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फोटो साभार: एक्स/@narendramodi

इंटरव्यू से बचने वाले पीएम मोदी का पॉडकास्ट क्यों, वैश्विक छवि की चिंता?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार दिया जो एक दिन पहले रविवार को सार्वजनिक हुआ। आमतौर पर पारंपरिक मीडिया से दूरी बनाए रखने वाले पीएम मोदी का यह क़दम कई सवाल खड़े करता है। क्या वह अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को चमकाना चाहते हैं या भारत की विदेश नीति को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं? क्या बदलते विश्व व्यवस्था में वह खुद को पोजिशन कर रहे हैं या भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं? 'टैरिफ़ वार' के इस उथल-पुथल के दौर में ट्रंप की तारीफ़, भारत-चीन संबंधों पर बयान और यूएन जैसी संस्थाओं को अप्रासंगिक बताने जैसे उनके विचारों के पीछे क्या मक़सद है? आइए, इस साक्षात्कार के मायने को समझें।

यह साक्षात्कार ऐसे समय में सामने आया है जब वैश्विक मंच पर बड़े बदलाव हो रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका में वापसी, रूस-यूक्रेन युद्ध का अनिश्चित दौर, भारत-चीन सीमा पर तनाव में कमी और पाकिस्तान की आतंकी छवि - ये सभी घटनाएं एक नई विश्व व्यवस्था की ओर इशारा करती हैं। ऐसे में पीएम मोदी का लेक्स फ्रिडमैन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर बोलना एक रणनीतिक क़दम लगता है। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि को मज़बूत करने, बल्कि भारत की विदेश नीति को वैश्विक संदर्भ में पेश करने का प्रयास हो सकता है।

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पीएम मोदी ने ट्रंप की विनम्रता, रेजिलिएंस और साफ़ रोडमैप की तारीफ़ की। यह तारीफ़ उनकी व्यक्तिगत छवि को एक ऐसे नेता के रूप में मज़बूत करती है जो शक्तिशाली वैश्विक नेताओं के साथ गहरे संबंध रखता है। लेकिन इसके पीछे भारत की विदेश नीति को दुरुस्त करने की मंशा भी साफ़ झलकती है। ट्रंप की दूसरी पारी शुरू होने से पहले उनकी प्रशंसा करके वह अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों को और मज़बूत करने का संकेत दे रहे हैं। 

इसी तरह भारत-चीन संबंधों को 2020 से पहले की स्थिति में लाने की बात कहकर वह यह दिखा रहे हैं कि भारत ज़िम्मेदार और संतुलित विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा है। यह उनकी छवि को चमकाने के साथ-साथ भारत को एक ऐसी शक्ति के रूप में पेश करता है जो वैश्विक स्थिरता में योगदान दे सकती है।

सवाल यह है कि क्या मोदी खुद को पोजिशन कर रहे हैं या भारत को? साक्षात्कार में उनके बयान दोनों की ओर इशारा करते हैं। ट्रंप की तारीफ़ और एलन मस्क, तुलसी गबार्ड जैसे लोगों की उनकी टीम के साथ मुलाकात का जिक्र करके वह पश्चिम के साथ भारत के गठजोड़ को मजबूत कर रहे हैं। चीन के साथ सहयोग की बात कहकर वह पूर्व के साथ संतुलन बनाना चाहते हैं। 
रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति की वकालत और पाकिस्तान पर सख्ती दिखाकर वह भारत को एक बहुआयामी शक्ति के रूप में पेश कर रहे हैं। यह उनकी व्यक्तिगत छवि को तो चमकाता ही है, साथ ही भारत को वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली खिलाड़ी के रूप में पेश करता है।

ट्रंप की तारीफ़ और भारत-चीन पर बयान क्यों?

मोदी का यह कहना कि 'ट्रंप के पास स्पष्ट रोडमैप है' एक कूटनीतिक संकेत है। यह अमेरिकी प्रशासन को भरोसा दिलाने की कोशिश हो सकती है कि भारत उनके साथ मिलकर वैश्विक चुनौतियों का सामना करने को तैयार है। ट्रंप की तारीफ़ से वह न केवल व्यक्तिगत संबंधों को बल दे रहे हैं, बल्कि भारत-अमेरिका साझेदारी को भी महत्व दे रहे हैं। 

भारत-चीन संबंधों पर उनका बयान - 'हम 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं' - हाल की शी जिनपिंग मुलाकात के बाद आए सकारात्मक संकेतों को मजबूत करता है। यह वैश्विक समुदाय को दिखाता है कि भारत और चीन के बीच सहयोग वैश्विक अर्थव्यवस्था और स्थिरता के लिए जरूरी है और भारत इस दिशा में सक्रिय है।

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वैश्विक मुद्दों पर विचार क्यों?

रूस-यूक्रेन युद्ध पर शांति की वकालत और बुद्ध-गांधी का हवाला देकर मोदी ने भारत को शांति का दूत बताया। यह भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है, जो तटस्थता के बजाय शांति को प्राथमिकता देता है। पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताकर उन्होंने भारत के सख्त रुख को दोहराया। इन मुद्दों पर बोलकर वह भारत को वैश्विक संकटों में एक सक्रिय और जिम्मेदार पक्ष के रूप में पेश कर रहे हैं।

यूएन जैसी वैश्विक संस्थाओं को अप्रासंगिक बताना एक बड़ा बयान है। यह मौजूदा वैश्विक ढांचे की सीमाओं पर सवाल उठाता है और उस सोच को दिखाता है जिसमें वह पुरानी व्यवस्था को चुनौती देना चाहते हैं। यह संकेत हो सकता है कि मोदी भारत को नई वैश्विक व्यवस्था में नेतृत्वकारी भूमिका में देखते हैं। एक संकेत ट्रंप के लिए भी हो सकता है क्योंकि ट्रंप भी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को लेकर क़रीब-क़रीब ऐसे ही विचार रखते हैं। 

इंटरव्यू से बचने वाले मोदी का यह कदम?

मोदी भारतीय मीडिया के साक्षात्कारों से अक्सर बचते हैं, खासकर जहां आलोचनात्मक सवालों का सामना करना पड़े। पश्चिमी मीडिया में ही लेक्स फ्रिडमैन के पॉडकास्ट से कहीं ज़्यादा पहुँच और विश्वसनीय मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, रायटर्स, एपी जैसी संस्थाएँ हैं। लेकिन पीएम मोदी ने लेक्स फ्रिडमैन के पॉडकास्ट को चुना। लेक्स फ्रिडमैन का मंच उनके लिए एक नियंत्रित और वैश्विक मंच है, जहां वह अपनी शर्तों पर अपनी बात रख सकें। यह साक्षात्कार उनकी उपलब्धियों और कूटनीति को बिना चुनौती के पेश करने का मौक़ा देता है। यह घरेलू आलोचनाओं से ध्यान हटाने और वैश्विक मंच पर केंद्रित रहने की रणनीति भी हो सकती है।

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मोदी का यह पॉडकास्ट साक्षात्कार उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि को चमकाने और भारत की विदेश नीति को मजबूत करने का दोहरा प्रयास लगता है। ट्रंप की तारीफ, चीन के साथ संतुलन, रूस-यूक्रेन में शांति की वकालत और पाकिस्तान पर सख्ती उनके कूटनीतिक कौशल को दिखाते हैं। यह कदम उनकी व्यक्तिगत ब्रांडिंग को तो बढ़ाता ही है, साथ ही भारत को बदलते विश्व में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में पोजिशन करने की कोशिश करता है। लेकिन सवाल वही है कि क्या यह सिर्फ़ वैश्विक मंच की रणनीति है या घरेलू चुनौतियों से ध्यान भटकाने का तरीका? इसका जवाब भविष्य के घटनाक्रम ही देंगे।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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