पर रख कर राजनीतिक समीकरण को नहीं समझा जा सकता है।
यह एक उदाहरण था पर सभी को पता है कि बिहार में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी कभी खड़ी नहीं हो पाई क्योंकि बिहार की राजनीति अलग है उनके नेताओं का करिश्मा भी अलग है। मुलायम सिंह यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन और संघर्ष से निकले नेता रहे, जिनका राजनीतिक प्रशिक्षण चौधरी चरण सिंह जैसे कद्दावर किसान नेता के दौर में हुआ। यूपी में एक तरफ़ बसपा के ज़रिए काँसीराम ने दलितों को एकजुट किया तो दूसरी दूसरी तरफ़ मुलायम ने पिछड़ों को। और जब दोनों मिले तो नारा लगा, ‘मिले मुलायम काँसीराम- हवा हो गए जय श्री राम’। यह नारा बाद में सपा बसपा को सत्ता में ले आया।
यह संदर्भ सिर्फ इसलिए ताकि यूपी में धर्म और राजनीति के घालमेल के बावजूद जातीय समीकरण को समझने में मदद मिले। बार बार लगातार ये दोनों दल सत्ता में आते रहे तो इन्हीं दोनों कद्दावर नेताओं का असर था। इसलिए कागजी नेताओं से खासकर कागज की एक पर्ची पर नाम लिख कर लिफ़ाफ़े में भेज देने से कोई जमीनी नेता नहीं बन जाता।
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