सरकारें झूठ पहले भी बोलती थीं लेकिन तब झूठ पकडे जाने पर उन्हें शर्म आती थी और कई साल तक वह झूठ नहीं परोसती थीं. मोदी गवर्नेंस ने झूठ बोलने को “परफेक्शन” के मकाम पर पहुँचाया और आज कार्यपालिका के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति हो या राज्य का भाजपी सीएम झूठ नहीं बोलते हैं, बल्कि सफ़ेद झूठ बोलते हाँ, लगातार बोलते हैं और पकडे जाने पर भी और बेशर्मी से बोलते हैं.
पीएम मोदी ने देश को “आत्मनिर्भर” बनाने के लिए सत्ता में आते हीं (2015 में) “कौशल विकास” कार्यक्रम शुरू किया जिसके तहत 40 करोड़ लोगों को स्किल ट्रेनिंग देनी थी. आज उद्योगों, आईएलओ, तमाम निजी मकबूल विश्व संगठन चीख-चीख कर बता रहे हैं भारत में स्किल की भयंकर कमी है.
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बेरोजगारी के आंकड़े इस बात की तस्दीक हैं. लेकिन मोदी ने चुनावी राज्य महाराष्ट्र में चाणक्य कौशल विकास कार्यक्रम लांच करते हुए कहा कि कौशल विकास की सफलता ने देश को नयी ऊंचाइयां दीं. एक हफ्ते बाद इस आशय से बना निगम एक सेमिनार करके उद्योगों से पूछा रहा था कि कौन से स्किल दिए जाये ताकि युवाओं को नौकरी मिल सके.
मोदी को जब ऐसे बयान देने होते हैं तो संख्या बताते हैं न कि प्रतिशत. पीएम उवाच के कुछ नमूलें सुने “भाइयों-बहनों यूपीए के ज़माने में शिक्षा पर जितना खर्च होता था आज आपका ये मोदी उसके दूना खर्च कर रहा है ताकि हमारे नौनिहाल बिना शक्षा के न रहें”, चूंकि प्रेस कांफ्रेंस होती नहीं वरना कोई पूछता कि मोदी जी ये आंकड़े बजट या जीडीपी के प्रतिशत प्रतिशत में तो घटे हैं।
कई मुख्यमंत्रियों ने भी इसकी प्रैक्टिस की हैं.
यूपी के सीएम ने राज्य के पांच-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय ट्रेड शो समारोह में बताया “एक सर्वे के अनुसार प्रदेश 96 लाख एमएसएमई इकाइयों के साथ देश का पहला राज्य बन गया है”. ख़ुशी इस बात पर नहीं होनी चाहिए कि इकाइयों की संख्या बढ़ी है बल्कि उनका आउटपुट देखना चाहिए. अनौपचारिक सेक्टर की तमाम ऐसी इकाइयां सिर्फ सरकारी सस्ते लोन और सहायता राशि के लिए अस्तित्व में आने लगी हैं. यही कारण है कि आउटपुट में आज भी महाराष्ट्र और तमिलनाडु की इकाइयों का योगदान शीर्ष पर है जबकि देश की आबादी में इनका प्रतिशत क्रमशः मात्र नौ और 5.6 है और यूपी का 18 प्रतिशत.
सक्रिय एमएसएमई का सबसे सही आंकड़ा केंद्र सरकार के उद्यम पोर्टल से मिलता है जो वहाँ बैठे केन्द्रीय मंत्री का विभाग है और किसी “एक सर्वे” के आधार पर ऐसा दावा औपचारिक अवसरों पर नहीं किया जाता. सीएम ने आगे कहा कि सरकार के प्रयासों से आज यह सेक्टर प्रदेश में कृषि के बाद दूसरे नंबर का रोजगार देने वाला बन गया. पूरे देश में भी यही दशकों से यही स्थिति है.
इस साल के ३ जनवरी के प्रेस नोट में भारत सरकार ने बताया कि कुल 2.19 करोड़ इकाइयों ने पंजीकरण कराया जिनमें 88.89 लाख वर्ष 2023 में बढे, अगर यह पूरे देश की स्थिति है तो यूपी में 96 लाख इकाइयों का होना लगभग असंभव लगता है. संभव है कि सभी इकाइयों ने इस पोर्टल पर पंजीकरण न कराया हो लेकिन सरकार और प्रोफेशनल सर्वे संस्थानों के अनुसार को नजरअंदाज करते हुए भी अगर यह आंकड़ा सच मान भी लिया जाये तो इससे आर्थिक विकास परिलक्षित होने की जगह एक बेचारगी दीखती है क्योंकि ऐसे अनुत्पादक उद्यमों में लगना कोरोना-उत्तर काल की मजबूरी भी हो सकती है.
देश में स्व-रोजगार से आय नियमित आय का मात्र 60 प्रतिशत पाया गया है. आज जरूरत है कि युवाकों को पहले स्किल दें और फिर उन्हें वित्तीय सहायता दे कर चीन के मुकाबले अच्छे और सस्ते उत्पाद बनाने में समर्थ करें.
हरियाणाः बेरोजगारी पर झूठ बेरोजगारी दर कुल “उपलब्ध” कार्यबल (15-64 वर्ष की आयु के उन लोगों का, जिन्हें या तो रोजगार मिल चुका है या, जो जॉब मार्केट में काम तलाश रहे हैं, कुल योग) में बेरोजगार लोगों का प्रतिशत होता है. एक अन्य पहलू देखें. अगर गरीबी के कारण महिलाएं पारिवारिक व्यवसाय में अवैतनिक रूप से हीं हाथ बताएं तो वह रोजगार माना जाएगा. मतलब है कि अगर महीनों या वर्षों काम न मिलने की वजह से निराश युवा वापस गाँव का रुख करे या कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत मजबूरी में बढे तो उसे सरकार रोजगार में वृद्धि मान लेगी.
ताज़ा पीएलऍफ़एस रिपोर्ट बताती है कि “चुनाव वाले राज्य” हरियाणा में बेरोजगारी सबसे ज्यादा घटी है. यह वही राज्य है जहां स्वतंत्र संस्था सीएम्आईई की दस माह पुरानी रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर थी. आखिर ऐसा क्या हो गया कि राज्य अचानक यह दर घटाने में शीर्ष पर आ गया? क्या रातोंरात ढेरों उद्योग लग गए? दरअसल इस दर मापन की गलत परिभाषा हीं सरकार को शुतुरमुर्गी भाव के लिए तत्पर करती है. कोरोना में पलायन के बाद हरियाणा फिर लौट के आये तो काम नहीं मिला लिहाज़ा फिर वापस गाँव चले गए और परिवार के हीं छोटे-मोटे काम में बिना किसी वेतन के लग गए. सरकारी कागजों में वे रोजगार वाले माने गए.
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गोवा और केरल में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है जबकि पहला, प्रति-व्यक्ति आय में देश के शीर्ष राज्यों में है और दूसरा, शिक्षा और मानव विकास सूचकांक में. यहाँ बेरोजगारी बढ़ने का मतलब है राज्य के लोग काम मांग रहे हैं और उत्तर भारत के कई राज्यों की तरह निराश हो घर नहीं बैठे हैं. तभी तो सबसे बड़ी आबादी वाला यूपी स्व-रोजगार में शीर्ष पर है जबकि सबसे गरीब और अविकसित बिहार दिहाड़ी मजदूरों के प्रतिशत में देश में शीर्ष पर है. कई बार स्व-रोजगार एक मजबूरी भी होती है जिसमें आय नियमित पागर की मात्र 60 प्रतिशत है. नीतियों में बदलाव जरूरी है.
(वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) के पूर्व महासचिव हैं)
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